जिसके पनघट पर जमघट लगा रहता था। पनिहारी 'मन की बात’ करती थी। कच्चे चिट्ठे
खुलते थे। ब्रेकिंग न्यूज़ बनती थी। लाइव टेलीकास्ट होता था। वह सरकारी हैंडपंप
मैं ही हूँ। लेकिन जब से पानी रसातल में गया है। कोई भी मेरी ओर झाकता भी नहीं। उन
दिनों मैं तो दिन-रात मोहल्ले वासियों की सेवा में समर्पित रहता था। कभी किसी को
पानी के लिए मना नहीं किया। एक बाल्टी की जगह दो बाल्टी भर कर देता था। मैं यह
नहीं कह रहा कि मोहल्लेवासी मेरा ख्याल नहीं रखते थे। वे भी पूरा ख्याल रखते थे।
जब भी सर्विस का मन होता था तो सर्विस करवा कर मेरी मनोकामना पूर्ण कर देते थे।
लेकिन इंसान कितना खुदगर्ज है, इसका आभास मुझे तब हुआ,जब
इनकी भरपूर जलपूर्ति करता था तो यह लोग प्रशंसा करते नहीं थकते थे और जब से
जलपूर्ति बंद हुई है। कोई हालचाल भी पूछने नहीं आता।
धरा के अंदर जल ही नहीं है तो मैं कहा से खींचकर लाऊं। जल
रसातल में चल गया है। वहाँ तक पहुँच पाना मेरे बस की बात नहीं। रसातल में रिश्वत
भी नहीं चलती,जो कि घूस देकर पानी
ले आऊं और न ही ऐसा कोई जुगाड़ है,जिससे पानी ले आऊं। जुगाड़़ के मामले में भी भारतीय मानव सबसे आगे
हैं। बस इसने तो जल बचाने का ही जुगाड़ नहीं किया। दो
की जगह चार बाल्टी उड़ेलकर नहाते धोते थे। पशुओं को रगड़कर नहलाते थे। मोटरसाइकिल
धोने में दुनिया भर का पानी व्यर्थ कर देते थे। अब
बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। सरकार को कोस रहे हैं। जल सरकार की मुट्ठी में थोड़ी है,जो भींच कर बैठी है। देने से मना कर
रही है। सरकार तो ‘जल है,तो कल है...’
तथा ‘जल ही जीवन’ की
अपील कर सकती है। सूखाग्रस्त इलाकों का जायजा लेने के लिए ज्यादा से ज्यादा
जलमंत्री को भेज सकती है। इसमें जल मंत्री जी भी क्या कर सकते हैं? सेल्फी लेकर अफसोस जता सकते हैं।
एक दिन
एक स्थानीय पत्रकार की मेरे पर नजर क्या पड़ी, उससे मेरी हालत देखी नहीं गई। अखबार में
छाप दिया। मेरी खबर अखबार में क्या छपी,स्थानीय नेताओं में
होड़ मच गई। मुझे दुरुस्त करवाकर श्रेय लेने की। इन्होंने खबर का ऐसा मुद्दा बनाया ग्राम पंचायत से पंचायत समिति तक हाहाकार मचा दिया। यह तो शुक्र है कि बीडीओं साहब ने जलदाय विभाग से एक कर्मचारी भेज दिया था। अन्यथा यह तो मुझे लेकर
सड़क पर चक्काजाम कर देते। अच्छा इनको भी मेरा ख्याल अखबार में छपने के बाद ही आया।
जलदाय विभाग से जो कर्मचारी आया था। वह मुझे देखकर बुदबुदाया। जो पहले से
दुरूस्त है। उसे क्या दुरूस्त करू? पर इत्ती दूर से आया हूँ तो कुछ ना कुछ ट्रीटमेंट तो करके ही जाऊंगा। उसने
किया क्या? दो-चार नये बोल्ट और ग्रीस करके चला गया।
उसे भी अच्छी तरह से मालूम है और मुझे भी तथा लोगों को भी। जल जलस्तर तक रहा ही
नहीं है। ट्रीटमेंट करना तो एक औपचारिकता है। अब तो मेरे
पनघट पर जमघट तभी लगेगा जब जल स्तर ऊपर उठेगा।
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