प्रचंड बहुमत के बाद
गरमी भी प्रचंड पथ पर चल पड़ी है। चाहे इसे ईर्ष्या कहें या प्रतिस्पर्धा। अब तो
जब तक बारिश से मुठभेड़ नहीं हो जाती उससे पहले रोकने से भी रुकने वाली नहीं है।
चाहे आड़े अंधकार आए या तूफान आए। तब तक आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। जब तक
सूर्यदेव का समर्थन प्राप्त है। इन दिनों सूर्य कुपित है। आग बरसा रहा है। इससे
दुश्मनी मोल लेने पर वही हालत होगी। जिनकी इस समय प्रचंड बहुमत न मिलकर चंद मिलने
पर हो रही है।
इनका मुखिया गम में
डूबा हुआ है। चिंतन कर रहा है।अपना इस्तीफा देने को तैयार बैठा है। लेकिन लेने को
कोई तैयार नहीं। अजीज यार भी हार की समीक्षा करने में लगे हुए हैं। आखिर चूक कहां
पर हुई है। बादल बने भी थे। गरजे भी थे। बिजली भी चमकी थी। हवा भी चली थी। हल्की-फुल्की
बौछार भी आई थी। इसके बावजूद मेघ हम पर मेहरबान न होकर उन पर इतने मेहरबान हो गए, वो जलमग्न हो गए और हम सूखाग्रस्त ही रह गए।
अब इन्हें कौन समझाए? क्या इन्हें खुद को पता नहीं है। मेघ हवा का रुख देखकर बरसते हैं। जिधर की
हवा चल रही होती है। उधर हो लेते हैं। हवा उसी दिशा में चलती है। जिस दिशा में
उसका वेग होता है। बदलती तभी है,जब वेग मंद या तीव्र होता
है। उस समय घनघोर काले बादलों को न देखकर हवा का रुख
देख लिए होते तो इतनी बुरी स्थिति नहीं होती। खैर,जो हुआ,सो हुआ। मगर ऐसे
ही चलता रहा तो आगे अकाल पड़ना निश्चित है। तब हम कहीं
के भी नहीं रहेंगे। शायद यही सोचकर साठ पार्षदों ने अपने भविष्य का विकल्प निश्चित
किया हो।
लेकिन प्रचंड पथ पर
निकल पड़ी गरमी का क्या करें? सीलिंग
फैन डिवाइडर पर भी ब्रेक नहीं लगा रही है। कूलर को कुचलती हुई इतनी तीव्र गति से
चल रही है कि देखकर,एयर कंडीशनर की पतलून गीली होने को
है।समय रहते हुए बारिश से मुठभेड़ नहीं हुई तो गरमी
बिल्कुल भी नरमी नहीं बरतने वाली है। फिर तो प्रचंड
बहुमत की तरह प्रचंड रिकॉर्ड कायम करके ही रुकेगी।
कहीं ऐसा तो नहीं
बारिश भी समुद्र किनारे बैठकर चिंतन में कर रही हो। अबके वर्ष बरसना है
या नहीं बरसना है। बरसना है तो कहां पर बरसना है। इसको लेकर बादलों से मंथन कर रही
हो। बादल कह रहे हो कि अभी तो गरमी अपने प्रचंड पथ पर
हैं। इसको अबकी बार अपना लक्ष्य प्राप्त करने दे। हर बार हम इसके लक्ष्य में बाधा
बन जाते हैं। क्यों ना अबकी बार बाधा न बनकर प्रोत्साहित करें और गरमी से कहीं की तू अपने
लक्ष्य की ओर आगे बढ़ती रह। हम तो सांयकाल भी छाया नहीं
करेंगे। भरी दोपहरी वाली ही तेज धूप ही बरकरार रखेंगे। अगर संभवतःऐसा संभव हो गया
तो गरमी के पंंख लग जाएंगे। फिर यह प्रचंड पथ पर चलेगी नहीं,उड़ेगी। एक बार इसने उड़ान भर ली तो
यह समझ ही अपना लक्ष्य पूरा करके ही लैंड करेगी।
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