31 Jul 2019

सावन की आई बहार रे...


चंद्रयान-2 चांद के समीप है, झूठ सुर्खियों में है। देश के कई इलाकों के नदी और नाले उफान पर हैं। घर-दालान में सीलन आ चुकी है। कल तक जहां पर पानी के लिए त्राहि-त्राहि मची हुई थी,अब वहां पर तबाही मची हुई है। उनके गगन तले की धरा जलमग्न हैं। पर्वत हरीतिमा की चुनरी ओढ़कर प्रमुदित हैं। जिन्हें देखकर,उनके संग सेल्फी लिए बिना रहा नहीं जा रहा हैं। क्‍योंकि सोशल मीडिया पर भी सावन की बहार छाई हुई है, जिसे फॉरवर्ड किए बिना रहा नहीं जा रहा है।
रोज-रोज हो रही बारिश से कोई खुशहाल है, तो कोई परेशान है। मगर छिपकलियों के सोने पर सुहागा है। कीड़े-मकोड़ों को धप से पकड़ने के लिए बिल्कुल भी मशक्कत नहीं करनी पड़ रही है। खुद ही मुंह में आ रहे हैं। मेंढक टर्र-टर्र करते हुए बिना बुलाए घरों में प्रवेश कर रहें हैं और जहां मर्जी वही घुस रहे हैं। बेडरूम तक पहुंच जाते हैं। पर वे इतने ईमानदार हैं कि किसी की सुई भी नहीं चुराते हैं। बस घर का मौका मुआयना करके फूदते हुए बाहर निकल जाते हैं। बारिश में जो माटी के चूल्हे जलने में आना-कानी करने लगे हैं,उन्हें मिट्टी के तेल से ललचाया जा रहा है। जो लोभ में आ रहा है। वह चैन पा रहा है। जो तेल पीकर भी आंख दिखा रहा है,  वह चिमटे खा रहा है। इनके लिए भी सावन मनभावन होता है। मगर जलना ही इनकी नियति।
इन दिनों सखी सहेलियां पहेलियां न बुझाकर झूला झूलने में मस्त मगन हैं। क्योंकि सावन के झूलों में न झोल है,न पोल है। मीठे बोल हैं। जिन्हें सुनकर ठिठक सकते हैं। लेकिन भटक नहीं सकते। सावन में मटकना जो रहता है। मेरा भी मन मयूर की तरह नाचने के लिए मचल रहा है। लेकिन सोशल मीडिया पर छाई बहार बाहर ही निकलने नहीं दे रही है। व्हाट्सएप से बाहर निकलता हूं,तो फेसबुक के नोटिफिकेशन बुला लेते हैं। उसके बाद कुछ याद रहता है भला? क्योंकि यही आजकल रमणीय एवं भ्रमणीय स्थल है। यहां से कभी याद करके बाहर आ भी गया,  तो इंस्टाग्राम का प्रोग्राम तैयार रहता है। फिर टि्वटर वाली नीली चिड़िया चहचहाने लगती है। अब अगर उसकी चहचहाहट नहीं सूनी,तो अपने नेताओं और अभिनेताओं के सुविचारों से महरूम रह जाऊं। इसलिए इसकी सबसे पहले सुननी पड़ती है।

28 Jul 2019

समय से पहले आने का नजरिया


यहाँ समय से पहले आने वाले को कौहतूल भरी निगाहों से निहारते हैं। जब तक पहले आने का कारण नहीं जान लेंगे। तब तक अपनी निगाहें नहीं हटाते हैं। हाथ भी तब मिलाते हैं,जब तसल्ली हो जाती है कि समय से पहले आने का कोई खास उद्देश्य नहीं है। समय था तो समय से पहले चले आए। मगर जिनके चले आए हैं,उनके पास तो समय से पहले आने का समय है ही नहीं। उनके पास तो जो समय दिया गया था,वह भी बड़ी मुश्किल से एडजस्ट किया है। इसलिए उन्हें समय से पहले आना अजीब लगता है। फिर वो करीबी से भी बात अजीबोगरीब ही करते हैं। 
घर पर मेहमान समय से पहले आ जाए,तो बवाल हो जाता है। कल आने वाला एक दिन पहले कहाँ से आ टपका! एक दिन पहले आना इतना अटपटा लगता है,जैसे दूधवाला महीने से पहले दूध के पैसे माँगने आ गया हो। हॉकर महीना बीता नहीं और पैसा लेने के लिए चला आए तो लोग उससे अखबार लेना बंद कर देते हैं। इसलिए बेचारा कभी भी भूलकर महीने से पहले नहीं आता है। बल्कि दो-चार दिन लेट ही आता है। उधारी लाल तकाजे से पहले चला आए,तो ब्याज की तो छोड़िए। मूल रकम हजम होने पर आतुर हो जाती है। इस भय के कारण बेचारा तकाज़ा के चार दिन बाद ही जाता है।
हमारे यहाँ पर तो नवदंपति के नौ माह से पहले बच्चा पैदा हो जाए तो सवाल उठने लगते हैं। अड़ोसन-पड़ोसन तरह-तरह की बातें बनाने लगती हैं। कानाफूसी होने लगती है। भले ही उसके चरित्र पर एक भी दाग नहीं हो। फिर भी दागदार बताकर बदनाम करने की साजिश रची जाती है। जब तक सच सामने नहीं आ जाता। तब तक कानाफूसी तो कायम ही रहती है।प्रेमिका अपने प्रेमी से मिलने के लिए,दिए गए समय से पहले आ जाए तो प्रेमी उसे संदेह दृष्टि से देखने लगता है। उस वक्त उसके मन में एक ही विचार आता है कि मेरे अलावा किसी अन्य के साथ तो प्रेम-प्रसंग नहीं चल रहा है। ब्रेकअप नहीं हो जाए। इस डर के मारे पूछताछ नहीं करता है। मगर खोजबीन शुरू कर देता है। खोजबीन में सुख-चैन खो देता है। जिसका सुख-चैन खो जाता है। उसका स्वाभाविक की ब्रेकअप हो जाता है। मायके गई बीवी वापस आने की निश्चित तिथि से पहले बिना सूचना के चली आए तो पति को दाल में कुछ काला लगने लगता है। कल आने वाली थी आज ही क्यों चली आई। कुछ दिन और रुक जाती। जैसे प्रश्न अपने आप से ही करने लगता है। पूछने की तो हिम्मत होती नहीं है। क्योंकि पत्नी के आने से तो जबान पर ताला लग जाता है।
किसी दिन समय से पहले नल में पानी आ जाए,तो दिनभर मोहल्ले में चर्चा बनी रहती है। उस दिन तो जलदाय विभाग को लंबी उम्र की दुआएं देते नहीं थकते हैं। अगले दिन उस समय से पहले ही बर्तन भांडे लेकर बैठ जाते हैं। लेकिन उस समय पर जब नल से एक बूँद पानी की नहीं टपकती है। तब जलदाय विभाग को कोसने लगते हैं। सड़क पर जाम लगाकर धरना देते हैं। मटका फोड़कर प्रदर्शन करते हैं। ज्ञापन देकर रसातल में गया जल स्तर को ऊपर उठाने की मांग करते हैं। जबकि अच्छी तरह से पता है। रसातल में गया जल ज्ञापन से तो क्या? विज्ञापन से भी ऊपर नहीं आएगा। किसी कारणवश सब्जीवाला अपने नियमित समय से पहले चला आए,तो यह समझते हैं कि जरूर सब्जियां बासी होंगी। जिन्हें बेचने के लिए चला आया है। इसलिए उसकी सब्जियों में मीनमेख निकालने लग जाते हैं। रोज बिना भाव-ताव तय किए खरीदने वाले भाव-ताव करने लगते हैं। जब तक एकाध रूपया कम नहीं कर देता उससे पहले सब्‍जी नहीं खरीदते हैं। उस दिन और दिनों से दुगुना धनिया लेना नहीं भूलते हैं।
यदि ट्रेन निर्धारित समय से पहले पहुँच जाए तो किसी आश्चर्य से कम नहीं लगती है। जो घर से यह सोचकर निकलते हैं ट्रेन निर्धारित समय पर तो आने से रही,अक्सर उनकी ट्रेन छूट जाती हैं। फिर वो टाइम की कीमत क्या होती है। बिना बताए ही जान जाते हैं। इसी तरह पुलिस वारदात से पहले पहुँच जाए,तो एक बार तो यकीन ही नहीं होता है। बल्कि शक होता है। कहीं वारदात में पुलिस की तो मिलीभगत नहीं। जो कि अपराधियों को भगाने के लिए समय से पहले आ गई या फिर सबूत मिटाने के लिए चली आई हो। 
अक्सर लेट आने वाला सरकारी कर्मचारी यदि किसी दिवस निर्धारित समय से पहले ऑफिस आ जाए तो चर्चा का विषय बन जाता है। उस दिन दिनभर कामकाज के बजाय उसकी चर्चा रहती है। सहकर्मी पहले आने का कारण जानने के लिए कुछ इस तरह के प्रश्न पूछे बिना नहीं रहते हैं,क्या बात है सर! आज सूर्य पश्चिम से निकला था क्या?जो कि आप ऑफिस टाइम से पहले ही चले आए या फिर कोई उच्चाधिकारी निरीक्षण करने आ रहा है। जिसके भय कारण चले आए। 
किसी भी कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि दिए गए समय से पहले पहुँच जाए,तो उसका उतना स्वागत-सत्कार नहीं होता है। जितना की देरी से आने पर होता है। अक्सर कार्यक्रमों में देरी से पहुँचने वाले माननीय नेता जी! यदि किसी कार्यक्रम में समय से पहले पहुँच जाए तो कई तरह की अटकले लगना शुरू हो जाती हैं। लोगों को उनकी खादी पर राजनीतिक स्वार्थ के फूल खेलते हुए दिखाई देने लगते हैं। समय से पहले आने पर चाकचौंबद व्‍यवस्‍थाएं आनन-फानन में तब्‍दील हो जाती है। 
मानसून समय से पहले आ जाए तो भविष्यवाणी करने वालों की वाणी को लकवा मार जाता है। क्योंकि उनकी भविष्यवाणी पर मानसून पानी फेर देता है। पानी फिरने के बाद उन पर से विश्वास उठ जाता है। एक बार विश्वास उठने के बाद फिर कोई भविष्य में भी उनकी भविष्यवाणी पर भरोसा नहीं करता है। वैसे तो भरोसा भरसक होता है। मगर जब बूंदाबांदी की कहेंगे और होती है मूसलाधार। मूसलाधार की कहेंगे और होती है  बूंदाबांदी। तब शक होता है। जब शक होता है। भरोसा होते हुए भी नहीं होता है।
समय से पहले आना जिनको अटपटा लगता हैं। उनके सिर के बाल जब समय से पहले सफेद हो जाते हैं। तब समझ में आता है। समय से पहले आने में समय का ही संयोग होता है। इसीलिए समय से पहले चले आते हैं। अन्यथा किसकी बिसात हैं,जो कि दिए गए समय से पहले चला आए।

26 Jul 2019

मैं नहीं बदला,मुझे बदल डाला


आप बदल गए हैं। यह पत्नी का कहना था। घर में रहना है,तो पत्नी के कथन में हां में हां और ना में ना मिलाना ही पड़ता है। नहीं मिलाए तो वैवाहिक जीवन तू-तू मैं-मैं में व्यतीत होगा। इस सबसे तनाव होगा। तनाव होगा तो खींचतान होगी। खींचतान होगी तो प्रेम का धागा टूटेगा। एक बार धागा टूट गया तो वापस जोड़ने के लिए फिर गांठ ही लगती है। कई ऐसे भी धागे होते हैं, जिनमें गांठ भी नहीं लगती। उनकी सीधी कोर्ट में पेशी लगती है।अधिकतर पेशियों का अंतिम परिणाम वही तीन बार बोलने वाला कुछ होता है,जिसके पीछे आजकल सरकार पड़ी है।
मुझमें ऐसा क्या बदलाव आ गया,जो मुझे ही दिखाई नहीं दे रहा है और पत्नी को दिख रहा है! न मोटा हुआ हूं ,न दुबला। न स्वभाव बदला है,न रंग-रूप। मूंछें भी इंची टेप से नापकर ही कटवा रहा हूं। सोचा पत्नी से ही पूछ लेता हूं। सो मैंने पूछ ही डाला।
वह बोली,‘देखिए जी! कई दिनों से देख रही हूं कि...मुझ चिर- जिज्ञासु ने बीच में ही टोक दिया,‘क्या देख रही हो?’ वह फिर बोली,‘ यही कि आप बदल गए हैं।अब मेरा गुस्सा होना नैतिक रूप से जायज था,मगर पत्नी के सामने कैसी नैतिकता। नैतिकता के सारे मानदंड पत्नियों के सामने ही तो टूटते हैं! इसलिए मैंने अपना गुस्सा लोकसभा स्पीकर की तरह पीते हुए मन व झक, दोनों मारकर कहा,‘हें...हें...हें... कहां बदला हूं पगली, वैसा का वैसा तो हूं। देख जरा! वही चाल वैसा ही बेहाल!
मेरी नकली मुस्कराहट को उसने वैसे ही लपक कर पकड़ लिया, जैसे दीवार पर छिपकलियां मासूम मच्छरों को धप से पकड़़ लिया करती हैं। मुझे गिरफ्त में आता और गिड़गिड़ाता देख मुझे गुलाम पर उसने तुरुप का इक्का चला दिया, ‘आजकल आप बहुत खिले-खिले रहते हो।
मैं चौंका!... और मैं क्या, मेरी सात पुश्तें चौंक गई। मैं तुरंत बोल पड़ा,‘तुम ही तो कहती थी,सूमड़े- सट्ट मत रहा करो, थोड़ा बोला-चाला करो, लोग पीठ पीछे आपको आलोकनाथ बोलते हैं। जब तुमने इतना सब कहा था तो अपन थोड़ा हंसने-बोलने लगे।’ 
हां, हंसो-बोलो, मगर इतना भी खुश मत रहो कि लोग मुझ पर शक करने लगें?’ 
इस बार मुझे अपनी सगी पत्नी, पत्नी वाले रोल में दिखाई दी। वह पत्नी ही क्या, जो पति को खुश रह लेने दे! मैं उसकी यह पीड़ा समझ गया था कि मैं उसका पति होने बावजूद पीड़ित जैसा क्यों नहीं लग रहा था! मैंने तुरंत अपना सॉफ्टवेयर बदला। उस दिन से मैं फिर  सूमड़ा-सट्ट हो गया।

22 Jul 2019

झमाझम बारिश का एक दृश्य


मानसून की मेहरबानी से झमाझम बारिश हो रही है। सड़क पानी से लबालब है। उसमें बच्चे कागज की कश्ती तैराकर धमाचौकड़ी मचा रहे हैं। मैं खिड़की में से इस नैसर्गिक सौंदर्य को निहार रहा हूँ। रामू काका साइकिल पर चले आ रहे है। वे एकदम से रपटकर गिर जाते है। जिसे देखकर बच्चे खिलखिलाने लगते हैं। काका को उठाने के लिए बच्चे हाथ बढ़ाते हैं मगर झुंझलाए से काका पहले ही लड़खड़ाते हुए चल देते हैं। इनके पीछे चली आ रही आंटी के हाथ से छाता ऐसे उछल कर गिरा,जैसे कि उसका भी मन झमाझम बारिश में भीगने को मचल रहा हो। यह तो शुक्र है कि एक बच्चे ने झट से छाता पकड़कर आंटी को सौंप दिया। अन्यथा छाता झमाझम बारिश का पूरा लुफ्त उठाता। इसी तरह सब्जी वाले की रेहड़ी से आलूटमाटर,टिंडे झमाझम बारिश में भीगने के लिए अपने ऊपर रखी खाली बोरी में से मुँह बाहर निकल रहे थे। इस दौरान एक बच्चे की कश्ती डूबने लगती है। वह अपनी कश्ती को बचाने का पुरजोर प्रयास करता है मगर उसका प्रयास विफल हो जाता है। बच्चा थोड़ी देर तो रोता है,उसके बाद बच्चों के संग नई कश्ती बनाकर धमाचौकड़ी मचाने में मशगूल हो जाता है।
यहाँ से मेरी नज़र एकाएक दीनू काका पर जा टिकती हैं,जो छत से टपकते पानी से उसी तरह परेशान है जिस तरह लोग दिन-ब-दिन बढ़ती महँगाई से परेशान हैं। दीनू काका को इस झमाझम बारिश में छाता नहीं मिल पा रहा है। सीबीआई की तरह घर के सभी सदस्य छाते को ढूंढने में लगे हुए हैं। छाता है कि किसी कुख्यात अपराधी की तरह न जाने कहाँ छुपा हुआ है। घर के बीहड़ इलाके तक में ढूँढ लिया पर छाता हाथ नहीं लग रहा। छाता मिल जाए तो छत का जायजा कर आए। जायजा हो जाए तो कुछ ना कुछ जुगाड़ ही कराए। यहीं से मेरी नजरें उनके पड़ोसी की रसोई पर जा टिकती हैं। भाई साहब झमाझम बारिश में कढ़ाई से गर्मागम पकौड़ी निकाल कर भाभी जी को खिला रहे थे। जिन्हें देखकर कर मेरे मुँह में भी पानी आ गया और पकौड़ी खाने के लिए जी ललचाने लगा। पकौड़ी से हटी नजरें उस लड़की को देखने लगीं जो अपनी बालकनी से हाथ निकालकर झमाझम बारिश के संग झूम रही थी। बौछारे उसके तन-मन को छूकर बेहद प्रफुल्लित हो रही थी। 
खिड़की से दृश्य बदलता है। देख रहा हूँ कि मास्टर आनंदीलाल जी बरामदे में बैठे हुए हैं और अखबार में देश-दुनिया की सैर पर हैं। देश-दुनिया की सैर सपाटे के बीच-बीच में झमाझम बारिश को इस कदर निहार रहे हैं,जैसे की चालान काटते हुए हवलदार ट्रैफिक निहारता है। मास्टरजी के सामने रहने वाली शारदा काकी के घर में भरा बारिश का पानी देश में फैले भ्रष्‍टाचार की तरह निकल नहीं रहा है। वो जेसीबी वालों की तरह भ्रष्‍टाचार रूपी बारिश के पानी को निकालने में लगी हैं। वो जितना पानी निकाल रही है उससे ज्यादा घुस रहा है।
मैं खिड़की से देख रहा हूँ कि झमाझम बारिश थम चुकी है लेकिन बच्चें अब भी धमाचौकड़ी में मशगूल हैं। दीनू काका छत पर आ पहुँचे है। मास्टर जी अखबारी देश-दुनिया की सैर कर पलंग पर खर्राटे भर रहे हैं। पकौड़ी वाले भाई साहब कढ़ाई मांज रहे हैं और भाभी जी छत पर सेल्फी ले रही है। बालकनी वाली लड़की जा चुकी है। शारदा काकी सरपंच को कोस रही है। उसने प्रधानमंत्री आवास का आश्वासन दिया था लेकिन बनवाया नहीं। मैं गर्मागर्म चाय का मजा ले रहा हूँ।


16 Jul 2019

बारिश के बहाने


बारिश का मौसम है। मगर इंद्रदेव की मेहरबानी कि बरखा रानी नानी के घर से छुट्टियां मनाकर लौटी ही नहीं।शायद इसीलिए मानसून लेट है। क्योंकि इसके बिना मानसून दो कदम भी आगे बढ़ता नहीं है। अब से पहले जिन खुशनसीब हिस्सों में हल्की-फुल्की बारिश हुई है। वह गरमी से राहत दिलाने के लिए हुई है। बच्चों द्वारा कागज की कश्ती बनाकर धमाचौकड़ी मचवाने वाली बारिश तो लगता है कि क्रिकेट वर्ल्डकप देखने में व्यस्त हैं। क्रिकेट वर्ल्डकप का क्रेज ही ऐसा है कि बिना देखे बगैर चैन पड़ता नहीं हैं।फिर चाहे बारिश हो या हम।
भारत-पाकिस्तान के वनडे मैच के दौरान भी दो मिनट बिजली गुल हो जाए तो गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाता है। जो कि गुस्सा नहीं होता है। बल्कि क्रिकेट के प्रति प्रेम होता है। इस खेल के प्रति देश में प्रेम ही कुछ ऐसा है। लेकिन अब इंद्रदेव को भी अपनी मेहरबानी की बरखा रानी को नानी के घर से बुला लेना चाहिए। अब तो छुट्टियां भी खत्म हो गई है। स्कूल खुल गई हैं। बच्चे नानी से सुनी कहानियां भूलकर अपने पाठ्यक्रम की कहानियां सुनने के लिए स्कूल जाने लग गए हैं। हम तो पलक पावडे भी बिछाए हुए हैं और पकोड़े तलने के लिए कढ़ाही को भी मांजकर चूल्हे के पास ही रख रखे हैं। ताकि बारिश का आगमन होते ही पकोड़े तलने लग जाए।

इंतजार की घड़ी की सुइयां भी इतनी धीमी गति से चलती है कि इंतजार करते-करते बारिश की पुरानी यादों में खो जाते हैं। बचपन के वो दिन याद आने लगते हैं। जब स्कूल की छुट्टी के समय बारिश होती थी तो बारिश में नहाते हुए घर पहुंचते। बैग में रखी कॉपी-किताबें भीग जाती थी तो उनके एक-एक पन्ने को हिला-हिलाकर सुखाते थे। कोई पन्ना फट जाता था तो उसके गोंद लगाकर चिपकाते थे। दो पन्ने आपस में चिपक जाते थे तो उनमें स्केल फंसाकर अलग करते थे। कागज की कश्ती बनाकर बस्ती में तैराते थे। जिसकी कश्ती की नैया पार लग जाती थी,वह इस तरह से उछलता था जैसे कि वर्ल्डकप की ट्रॉफी जीत ली हो। 
मगर अब स्थितियां बदल गई हैं। आजकल बच्चे पैदल नहीं साइकल रिक्शा,ऑटो एवं बाल वाहिनी वाहनों में सवार होकर स्कूल आते-जाते हैं। पर बारिश में भीगने का मन तो इनका भी बहुत करता है। यह यादें जब भी बारिश होती है तो फिर से तरोताजा हो जाती हैं और नहीं हो पाती है तो यादों में ही रह जाती हैं। यह कोई नहीं चाहता कि इस तरह की यादें यादों में ही रहे। सब चाहते हैं कि बरसात हो तो हम भी अपने संस्मरण फेसबुक पर लिखें और पुरानी यादों को ताजा करें।