यहाँ समय से
पहले आने वाले को कौहतूल भरी निगाहों से निहारते हैं। जब तक पहले आने का कारण नहीं
जान लेंगे। तब तक अपनी निगाहें नहीं हटाते हैं। हाथ भी तब मिलाते हैं,जब तसल्ली हो जाती है कि समय से पहले आने का कोई खास उद्देश्य नहीं है।
समय था तो समय से पहले चले आए। मगर जिनके चले आए हैं,उनके
पास तो समय से पहले आने का समय है ही नहीं। उनके पास तो जो समय दिया गया था,वह भी बड़ी मुश्किल से एडजस्ट
किया है। इसलिए उन्हें समय से पहले आना अजीब लगता है।
फिर वो करीबी से भी बात अजीबोगरीब ही करते हैं।
घर पर मेहमान
समय से पहले आ जाए,तो बवाल हो जाता है। कल आने वाला एक दिन पहले
कहाँ से आ टपका! एक दिन पहले आना इतना अटपटा लगता है,जैसे
दूधवाला महीने से पहले दूध के पैसे माँगने आ गया हो। हॉकर महीना बीता नहीं और पैसा लेने के लिए चला आए तो
लोग उससे अखबार लेना बंद कर देते हैं। इसलिए बेचारा कभी
भी भूलकर महीने से पहले नहीं आता है। बल्कि दो-चार दिन
लेट ही आता है। उधारी लाल तकाजे से पहले चला आए,तो ब्याज की तो छोड़िए। मूल रकम हजम होने पर आतुर हो जाती है। इस भय के कारण बेचारा तकाज़ा के चार दिन बाद ही जाता है।
हमारे यहाँ
पर तो नवदंपति के नौ माह से पहले बच्चा पैदा हो जाए तो सवाल उठने लगते हैं।
अड़ोसन-पड़ोसन तरह-तरह की बातें बनाने लगती हैं। कानाफूसी होने लगती है। भले ही
उसके चरित्र पर एक भी दाग नहीं हो। फिर भी दागदार बताकर बदनाम करने की साजिश रची
जाती है। जब तक सच सामने नहीं आ जाता। तब तक कानाफूसी तो कायम ही रहती है।प्रेमिका
अपने प्रेमी से मिलने के लिए,दिए गए समय से पहले आ जाए तो
प्रेमी उसे संदेह दृष्टि से देखने लगता है। उस वक्त उसके मन में एक ही विचार आता
है कि मेरे अलावा किसी अन्य के साथ तो प्रेम-प्रसंग नहीं चल रहा है। ब्रेकअप नहीं हो
जाए। इस डर के मारे पूछताछ
नहीं करता है। मगर खोजबीन शुरू कर देता है। खोजबीन में सुख-चैन खो देता है। जिसका
सुख-चैन खो जाता है। उसका स्वाभाविक की ब्रेकअप हो जाता है। मायके गई बीवी वापस आने की निश्चित तिथि से
पहले बिना सूचना के चली आए तो पति को दाल में कुछ काला लगने लगता है। कल आने वाली
थी आज ही क्यों चली आई। कुछ दिन और रुक जाती। जैसे प्रश्न अपने आप से ही करने लगता है। पूछने की तो हिम्मत होती नहीं है। क्योंकि पत्नी के आने से
तो जबान पर ताला लग जाता है।
किसी दिन समय
से पहले नल में पानी आ जाए,तो दिनभर मोहल्ले में चर्चा बनी रहती है। उस दिन तो जलदाय विभाग को लंबी
उम्र की दुआएं देते नहीं थकते हैं। अगले दिन उस समय से
पहले ही बर्तन भांडे लेकर बैठ जाते हैं। लेकिन उस समय पर जब नल से एक बूँद पानी की नहीं टपकती है। तब जलदाय विभाग
को कोसने लगते हैं। सड़क पर जाम लगाकर धरना देते हैं। मटका फोड़कर प्रदर्शन करते हैं। ज्ञापन देकर रसातल में गया जल स्तर को ऊपर
उठाने की मांग करते हैं। जबकि अच्छी तरह से पता है। रसातल में गया जल ज्ञापन से तो
क्या? विज्ञापन से भी ऊपर नहीं आएगा। किसी कारणवश सब्जीवाला अपने नियमित समय से पहले
चला आए,तो यह समझते हैं कि जरूर सब्जियां बासी होंगी।
जिन्हें बेचने के लिए चला आया है। इसलिए उसकी सब्जियों
में मीनमेख निकालने लग जाते हैं। रोज बिना भाव-ताव तय किए खरीदने वाले भाव-ताव करने लगते हैं। जब
तक एकाध रूपया कम नहीं कर देता उससे पहले सब्जी नहीं खरीदते हैं। उस दिन और दिनों
से दुगुना धनिया लेना नहीं
भूलते हैं।
यदि ट्रेन
निर्धारित समय से पहले पहुँच जाए तो किसी आश्चर्य से कम नहीं लगती है। जो
घर से यह सोचकर निकलते हैं ट्रेन निर्धारित समय पर तो आने से रही,अक्सर उनकी ट्रेन छूट जाती हैं। फिर वो टाइम की कीमत क्या होती है। बिना
बताए ही जान जाते हैं। इसी तरह पुलिस वारदात से पहले पहुँच जाए,तो एक बार तो यकीन ही नहीं होता है। बल्कि
शक होता है। कहीं वारदात में पुलिस की तो मिलीभगत नहीं।
जो कि अपराधियों को भगाने के लिए समय से पहले आ गई या फिर सबूत मिटाने के लिए चली
आई हो।
अक्सर लेट
आने वाला सरकारी कर्मचारी यदि किसी दिवस निर्धारित समय से पहले ऑफिस आ जाए तो
चर्चा का विषय बन जाता है। उस दिन दिनभर कामकाज के बजाय
उसकी चर्चा रहती है। सहकर्मी पहले आने का कारण जानने के लिए कुछ इस तरह के प्रश्न
पूछे बिना नहीं रहते हैं,क्या बात है सर! आज सूर्य पश्चिम से
निकला था क्या?जो कि आप ऑफिस टाइम से पहले ही चले आए या फिर
कोई उच्चाधिकारी निरीक्षण करने आ रहा है। जिसके भय कारण
चले आए।
किसी भी
कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि दिए गए समय से पहले पहुँच जाए,तो उसका उतना स्वागत-सत्कार नहीं होता है।
जितना की देरी से आने पर होता है। अक्सर कार्यक्रमों में देरी से पहुँचने वाले माननीय नेता जी! यदि किसी
कार्यक्रम में समय से पहले पहुँच जाए तो कई तरह की
अटकले लगना शुरू हो जाती हैं। लोगों को उनकी खादी पर
राजनीतिक स्वार्थ के फूल खेलते हुए दिखाई देने लगते
हैं। समय से पहले आने पर चाकचौंबद व्यवस्थाएं आनन-फानन में तब्दील हो जाती है।
मानसून समय
से पहले आ जाए तो भविष्यवाणी करने वालों की वाणी को लकवा मार जाता है। क्योंकि
उनकी भविष्यवाणी पर मानसून पानी फेर देता है। पानी फिरने के बाद
उन पर से विश्वास उठ जाता है। एक बार विश्वास उठने के बाद फिर कोई भविष्य में भी
उनकी भविष्यवाणी पर भरोसा नहीं करता है। वैसे तो भरोसा भरसक होता है। मगर जब बूंदाबांदी की कहेंगे और होती है मूसलाधार। मूसलाधार की
कहेंगे और होती है बूंदाबांदी। तब शक होता है। जब शक
होता है। भरोसा होते हुए भी नहीं होता है।
समय से पहले आना
जिनको अटपटा लगता हैं। उनके सिर के बाल जब समय से पहले सफेद हो जाते हैं। तब समझ
में आता है। समय से पहले आने में समय का ही संयोग होता
है। इसीलिए समय से पहले चले आते हैं। अन्यथा किसकी बिसात
हैं,जो कि दिए गए समय से पहले चला आए।
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