मनुष्य नामक प्राणी के मुख में जीवनयापन करने वाली जबान ही है,जो कि व्यक्ति के व्यक्तित्व से परिचित करवाती है। उसकी उपलब्धियां और खामियां बताती है। उसके चरित्र का सर्टिफिकेट दिखाती है। मगर कई जबान अपने ही मुख पर मुक्की खाने के लिए कभी भी और कहीं पर भी फिसल जाती है। न समय देखती हैं और न माहौल। बस इन्हें तो लात घूसे और मुक्के खाने से मतलब रहता है। यह सुनहरा अवसर जहाँ कहीं पर भी मिल जाए वहीं पर अग्रणी रहती हैं। अस्पताल में भर्ती होने लायक मार मिल जाए तो अपने आप को इतनी खुशनसीब समझती हैं,जैसे सोने पे सुहागा मिल गया हो।
कई तो ऐसी है कि एक बार फिसलने के बाद संभलने की ही नहीं सोचती है। फिसलती ही चली जाती है। जब तक अपने मानव मालिक की हड्डी पसली एक नहीं हो जाती उससे पहले ब्रेक नहीं लगाती हैं। यह अपने प्राणी के प्राणों की भी परवाह नहीं करती हैं। अनाप-शनाप बोलती हुई वहाँ तक पहुँच जाती हैं। जिसकी सपने में भी कभी कल्पना नहीं की होती है। यह कई दिनों का कोटा एक ही दिन में पूरा करने के लक्ष्य में रहती हैं। इसलिए यह ऐसी जगह पर कि फिसलती हैं,जहाँ पर भीड़भाड़ होती है। जब इनसे भीड़ भिड़ने लगती है, तब यह अपने सशक्त हथियार अपशब्दों का उपयोग करके अपना लक्ष्य प्राप्त कर ही लेती हैं।
कई जबान कतरनी की तरह कितनी तेज चलती है कि रिश्ता नाम के धागे तक को काट देती है। जबकि भली-भांति जानती हैं कि एक बार धागा कट गया तो फिर वह गाँठ के माध्यम से ही जुड़ता है। गाँठ पड़ने के बाद में धागे में लगी गाँठ को कितना ही छिपा लो। वह दिखाई देती ही है।मगर इनके लिए धागा कटे या कटने के बाद गाँठ पड़े या फिर गाँठ खुले, ऐसी जबाने तब तक अपनी स्पीड कम नहीं करती हैं, जब तक रिश्ता नाम का धागा खुद टूटने पर मजबूर नहीं हो जाए।
कई जबाने ऐसी भी हैं जो कि मुँह में होने के बावजूद भी दिखाई नहीं देती हैं। अदृश्य रहती हैं। मगर इन्हें पहचाना बहुत ही आसान है। जहाँ कहीं पर भी लोग यह कहते हुए दिख जाए, मुँह में जबान नहीं है क्या? इसके बाद में भी प्रत्युत्तर नहीं मिले। निरुत्तर मिले तो समझ लीजिए वही अदृश्य जबान है। परंतु ऐसी जबाने कतिपय ही बची हुई है। अधुनातन में तो अपने सगे बाप से जबान लड़ाने वाली जबानों का बोलबाला हैं। एक जमाना था बाप के सामने थोड़ी सी भी जबान बाहर निकल जाती थी तो बाप उसकी जबान खींच लेता था। मगर आज जबान संभाल कर बात कर कहने वाले या तो चुप्पी साध लेते हैं या फिर उस पर ऐसी लगाम लगाते हैं कि उसकी जबान को लकवा ही मार जाता है।
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