मेरी हाइट छ फिट छ इंच है। न एक इंच कम और न ज्यादा है। चाहे इंची टेप से नापकर देख लीजिए। रत्ती भर भी फर्क नहीं मिलेगा। आप सोच रहे होंगे,मैं नाप-तौलकर क्यों बता रहा हूं। इसलिए बता रहा हूं कि मैं अपनी हाइट से परेशान हूं। मेरा जीना दूभर कर रखा है। उसकी वजह से लोग मुझे लंबू कहते हैं।
कई बार तो घरवाली भी मखौल उड़ाने लग जाती है। कहती है कि तुम में और विद्युत खंभे में ज्यादा फर्क नहीं है। तुम चलते-फिरते हो और वह एक जगह खड़ा रहता है। अगर तुम एक फुट छोटे होते,तो अच्छा रहता। तुम्हारी सूरत देखने के लिए दूरबीन की जरूरत न पड़ती।
अब मैं एक फुट कम कैसे होऊं। मार्केट में हाइट बढ़ाने के कैप्सूल तो किस्म-किस्म के मौजूद हैं। मगर हाइट घटाने वाला एक भी नहीं है। अगर होता तो मैं अवश्य लेता। साइड इफेक्ट की भी परवाह नहीं करता। भविष्य में हाइट कम करने का कोई कैप्सूल आएगा,तो मैं लेकर ही रहूंगा। उसकी कीमत चाहे जो भी हो।
घर में जो भी सामान ऊंचाई पर रखा है न,उसे उतारने के लिए सब मुझे ही बुलाते हैं। नहीं जाता हूं,तो कहते हैं कि हम तेरे जितने कद्दावर होते,तो आसमान में छेद कर देते। इक तू है कि सामान नीचे उतारने के लिए नखरे करता है। तुझे इसलिए कहते हैं,तू बगैर एड़ी ऊंची किए कोई भी सामान आसानी से उतार देता है। भगवान ने तुझे यह हाइट दी है,लोगों की सहायता के लिए दी है। इस पर इतना गर्व मत किया कर। मैं कैसे बताऊं कि मुझे अपनी हाइट पर गर्व नहीं,बल्कि शर्मिंदगी है।
जिनके दरवाजों की ऊंचाई मेरी हाइट से कम है,उनमें प्रवेश करते समय अक्सर मेरा सिर टकरा जाता है। एकाध बार तो चोट भी आ चुकी है। उस समय लोग यही कहते हैं कि दिखता नहीं है क्या? झुक नहीं सकता क्या? कईयों के दरवाजे तो इतने छोटे हैं कि झुकने के बावजूद भी बच नहीं पाता हूं। चोट सीधी ललाट पर लगती है। सच पूछिए तो दरवाजों से टकराना आए दिन की घटना हो गई है। अब कोई इसे गंभीरता से नहीं लेता है। कोई लेगा भी क्यों? उनका माथा थोड़ी फूटता हैं। मेरा फूटता है। मुझे लेना चाहिए। मैं गंभीरता से लेकर करूं क्या? मेरी हाइट की वजह से तो लोग अपने घरों के दरवाजे बदलने से रहे।
मैं जब भी बस या रेल में यात्रा करता हूं,तो मेरी हाइट देखकर,वे यात्री तो मुझे कह ही देते हैं,जिनके हाथ एड़ी ऊंची करने के बावजूद भी वहां तक नहीं पहुंच पाते हैं,जहां पर सामान रखना होता है या रखे हुए को उतारना होता है। भाई साहब! हमारा ये बैग ऊपर रख दीजिए। भैया वो सूटकेस नीचे उतार दीजिए। जब मैं नहीं रखता हूं और नहीं उतारता हूं न,तब वे यात्री मन ही मन में बड़बड़ाते हुए कहते हैं कि भगवान ने हमसे थोड़ी सी ज्यादा हाइट क्या दे दी। अपने आप को न जाने क्या समझ रहा है।
एक बार एक पत्रकार ने मेरी बाइट लेनी चाही,पर हाइट की वजह से ले नहीं पाया। बेचारा इतना छोटा था कि दोनों हाथ ऊपर करने के बावजूद भी उसका कैमरा मेरे चेहरे तक नहीं पहुंच पाया। उस समय हम दोनों को अपनी-अपनी हाइट पर बहुत गुस्सा आया। उसे कम गुस्सा आया होगा पर मुझे ज्यादा आया। अपनी-अपनी हाइट को लेकर हम दोनों विवश थे। मुझे पहली बार टीवी पर आने का और उसे पहली बार किसी व्यंग्यकार की बाइट लेने का अवसर हाइट ने छीन लिया।
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