जब मैं ग्यारहवीं में पढ़ता था,तब भूगोल के गुरुजी
ने पनामा नहर के बारे बताया था। श्यामपट्ट पर आड़ी-तिरछी लकीरें खींचकर समझाया था।
लीक से हटकर मत चलना। लीक पर बने रहना। क्योंकि लीक है,तो ठीक है। उस समय
श्याम पट्ट पर खींची आड़ी-तिरछी लीके मस्तिष्क पटल में न बैठी थी। पर,अब लीक का अर्थ समझ
में आ रहा है। भला हो पनामा पेपर्स का जिसने स्मरण करवा दिया। वरना मैं तो भूल ही
गया था। लीक-विक क्या होती है?इससे मेरी स्मरण शक्ति की परख भी हो गई। मुझे आशंका थी कि मेरी
स्मरण शक्ति कमजोर हो गई है।
बताया जा रहा है कि टैक्स बचाने की खातिर
नेता,अभिनेता,ज्वैलर,क्रिकेटर, उद्योगपतियों ने पनामा की शरण ली। व्यक्ति जिंदगी में
किसी ना किसी की शरण तो लेता ही है। क्या है कि बिना शरण के जिंदगी में सुकून नहीं
है। बिना सुकून जिंदगी विरान है। बेचारे करते भी क्या?पैसे रखने के लिए
सुरक्षित स्थान तो चाहिए ना। चलने के लिए लीक तो होना। इनको पनामा में सुरक्षा नजर
आयी तो अपना पैसा रख दिया। ले लिया पनामा की शरण। क्या है कि काला रंग और कालाधन
लोगों के कम पसंद होता हैं। इसीलिए इन्होंने कालेधन को गोरा करने के लिए भेजा होगा।
ताकि जब कभी अपने कालेधन को लाए,तो वह गोरी चमड़ी
में नजर आए। किसी को फुसफुसाहट तक नहीं हो। कोई यह नहीं कहे कि गया था काला,आया है गोरा होकर।
इसलिए यह लोग चोरी-छिपे पनामा पहुंच गए। कालेधन को लेकर। गोरा कराने की खातिर।
कालाधन इनका अपना है। पता नहीं उनके पास ऐसी कौनसी क्रीम या दवा है,जो काले को गोरा कर
देती है। एक हम है,जो नित्य गोरे करने वाली क्रीम यूज करते हैं। फिर भी गोरे नहीं
हुए। पनामा में कोई ना कोई औषधि तो है ही। तब तो मुल्क की पांच सौ फेहरिस्त हैं।
जब से पनामा पेपर्स का मामला उजागर हुआ है।
काग,कोयल,काजल,कोयला ने भी कमर कस ली हैं। यह भी पनामा की ओर जाने को आतुर
हैं। यह लीक-वीक से अनभिज्ञ थे। किंतु अब जानना चाहते हैं। लीक पर चलना चाहते हैं।
इन का आरोप है कि हमने इनसान के लिए क्या नहीं किया?फिर भी आज तक काले हैं। लीक पर नहीं। हमें
भी गोरा होना है। लीक पर चलना है। काग कहता है-मैं सुख-दुख की सूचना देता हूं।
मेहमान आने से पूर्व मैं ही सूचित करता हूं। कांव-कांव करके। कोयल कहती है-जिसकी
मधुर वाणी है। उसकी उपमा मेरे से करते है। मैं गाती हूं तो लोग मंत्रमुग्ध हो जाते
हैं। काजल कहती है-मैं नैनों की सौंदर्य बढा़ती हूं। कोयला कहता है-मैं तो विभिन्न
कार्यों में अहम भूमिका निभाता हूं।
इनसान की खातिर जलकर राख हो जाता हूं। फिर
भी हम काले हैं। लीक पर नहीं है। अब हमें भी गोरा होना हैं। जब कालाधन गोरा होने
पनामा पहुंच सकता है,तो हम क्यों नहीं?कम से कम एक बार हमें भी तो गोरे होने का अवसर दो। जब हम काले
होकर इत्ते कार्य बगैर वेतन-भत्ता लिए कर रहे हैं। गोरे होकर क्या कर सकते हैं?यह तो आप भली भांति
जानते हैं। यह सब लिखकर इन्होंने ने सरकार से मांग की है। कालेधन का गोरा करने का
प्रशिक्षण आरंभ हुआ था या नहीं। यह तो वे खुद जाने। भेजने वाले जाने। मंगवाने वाले
जाने। अब चाहे आधे काले हो,चाहे आधे गोरे हो। पनामा पेपर्स तो लीक हो ही गया।
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