21 Apr 2016

फेंक देते हैं,फेंकने वाले- सांध्‍य दैनिक 6PM इंदौर

गेंदबाज गेंद फेंकता है। बेटमैंन उस पर शॉट मारता है। फिल्डर उसे कैच पकड़ता है। कैच के लिए उसे लपकना पड़ता है। निगाहें गाड़े रखना पड़ता है। सूर्यदेवता को नमस्कार करना पड़ता है। तब कहीं जाकर गेंद हाथ लगती है। फेंकने वाला तो फेंक कर इतिश्री कर लेता है। फेंकने वाले लपकने वाले की अनुपस्थिति में भी फेंक देते है। बस,उन्हें तो फेंकने से मतलब है। उनका कार्य है,फेंकना। चाहे मैदान में लपकने वाले हो या नहीं। फेंकने वाले हर जगह विराजमान है। फेंकने की भी कई बैराइटी है। नेतागण भाषण फेंकने में महारथी है,तो लोग खाली प्लॉट में कूड़ा-कचरा फेंकने में। क्या है कि फेंकने में न तो मेहनत लगती है?नहीं खर्चा। फेंकना सरल कार्य है। लपकना कठिन। हाल ही में एक शख्स ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर जूता फेंक दिया। हांलाकि जूता उनके समीप से गुजर गया। शख्स गिरफ्तार हो गया। लेकिन जूता तो सुर्खियों में आ गया। अकेले केजरीवाल ही नहीं अपितु और भी कई नेतागण है,जिन पर जूता फेंका गया। फेंकने वाले कहां और कब?और क्या फेंक दे?यह कोई नहीं जानता। यह इल्म होता तो केजरीवाल पहले से ही जूता लपकने वाले तैयार रखते। क्योंकि इस क्षेत्र में लपकने वाले मिल जाते हैं। वैसे तो मिलना मुहाल है। कई फेंकने वाले तो अपने नाम से नहीं। बल्कि फेंकू के नाम से जाने जाते है। लोग उन्हें फेंकू कहकर संबोधित करते हैं। फेंकना इनकी रोजी-रोटी का साधन है। एक तरह से यूं कहे सकते है,फेंकना इनका धंधा है। अगर यह फेंके नहीं तो भूखे मर जाए। धंधा-पानी चौपट हो जाएं। अपना व परिवार का पेट भरने के लिए कुछ-ना-कुछ तो फेंकना पड़ता है। इसलिए कभी जूता,चप्पल तो कभी टमाटर,अंड़े फेंक देते है। इनके पास जो फेंकने लायक होता है,वहीं फेंकते है। वैसे भी व्यक्ति अपनी हैसियत के मुताबिक ही फेंकता है।
इनमें भी कई फेंकने वाले तो फेंकने में फेंकलॉजिस्ट होते हैं। यह फेंकलॉजिस्ट अपनी अर्हता के मुताबिक नहीं फेंकते। यह जूते,चप्पल,टमाटर,अंड़े भी नहीं फेंकते। 
यह तो अपनी जेब भरने के आइडिया फेंकते। लोगों को बेवकूफ कैसे बनाएके हंथकड़े फेंकते है। रिश्वत लेने के नायाब तरीके फेंकते है। मुर्गा या मुर्गी को फंसाने का जाल फेंकते हैं। कैसे भी एक बार मुर्गा या मुर्गी फंस जाए?इसकी माल जपते रहते हैं। यह यदाकदा नहीं फेंकते। नित्य फेंकते है। कहते है ना सौ पत्थर फेंकने पर एक पत्थर तो सटीक लगता ही है। शायद इसीलिए फेंकने वाले फेंकते होंगे। फेंकने वाला यह नहीं देखता है,जिसके समक्ष मैं फेंक रहा हूं। वह लपकने में कामयाब है या नहीं। उसे लपकना आता है या नहीं। फेंकने वाले मिर्च-मसाला लगाकर फेंकते है। लपकने वाले को लपकने के लिए विवश कर देते है। चाहे वह लपकने में सक्षम हो या नहीं। यह नहीं देखते फेंकने वाले। यह तो राम-नाम जपना और पराया माल अपना की ताक में रहते है। यह अपनी छोली से जित्ता फेंकते है। उसका दुगुना नहीं मिले। तब तक फेंकते रहते है।







21.04.2016  के  दैनिक सांध्‍य 6PM NEWS इंदौर में ।

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