22 अप्रैल 2016 के दैनिक हरिभूमि |
आज विश्व पृथ्वी दिवस
है। सम्पूर्ण ब्रह्मांड़ में पृथ्वी एक है। वसुधा मैया की संतान अनेक है। वसुधा
मैया सबका खयाल रखती है। इसकी दृष्टि में पूत-कपूत सब समान है। कृत्रिम प्राकृतिक
सबका बोझ उठाती है। विविध सौंदर्य से अभिभूत है। रत्ती भर अभिमान नहीं। करूणा,दया की मूर्त है।
शांतप्रिय नैसर्गिक है। लेकिन जब मैया के कपूत अपनी हरकतों से बाज नहीं आते है,तो मैया इन्हें सबक
सीखाने के लिए विकराल रूप धारण कर लेती है। तबाही मचा देती है। भूकम्प,बाढ़,सूखा,अकाल,आदि लाकर,समझाने की कोशिश करती
है। पर,इन पर जूं तक नहीं
रेंगती। हर बार मैया यहीं कहते है-अब भी वक्त है,सुधर जाओं। प्रकृति का विदोहन मत करों।
पर्यावरण दूषित मत करों। कमबख्त मानते ही नहीं। वसुधा मां कहती रहती है। यह इस कान
से सुनकर उस कान से निकाल देते हैं। अपने स्वार्थ पूर्ति हेतु अंजाम देते रहते
हैं। एक मां अपने बेटों का कभी बुरा नहीं चाहती। चाहे वह जन्म देने वाली मां हो।
चाहे वसुधा मां हो। उसे अपनी संतान की सदैव फिक्र रहती है। वह अपनी संतान को सदैव
प्रफुल्लित देखना चाहती है। संतान ही निकक्मी हो सकती है,मां नहीं। जब संतान
निकक्मी हो जाती है,तो मां कान एठती है। प्यार-दुलार से समझाती है। फिर भी नहीं समझे
तो,वह अपने तरीके से समझाती
है। वसुधा मैया के तरीके से तो हम वाकिफ है ही। किस तरीके से समझाती है।
मां के यह लाल तो इत्ते
ऊधमगारी है कि अपने हरकतों से बाज ही नहीं आ रहे। ऊधम यह करते है और जान बेकसूरों
को गवानी पड़ती है। इनसे तो अब वसुधा मां भी तंग आ गई। यह पर्यावरण दूषित करने पर
तुले है। पहाड़ ध्वस्त कर दिए। नदियों को गंदी कर दी। जल बर्बाद कर रहे है। अपने
स्वार्थ की खातिर पता नहीं क्या-क्या कर रहे है?वसुधा मैया ने हमारे लिए क्या नहीं किया?जीने के सभी संसाधन
उपलब्ध करवाए है। लेकिन हम असीमित संसाधनों को सीमित करने में लगे है। इसी वजह से
वसुधा मैया का ज्येष्ठ पुत्र किसान खामियाजा उठा रहा है। फंदे से लटक रहा है। अपने
ज्येष्ठ पुत्रों की इस तरह की मृत्यु से वसुधा मैया भी बेबस है। दुखद है। सही
मायनों में धरतीपुत्र ही वसुधा मैया के रखवाले है। इन्हीं मैया की फिक्र है। हम सब कैसे भूल जाते है?जीने का अधिकार वसुधा
मैया ने ही दिया है। इसी ने पंचतत्व दिए है।इसकी की गोद में जन्म-मृत्यु है। मानव,पशु-पक्षी,जीव-जन्तु,पेड़- पौधे,कीड़े-मकोड़े,सब इसी वसुधा मां के लाल
है। इन सबका काल इनसान बना बैठा है। इसको वसुधा मां की फिक्र ही नहीं। चकाचौंध के
भूलभूलैया में उलझा हुआ है। प्रतिस्पर्धा में लगा है। इसके पास फुरसत ही नहीं।
वसुधा मैया के लिए। कभी सोचता नहीं मैया के संदर्भ में। हमारा भी कुछ दायित्व तो
बनता है। वसुधा मैया की सेवा-सत्कार करने का।अब भी वक्त है वसुधा भैया की शरण में
जाने का।अन्यथा विनाश के दिन दूर नहीं।
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