दो हजार का नोट और मेरी दिनचर्या
सुबह जल्दी जगा। बैंक खुलने से पहले लाइन में
लगा। तब कहीं जाकर नम्बर आया। कड़ी मशक्कत
वहां से मैं मन मसोस कर चला आया। क्योंकि सुबह
से कुछ भी नहीं खाया था। बर्गर खाने का मन हुआ। पर, बर्गर वाले ने बर्गर खिलाने से पहले ही पूछ लिया। ‘छुट्टे तो हैं ना!’ मैंने कहा- ‘दो हजार का नोट है।’
यह
सुनते ही उसने बर्गर जैसा मुंह बना लिया। यहां से सीधा सब्जीमंडी पहुंचा। यहां भी
वहीं आलम था। पेट में चूहे कूद रहे थे,यह
भी मुझे मालूम था। कचौरी खाने को जी
ललचाने लगा। यहां मैंने चतुराई दिखाई। उसने पूछा- ‘छुट्टे तो हैं ना!’ मैंने
कहा- ‘हां जी! है। आप तो कचौरी दीजिए।’ उसने कचौरी की प्लेट हाथ में थमाते हुए
कहा- ‘पेमेंट कीजिए।’ मैंने दो हजार का नोट थमाते हुए कहा-‘यह लीजिए।’ दो हजार के नोट को देखते कहा-‘कचौरी वापस कीजिए और यहां से चलते
बनिए।’
वहां से मैं मुंह लटकाय आ गया। हजामत किए हुए
कई दिन हो गए थे। सोचा, क्यों ना दाढ़ी ही करवालु। खाली सीट
देखकर उस पर बैठ गया। नाई बोला-‘पहले
सामने जो लिखा हुआ है। उसे पढय़े,फिर
बैठए।’ मैंने गर्दन घुमाई और सामने जो लिखा था,उसे पढ़ा। ‘अभी हम दो हजार व पांच सौ का नया नोट
नहीं ले रहे हैं। कृपया हमारी मजबूरी समझए।’ यह
पढक़र मैं चुपचाप ही नाई की दुकान से बाहर आ गया।
चाय पीने की तलब लगी। पर,समस्या वहीं थी। मैंने सोचा,जो होगा सो देखा जाएंगा। चाय तो पीनी
है ही। उसने गर्मा-गर्म चाय पिलाई। चाय पीकर मुझे राहत आयी। पर,जब पैसे देने की बारी आयी,तो वह दो हजार को नोट देखकर चाय की तरह
उबलने लगा। मैंने उससे कहा-‘भाई!
गर्म क्यों हो रहे हो? पैसे दे तो रहा हूं।’ वह शांत होते हुए बोला-‘पैसे तो दे रहे हो। पर, मैं तुम्हे 1995 रूपए कहां से दूं।’ यह तो शुक्र है,एनवक्त पर पड़ोसी वर्माजी आ गए। और
उन्होंने चाय का भुगतान कर दिया।
चाय की दुकान से बाहर निकला ही था कि चप्पल ने
धोखा दे दिया। एक चप्पल हाथ में और एक पैर में थी। लडख़ड़ाता हुआ डॉक्टर मोची के
पास पहुंचा। इलाज करवाने हेतु। उसने तुरंत दुरुस्त कर दिया। मैंने कहा-‘कितने रूपए देने है।’ वह बोला- ‘दो रूपए दे दीजिए भाई!’ मैं बोला- ‘दो रूपए तो नहीं है। दो हजार का नोट
है।’ मोची बोला- ‘गरीब आदमी के साथ क्यों मजाक कर रहे हो,भाई! नहीं है,तो बाद में दे देना।’ यह सुनते मैं वहां खिसक लिया। और दो
हजार के नोट के चक्कर में दो रूपय उधार छोड़ आया।
No comments:
Post a Comment