11 Dec 2016

मेरे अरमान कब पूरे होंगे

बस,बहुत हो गया। अब और सहन नहीं होता। यह भी कोई जीना है। जिसमें ऐशो-आराम हराम है। न मद्यपान न धूम्रपान है। सिर्फ सुनसान है। दो दिन की जिंदगी और चार दिन की चांदनी है। दो दिन तो आने-जाने में निकल जाते हैं। एक दिन आने का और एक दिन जाने का। बची चार दिन की चांदनी। वे भी इधर-उधर के कार्यों में यूं ही कट जाती हैं। यह वक्तव्य मेरे परम मित्र बिट्टू का है। एकाध दिन से वह कुछ इस तरह के दुखड़े गा रहा हैं। कहता है कि यार! लोग खुले आसमान तले उन्मुक्त उड़ रहे हैं। उन्हें देखकर मेरा भी मन करता है। उनकी तरह उड़ान भरने का। जब भी उड़ान भरने को आमादा होता हूं,तो घरवाले पर पकड़ लेते हैं। फडफ़ड़ाता हूं,तो पर काटने दौड़ते हैं। बात-बात पर नसीहत देते हैं। नहीं कहीं जाने देते है और ना कुछ ऐसा-वैसा खाने-पीने देते हैं। यहां,वहां जाने से बीमार हो जाएंगा। यह,वह खाने-पीने से पेट खराब हो जाएंगा। इस तरह के प्रवचन सुनाते हैं। अब तू ही बता,जो व्यक्ति बीमार ही होगा। वह घर बैठे भी होगा। नहीं होगा,तो कहीं पर भी आने-जाने से नहीं होगा। इसी तरह पेट खराब होना होगा,तो ऐसा-वैसा खाना-पीना खाएं बिना भी होगा। शरीर तो नश्वर है। क्रिया-प्रतिक्रिया तो होती रहती है।

देश कब का स्वतंत्र हो गया। पर,मेरी स्वतंत्रता पर अब भी आपका आधिपत्य है। जबकि मैं तो 18 उम्र भी क्रॉस कर गया हूं और मुझे वोट डालने का अधिकार भी मिल गया है। निर्वाचन आयोग द्वारा जारी बाकायदा पहचान पत्र भी है। जब सरकार ने सरकार चुनने का अधिकार दे दिया। तो घरवाले क्यों नहीं समझतेलडक़े के भी कुछ अरमान है। जिन पर मोहर लगाने का अधिकार खुद के हैं। मेरे अरमानों का प्रचार-प्रसार नहीं करने दे,तो कम से कम गोपनीयता पर ही ठप्पा लगा दे। जिससे मेरी जीत तो सुनिश्चित हो जाएंगी। मन में मन मसोस कर जीने का खयाल तो बार-बार नहीं आएंगा। मैं भी तो आज का नवयुवक हूं। और आज के नवयुवकों की तरह़ जीना मेरा भी आधिपत्य है। ये दिल फैशन,हेयर स्टाइल,स्मार्ट मोबाइल मांगता है। बाइक होतो सोने में सुहाग है। यहीं तो पर्सनल्टी के साधन हैं। जिनके उपयोग से बेहतरीन पर्सनल्टी दिखती है। आज के युग में जो दिखता है,वहीं बिकता है। जिस दिन यह सब प्राप्त हो गया। उस दिन से मेरा भी फेसबुक,वाट्सएप,ट्विटर,इंस्टाग्राम पर अकाउंट होगा। नये-नये फेंरड्स होंगे। रोज अलग-अलग ऐंगल से सेल्फी लेकर अपलोड करूंगा। पर,क्या मेरे अरमान पूरे होंगेकहते है कि सच्चा मित्र वहीं है,जो अपने मित्र की भावनाओं को समझे। हो सके तो उन्हें पूर्ण करने की कोशिश भी करें।
 

मैंने बिट्टू से कहा-देख भाई! बात ऐसी है। तेरी इच्छाओं की पूर्ति संभव है।’ कैसे संभव हैउसने उत्कंठातुरता से पूछा। मैंने कहा- तेरे अरमानों का विधेयक’ घरवालों के सदन में रख। जब विचार-विमर्श हो,तब पक्ष-विपक्ष पर नजर रख। कौन तेरे पक्ष में है और कौन विपक्ष में है। अगर विपक्ष का पलड़ा भारी है,तो पहले उसका वजन कम कर। जब पक्ष का बहुमत पूर्ण हो जाए। तब अपने अरमानों का विधेयक’ सदन में रख और पास करवा ले।’ मित्र यह सुनकर चकित रह गया। बोला यार! वाह! क्या बात कहीं है। मैंने तो यह सोचा ही नहीं था। शुभ कार्य में देरी क्योंआज ही श्रीगणेश करता हूं। अक्सर हम सबके घरवालों की सदन शाम को बैठती हैं। वह भी भोजन के वक्त। क्योंकि इस वक्त सब विराजमान रहते हैं। यहीं सुअवसर होता है,कहने-सुनने और घर,गृहस्थी संबंधी योजनाओं पर विचार-विमर्श करने का। इसी समय घर के नियम,कानून बनते-बिगड़ते हैं। फेरबदल होता है। जिसको जो कहना होता है,वह कहता है। जिसको सुनना होता है,वह चुपचाप सुनता है। जो नहीं कहता है और नहीं सुनता है। वह भोजन करके खिसक लेता है। ऐसा पारिवारिक सदन में ही होता है। क्योंकि यहां दल रहित सरकार होती है। पर,पक्ष-विपक्ष यहां भी होता है।



बिट्टू ने यह सोचकर अपने अरमानों का विधेयक’ सदन में रखा। इस बहाने पक्ष-विपक्ष का बहुमत भी ज्ञात हो जाएंगा। और मेरा विधेयक’ भी पास हो जाएंगा। एक बार तो सबके-सब उसकी तरफ कौतूहल भरी निगाहों से देखें। पहले तो गृहस्वामी ने बात को टालने की कोशिश की। पर,किसी ने दबे स्वर में उसकी मांग जायज बता दी। बस,फिर क्या था?बहस आरंभ हो गई। पक्ष पास करवाने पर जोर देना लगा और विपक्ष स्थगित करवाने पर अड़ गया। जैसे-तैसे करके निम्न सदन में पास हो गया। पर,उच्च सदन में आकर रूक गया। इस सदन में पूर्ण बहुमत नहीं होने से वहीं का वहीं अटका है। बिट्टू मन मसोकर कर कह रहा है कि आखिरकार मेरे अरमान कब पूरे होंगेतुम्हारे पक्ष-प्रतिपक्ष के चक्कर में मुझे क्यों घसीट रहे हो। खुद के मतलब का कोई विधेयक होतो,आनन-फानन में पारित कर लेते हो। कानों-कान किसी को खबर तक नहीं लगने देते हो। क्या यहीं तुम्हारा कानून,कायदा हैमेरी बारी आती है,तो पक्ष-विपक्ष में बंट जाते हो। और मैं तुम्हारा मुंह ताकता रह जाता हूं। आखिरकार मेरा कसूर क्या हैयह तो बताओं! भगवान जानें, बेचारे बिट़टू  के अरमान कब पूरे होंगे

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