31 May 2018

शीतलता से बढ़ते है पेट्रोल-डीजल


प्रतिस्‍पर्धा के दौर में कौन नहीं बढ़ रहा? हर कोई बढ़ रहा है। बढ़ता है,तभी आसमान को छूता है। बढ़ते हुए को दुनिया सलाम करती है। घट़ते हुए को कोई सांत्‍वना भी नहीं देने आता। ऐसे में पेट्रोल-डीजल पीछे क्‍यों रहे? ये भी बढ़ने के लिए ही तो पैदा हुए हैं। लेकिन पेट्रोल-डीजल आसमान छूने के लिए बढ़ते हैं,तो हम आसमान को सिर पर उठा लेते हैं। मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक हाहाकार मचाए रहते हैं। सोशल मीडिया पर तो  पेट्रोल डीजल की बढ़त को लेकर हमारी 'बढ़त' इस तरह हावी रहती है, जिसे देखकर पेट्रोल-डीजल चिढ़ जाते हैं और वर्तमान दर से बेदर्द होकर नर्इ दर का आनंद लेते है जबकि भ्रष्‍टाचार,चोरी,डकैती,अपहरण व बलात्‍कार निरंतर बढ़ रहे हैं। इनको लेकर तो हम जरा भी नहीं सोचते और ना ही बवाल मचाते हैं। जो यदा-कदा बढ़ते हैं उनकी की टांग पकड़कर खींचते हैं। पेट्रोल-डीजल
असल में टांग ही खींचनी है तो इन निरंतर वालों की खींचो ना,जो मानवीय मूल्यों को क्षति पहुंचा रहे हैं। पर निरंतर वालों से तो आप भी डरते हैं।

इसी तरह बढ़ते तापमान के सम्‍मुख भी कोई मुंह नहीं खोलता। मुंह खोलना तो दूर घर से बाहर ही नहीं निकलते हैं। अगर दम ही है,तो बढ़ते तापमान की टांग खींचकर बताओं। जब जाने,हम तो। आप कितने दमदार है। जबकि बढ़ता तापमान तो हाल-बेहाल कर देता है,फिर भी हम उसका बाल भी बांका नहीं कर सकते। ज्‍यादा से ज्‍यादा कूलर-एसी की हवा लेकर राहत की सांस ले सकते हैं। लेकिन तापमान से इसलिए डरते हो कि वह आग बरसाते हुए बढ़ता है और पेट्रोल-डीजल पर इसलिए हावी हो जाते हो कि वे शीतलता के साथ बढ़ते हैं। पेट्रोल-डीजल की बढ़तको लेकर हम सरकार को कोसते हैं। भला-बुरा कहते है। सरकार तो पेट्रोल-डीजल की मां-बाप है। कौन मां-बाप अपनी संतान को बढ़ते हुए नहीं देखना चाहता। दिन दुगुनी और रात चौगुनी की रफ्तार से संतान की बढ़त होती हैं,तब सबसे ज्यादा खुशी माता-पिता को ही होती हैं। सरकार तो माता-पिता होने का फर्ज निभा रही है। आप-हमकों सरकार का फर्ज भी बुरा लेगे तो,इसमें सरकार भी क्‍या कर सकती?
पेट्रोल-डीजल का एक ही तो सपना है,पैसे दर पैसे बढ़ते हुए,जल्‍दी सी एक सौ को आरपार करना। जब भी मंजिल की ओर बढ़ते हैं तो राह में कभी चुनाव तो कभी विपक्ष राह का रोड़ा बनकर खड़ा हो जाता हैं। और आगे बढ़ने से रोकने लगते हैं। और कभी-कभी तो रोकते ही नहीं वर्तमान दर से दस-बीस पैसे पीछे भी धकेल देते हैं। बढ़ने से ही रोकना है तो उन रिश्‍वतखोरों को रोको ना,जो सरेआम रिश्‍वत लेते हैं। भ्रष्‍टाचार बढ़ा रहे है। इसी तरह रोकना है तो उन नेताओं को बढ़ने रोको,जो चुनावीं मौसम में तो एक से बढ़कर एक वायदे करते हैं और जीतने के बाद शक्‍ल भी नहीं दिखाते।
मेरा तो मानना है कि पेट्रोल-डीजल इसी तरह बढ़ते रहेंगे तो सरपट दौड़ते वाहनों की बढ़ोतरी में कमी होगी। वाहनों की बढ़ोतरी में कमी होगी तो पर्यावरण में बढ़ोतरी होगी। पर्यावरण की बढ़ोतरी होगी तो बारिश होगी। बारिश होगी तो घटता जल स्तर बढ़ेगा। जल स्तर बढ़ेगा तो किसान खुशहाल रहेगा। किसान खुशहाल रहेगा तो देश की प्रगति होगी। देश की प्रगति होगी तो विकासशील से विकसित की ओर बढ़ेगा।

17 May 2018

तूफान को लेकर दिखा उत्‍साह


तूफान धरा पर जरा कम सोशल मीडिया पर पुरजोर आया। इसे लेकर ऐसा उत्‍साह दिखा जैसा नागिन डांस करते हुए दूल्‍हे के दोस्‍तों के चेहरे पर झलकता हैं। अलर्ट के बाद ऐसे राह देख रहे थे जैसे बड़े दिनों बाद मामा घर पर आ रहा हो। उत्‍साह की हवा ने तूफान के वीडियों को इस तरह वायरल किया कि सोशल मीडिया पर धूल भरी आंधी चलती हुई तथा मोबाइल में अंधेरा छाते हुए दिखा। अमुख शहर में आ गया है। अभी हमारी ओर बढ़ रहा।कि टैग लाइन के साथ आया तूफान सोशल मीडिया पर धरा पर आए तूफान की स्‍पीड से कई गुणा तेजी से आता हुआ दिखा।
                                                              सोशल मीडिया पर पुरजोर आए तूफान ने शायद ही ऐसा कोई फेसबुक वॉल और वाट्सएप ग्रुप छोड़ा होगा,जिसको अपनी चपेट में नहीं लिया हो। जो भी चपेट में आया,उसी ने तूफान के बारे ऐसे बताया जैसे न्‍यूज चैनल का एंकर किसी सनसनीखेज खबर के दौरान बताता है। दे‍खिए,तूफान का ये अद्भूत दृश्‍य। देखेगे तो हिलाकर रख देगा। अब से पहले कभी नहीं देखा होगा,ऐसा तूफान। जिसे देखकर लोग बिना आए तूफान के ही घरों के खिड़की,दरवाजे बंद करते हुए दिखे। उस दौरान जरा-सी आंधी भी चली तो सोशल मीडिया पर आया तूफान धरा पर उतरते हुए दिखा। पेड़-पौधे उखड़ते और टीन-टप्‍पर उड़ते हुए दिखे। मकान धराशायी होते हुए दिखे। कुछ लोग तूफान को मोबाइल में कैद करने के लिए छत पर चढ़ते हुए दिखे। उनके मोबाइल में तूफान का बवंडर कैद हो जाए तो वे भी सोशल मीडिया पर तूफान ला दे,उनमें ऐसा उत्‍साह दिखा।
एकाएक आए बवंडर के बाद तो पूर्वानुमान कर्ता भी अपना अनुभव साझा करते हुए दिखे। जबकि धरा पर आए बवंडर से पूर्व पूर्वानुमान कर्ताओं की दिमाग की बत्‍ती गुल कैस हो गई थीउन्‍होंने अपने पूर्वानुमान से पहले आगाह क्‍यों नहीं कियाऔर उन भविष्‍यवाणी कर्ताओं की वाणी को क्‍या लकवा मार गया था,जो बूंदाबांदी की भी मूसलाधार भविष्‍यवाणी कर देते हैं।
                                                               उनसे मैंने पूछा तो एक ने बताया कि हम कैसे करतेहम तो बाल-बच्‍चों का भविष्‍य बनाने में लगे हुए थे। उनके भविष्‍य से फुरसते मिलते ही हम जरूर भविष्‍यवाणी करते हैं। आप चाहे तो हमारी पिछला रिकॉड़ देख सकते है। किसी भी राज्‍य के चुनाव से पूर्व की एग्जिट पोल देख सकते है। मौसम की भविष्‍यवाणी देख सकते हैं। सटीक ही मिलेगी। और हां,तूफान के उपरांत तो हमने अलर्ट जारी कर ही दिया था कि अलर्ट रहना हैं और सोशल मीडिया के सिवाह कहीं भी आवाजाही नहीं करनी हैं।
इन पूर्वानुमान कर्ताओं और भविष्‍यवाणी कर्ताओं से नेक तो सोशल मीडिया पर तूफान को लेकर उत्‍साह में दिखे लोग लगे,जो तूफान आने के बाद सावधान रहने की चेतावनी देते हुए दिखे। आपातकालीन सामग्री और आवश्‍यक खाद पदार्थ,कि जानकारी इस तरह से बता रहे थे,जैसे योगगुरु योग के दौरान बताता है।
धरा पर तो तूफान घंटा या आधा घंटा ही आया होगा। लेकिन सोशल मीडिया पर पुरजोर से आए तूफान की धूल अब भी रह-रहकर उड़ रही है। धूलकण आंखों में चुभ रहे हैं। बार-बार आंखों को मसलने के बाद भी धूलकण रमे हुए है।


16 May 2018

तूफान को लेकर दिखा उत्‍साह


 तूफान धरा पर जरा कम,सोशल मीडिया पर पुरजोर आया। इसे लेकर ऐसा उत्‍साह दिखा,जैसा नागिन डांस करते हुए दूल्‍हे के दोस्‍तों के चेहरे पर झलकता है। अलर्ट के बाद ऐसे राह देख रहे थे,जैसे बड़े दिनों बाद मामा घर पर आ रहा हो। उत्‍साह की हवा ने तूफान के वीडियों को इस तरह वायरल किया कि सोशल मीडिया पर धूल भरी आंधी चलती हुई तथा मोबाइल में अंधेरा छाते हुए दिखा। तूफान को लेकर दिखा उत्‍साह

अमुख शहर में आ गया है। अभी हमारी ओर बढ़ रहा।की टैग लाइन के साथ आया तूफान धरा पर आए तूफान की स्‍पीड से कई गुणा तेजी से आता हुआ दिखा।

शायद ही ऐसा कोई फेसबुक वॉल या वाट्सएप बचा हो,जिसको तूफान ने अपनी चपेट में नहीं लिया हो। जो भी चपेट में आया,उसी ने तूफान के बारे ऐसे बताया,जैसे न्‍यूज चैनल का एंकर किसी सनसनीखेज खबर के बारे में बताता है। दे‍खिए,तूफान का ये अद्भूत दृश्‍य। देखेगे तो हिलाकर रख देगा। जिसे देखकर लोग बिना आए तूफान के ही घरों की खिड़की,दरवाजे बंद करते हुए दिखे। उस दौरान जरा-सी आंधी भी चली,तो सोशल मीडिया पर आया तूफान धरा पर उतरते हुए दिखा। पेड़-पौधे उखड़ते और टीन-टप्‍पर उड़ते हुए दिखे। मकान धराशायी होने लगे। कुछ लोग तूफान को मोबाइल में कैद करने के लिए छत पर चढ़ गए,ताकि मोबाइल में बवंडर कैद हो जाए, तो वे भी सोशल मीडिया पर तूफान ला दे,उनमें ऐसा उत्‍साह दिखा।

एकाएक आए बवंडर के बाद तो भविष्‍यवाणी वाले भी अपना अनुभव साझा करते हुए दिखे। जबकि धरा पर आए बवंडर से पहले भविष्‍यवक्‍ताओं की दिमाग की बत्‍ती गुल कैस हो गई थीउन्‍होंने पहले आगाह क्‍यों नहीं किया? उनकी वाणी को क्‍या लकवा मार गया था,जो बूंदाबांदी की भी मूसलाधार भविष्‍यवाणी कर देते हैं।

धरा पर तो तूफान घंटा या आधा घंटा ही आया होगा, लेकिन सोशल मीडिया पर पुरजोर से आए तूफान की धूल अब भी रह-रहकर उड़ रही है। धूल-कण आंखों में चुभ रहे हैं। बार-बार आंखों को मसलने के बाद भी रमे हुए है।

7 May 2018

अमूल्‍य वोट के लिए...


गिरधारी लाल जी चुनाव में शिकस्‍त खायी है। तब से आएदिन आयोजनों में मुख्‍य अतिथि या विशिष्‍ट अतिथि के रूम में शिरकत कर रहे हैं। वे अतिथि बनाए नहीं जाते। खुद बन जाते है। तिकड़म-अकड़म लगाकर मंचासीन हो जाते है। बाकी अतिथिगण तो बीच में ही चलते बनते है। लेकिन गिरधारी लाल जी समापन तक डटे रहते है। कुरसी पर टिके रहते है। उन्‍हें कुरसी से अगाध लगाव है। उसके लिए वे किसी भी नीति को गति दे सकते है। प्रणनीति छोड़कर रणनीति अपना सकते है। दल से बेदखल हो सकते है। सत्‍तारूढ़ दल से हाथ मिला सकते है।
अमूल्‍य वोट के लिए...
गिरधारी लाल जी गत चार वर्ष में चार सौ से ज्‍यादा आयोजनों का व्‍यंजन खा चुके है। डकार तक नहीं ली। ले कैसे? लेने के लिए फुरसत ही नहीं है। आयोजन में लाइजन बनाने में मशगूल रहते है। चुनाव में लाइजन बहुत मायने रखता है। आचारसंहिता लगने से लेकर प्रचार के आखिरी दिवस तक। मतदान से लेकर परिणाम दिवस तक। लाइजन ही काम करता है। फिर लाइजन से तो वह अमूल्‍य वोट मिल जाता है,जो किसी ओर को जा रहा होता है। डकार लेने के लिए तो आयोजक व अवाम हैं ना। डकार ले सकते हैं। लेते भी होंगे।
गिरधारी लाल जी छोटे-मोटे प्रोग्रामों में तो बिना आमत्रंण के चले जाते हैं। उदर पूर्ति परिपूर्ण करके आते है। कुआं पूजन,ब्‍याह-शादी,सवामणी,जागरण,आदि-इत्‍यादि में तो जाना भूलकर भी नहीं भूलते है। उनका मानना है कि ऐसे अवसरों पर आने-जाने से भी अमूल्‍य वोट मिलता है। और क्षेत्र में गत चार वर्ष में जो भी स्‍वर्ग सिधारे हैं। उनके घर गिरधारी लाल जी अवश्‍य पधारे है। मृत्‍यु के घर जाकर श्रद्धा‍जंलि अर्पित करने से अमूल्‍य वोट बिना मूल्‍य के ही मिल जाता है। ऐसा उनका मानना है। माननीय बनने के लिए मानना पड़ता है। मान ना मान मैं तेरा मेहमान भी बनना पड़ता है। चरण स्‍पर्श का अभिनय करना पड़ता है। भले ही चरण स्‍पर्श हो या ना हो। हाथ को चरण सीमा तक ले जाकर माथे के लगाना पड़ता है। एक अमूल्‍य वोट के लिए,ना जाने क्‍या-क्‍या ढोंग-पाखंड करना पड़ता है। झूकना पड़ता। सुनना पड़ता है। वोटर की मनोभावना के अनुकूल चलना पड़ता है।

गिरधारी लाल जी इतने उदात्‍त है। उनके बिना बुलाए चले जाने से तो चलता प्रोग्राम परिवर्तित हो जाता है। घंटे आध घंटे के लिए अवरूद्ध हो जाता है। बिन बुलाए गिरधारी लाल ‘नेताजी’ पधारते है तो मेजबान को उनकी आवगभगत में पलक पॉंवड़े बिछाना पड़ता है। दरी पट्टी थोड़ी है कि झाड़ी और बिछा दी। पलक पांवड़े है,बिछाने में टाइम तो लगता है। घंटा या आधा घंटा गवाना पड़ता है। झूठ-मूठ कहना भी पड़ता है। ‘ये तो हमारा सौभाग्‍य है। बिना बुलाए आप हमारे यहां पधारे। आपके आगमन से कार्यक्रम की शोभा बढ़ गई।’ शोभा तो बढ़ी ना बढ़ी हो। लेकिन बजट अवश्‍य बढ़ जाता है। क्‍योंकि उनकी खातिरदारी न्‍यारी जो होती है।
गिरधारी लाल जी गत चुनाव में नया चेहरा था। गैर क्षेत्रीय था। वोटर ने पहचाना नहीं। पार्टी के नाम पर मत मिला। वह भी अल्‍पमत मिला। अब वे बहुमत के लिए बहुत दौड़-धूप कर रहे है। हालांकि वे ना दौड़ते और ना ही धूप में निकलते है। आहिस्‍ता–आहिस्‍ता चलते हुए छांव-छांव में जान-पहचान बढ़ा रहे हैं। पुराना चेहरा बनने की पराकाष्‍ठा पर है। क्‍योंकि गत चार वर्ष में इतने चेहरों से मुखातिब हो चुके हैं। नये चेहरे को भी पुराना बता देते हैं। नया चेहरा पुराना सुनकर प्रमुदित हो जाता है। और कहता फिरता है,‘नेताजी तो मुझे अच्‍छी तरह से जानते हैं।’ इस वहम में अपना अमूल्‍य वोट का दान नेताजी के नाम करने की सोच रखा है।
गिरधारी लाल जी आयोजनों में आयोजन से संबंधित विचार तो सोच-विचार के वक्‍त भी नहीं सोचते। बोलने का तो सवाल नहीं। वे तो अपने लच्‍छेदार भाषण से इस मानिंद आकर्षित करने में रहते है कि अमूल्‍य वोट खुद-ब-खुद खींचा चला आए। और भारी बहुमत से विजय बना जाए। गिरधारी लाल जी का मानना है कि अमूल्‍य वोट सुविचार प्रकट करने से थोड़ी आता है। वह तो भाषणबाजी के प्रंपच से फंसता हैं। लोक लुभावन घोषणाओं की मुनादी से बहकता है। सुनहरे स्‍वप्‍न दिखाने पर मतदान करता है। फिर आयोजन से संबंधित विचार प्रकट करने के लिए तो खुद आयोजक होते हैं ना। वे ही विचारों का खूब आचार डाल देते हैं।

2 May 2018

अनुभवी को प्राथमिकता


मुझे यह कहकर साक्षात्‍कार से बाहर की राह दिखा दी कि ना तो अनुभव है और ना ही अनुभव प्रमाण पत्र है। हम अनुभवी को ही प्राथमिकता देते हैं। दुख बाहर किए जाने का नहीं है। बाहर तो कई बार मुझे यार-दोस्‍तों ने भी कर दिया हैं। कई बार कुपित होकर पिताजी ने बाहर कर दिया। बाहर करना था तो कह देते,तुम्‍हारे पास अप्रोच नहीं है। तुम्‍हारे पास कोई सोर्स नहीं है। तुम्‍हारे पास फलाना नहीं है। तुम्‍हारे पास डिमका नहीं है। ये क्‍या बात हुई कि तुम्‍हारे पास अनुभव नहीं है? अरे,अनुभव तो मि‍त्रों! मित्रों के पास भी नहीं था। फिर भी हवा में उड़े की नहीं। और ऐसा उड़े कि परिंदे भी जिंदगी भर में जितना नहीं उड़े कि वे पांच साल में उतने उड़ लिए। अनुभवी को प्राथमिकता

अनुभव को प्रमाण कि क्‍या जरूरत है? अनुभव तो मेरे अंदर कूट-कूट के भरा है। यकीन न हो तो कूट-कूट कर देख लो। सैम्‍पल लेकर देख लो भाई! रक्‍त का,मांस का,मज्‍जा का। बोटी-बोटी से अनुभव टपेगा। अंग-अंग से फड़क उठेगा। इसके बाद भी अगर प्रमाण लेना ही है तो एक कागज के टुकड़े पर लिखे ढाई आखर के प्रमाण से क्‍या लेना? इस तरह के प्रमाण के प्रमाण पत्र तो रद्दी के भाव में बहुत मिल जाते हैं। लेना ही है तो कुछ दिन अवसर देकर लीजिए। फिर मेरा प्रायोगिक अनुभव देखकर अपने आप आभास हो जाएंगा।
जब पैदा हुआ,बड़ा हुआ,अपने आस-पास देखा तो अनुभव मिला। क्‍या मालिया कर्जे से डूबता छोड़ अनुभव लेकर पैदा हुआ था? उससे सीखा कि ऋण लेकर घी पीना चाहिए। फिर देश-दुनिया देखी। सीखा कि पांव पूजाने का अनुभव। जरूरत पड़ी तो पांव उखाड़ने का अनुभव भी पाया। धवल धारियों से सीखा कि वक्‍त जरूरत पड़ने पर किस तरह पलटी मारी जाती है। पलटी मारकर किस तरह बाजी जीती जाती है। गधे को बाप बनाने का हुनर तो अब पुराना हो गया। आजकल तो मैं इतना सीख गया हूं कि शेर को बच्‍चा बना सकता हूं। हाथी को पहाड़ के नीचे ला सकता हूं। ऊंट को पहाड़ पर ले जा सकता हूं। उखड़े को गाड़ सकता हूं। गाड़े को उखाड़ सकता हूं। इतना सर्वतोमुखी सम्‍पन्‍नता के बाद भी बाहर कर देना कैसे हजम होगी। बताओं भला! आज के हालात में और देश में जीने के लिए ऐसे अनुभवों की दरकार है या नहीं? एक बार मौका देकर तो देखे,दम नहीं,खम देखें,पांच सितारा बुंलदी ना देखा दो तो सच्‍चा भारतीय नहीं। आप तो धार देखें,चाहे तो उधार देखें,और एक बार सेवा का मौका दे।

मुझे पच्‍चीस तीस प्रतिशत अनुभव तो पुश्‍तैनी विरासत से मिला है। पच्‍चीस प्रतिशत संघर्ष करके अर्जित किया है और चौदह प्रतिशत साक्षात्‍कार देते रहने से हो गया है। कुलयोग किया जाए तो चौंसठ प्रतिशत होता है। मुझे मालूम है,आज के युग में चौंसठ प्रतिशत की कोई वैल्‍यू नहीं। इसलिए शेष छत्‍तीस प्रतिशत के लिए भी प्रयासरत हूं। वैसे देखा जाए तो छत्‍तीस प्रतिशत वाले नब्‍बे,पचानवे प्रतिशत वालों पर हुक्‍म चलाते हैं। साथ में वे ही अनुभव के आधार पर देश चला रहे हैं। और नब्‍बे,पचानवे वाले उनकी हां में हां और ना में ना मिलाकर भागीदारी निभा रहे हैं। अनुभव के आधार पर तो झोलाछाप डॉक्‍टर क्‍लीनिक चला रहे हैं। धड़ल्‍ले से मरीजों का इलाज कर रहे हैं और खूब पैसा कमा रहे हैं। बिना लाइसेंस धारी अनुभव के आधार पर मोटरसाईकल से लेकर ट्रक तक दौड़ा रहे हैं और ट्रैफिक पुलिस वाले उनका बाल भी बांका नहीं कर पाते। एक मैं हूं,जिसे चौंसठ प्रतिशत अनुभवी होते हुए भी बाहर की राह दिखा दी जाती है। बताओं! क्‍या यह सही है?
मुझे तो लगता है कि इन्‍हीं की वजह से मुल्‍क में मुझ जैसे अनुभवियों का हिमांक अनुपात हिमांक बिंदु से नीचे गिरता जा रहा हैं। जिसके चलते ज्यादातर अनुभवी स्‍वदेश छोड़कर विदेश के ओर पलायन कर जाते हैं और शेष बचे-खुचे यहीं रह जाते हैं। जिनके रहने के तमाम कारण हैं। जिनमें मुख्‍य कारण परिस्थिति है। और परिस्थिति अच्‍छे से अच्‍छे अनुभवी को बेरोजगारी का दामन थमा देती हैं। क्‍योंकि परिस्थिति को रोज दर-दर की ठोकरों से मिली सम्‍मान पूर्वक सेवा-सत्‍कार अच्‍छी लगती हैं।
जब बाहर निकला तो सोचा,मतलब अनुभव पाया कि अब मैं धक्‍के नहीं खाऊंगा। धक्‍के देकर आगे बढ़ना होगा। जिंदगी इतनी सरल नहीं मोहन बाबू कि सारी जिंदगी धक्‍के खाते रहो। देखना अब मेरे अनुभव का कमाल। ऐसा धमाल मचाऊंगा कि देखकर सब ढंग रह जाएंगे। जिन्‍होंने बाहर की राह दिखाई है ना वे भी देखकर दांतों तले उंगली चबाते रह जाएंगे।