प्रतिस्पर्धा के दौर
में कौन नहीं बढ़ रहा? हर कोई बढ़ रहा है। बढ़ता है,तभी आसमान को छूता है।
बढ़ते हुए को दुनिया सलाम करती है। घट़ते हुए को कोई सांत्वना भी नहीं देने आता।
ऐसे में पेट्रोल-डीजल पीछे क्यों रहे? ये भी बढ़ने के लिए ही तो पैदा हुए हैं। लेकिन पेट्रोल-डीजल आसमान
छूने के लिए बढ़ते हैं,तो हम आसमान को सिर पर उठा लेते हैं। मीडिया से
लेकर सोशल मीडिया तक
हाहाकार मचाए रहते हैं। सोशल मीडिया पर तो पेट्रोल डीजल की बढ़त को लेकर हमारी 'बढ़त' इस
तरह हावी रहती है, जिसे
देखकर पेट्रोल-डीजल चिढ़ जाते
हैं और वर्तमान दर से बेदर्द होकर नर्इ दर का आनंद लेते है। जबकि भ्रष्टाचार,चोरी,डकैती,अपहरण व बलात्कार निरंतर बढ़ रहे हैं। इनको लेकर तो हम जरा भी नहीं सोचते और ना ही बवाल मचाते हैं। जो यदा-कदा बढ़ते हैं उनकी की टांग पकड़कर खींचते हैं। पेट्रोल-डीजल
असल में टांग ही खींचनी है तो इन निरंतर वालों की खींचो ना,जो
मानवीय मूल्यों को क्षति पहुंचा रहे हैं। पर निरंतर
वालों से तो आप भी डरते हैं।
इसी तरह बढ़ते तापमान
के सम्मुख भी कोई मुंह नहीं खोलता। मुंह खोलना तो दूर घर से बाहर ही नहीं निकलते
हैं। अगर दम ही है,तो बढ़ते तापमान की टांग खींचकर बताओं। जब जाने,हम
तो। आप कितने दमदार है। जबकि बढ़ता तापमान तो हाल-बेहाल कर देता है,फिर भी हम उसका
बाल भी बांका नहीं कर सकते। ज्यादा से ज्यादा कूलर-एसी की हवा लेकर राहत की सांस
ले सकते हैं। लेकिन तापमान से इसलिए डरते हो कि वह आग बरसाते हुए बढ़ता है और
पेट्रोल-डीजल पर इसलिए हावी हो जाते हो कि वे शीतलता के साथ बढ़ते हैं। पेट्रोल-डीजल की ‘बढ़त’ को
लेकर हम सरकार को कोसते हैं। भला-बुरा कहते है। सरकार तो पेट्रोल-डीजल की मां-बाप
है। कौन मां-बाप अपनी संतान को बढ़ते हुए नहीं देखना चाहता। दिन दुगुनी और रात
चौगुनी की रफ्तार से संतान की बढ़त होती हैं,तब सबसे ज्यादा
खुशी माता-पिता को ही होती हैं। सरकार तो माता-पिता होने का फर्ज निभा रही
है। आप-हमकों सरकार का फर्ज भी बुरा लेगे तो,इसमें सरकार भी
क्या कर सकती?
पेट्रोल-डीजल का एक
ही तो सपना है,पैसे दर पैसे बढ़ते हुए,जल्दी सी एक सौ को आरपार
करना। जब भी मंजिल की ओर बढ़ते हैं तो राह में कभी
चुनाव तो कभी विपक्ष राह का रोड़ा बनकर खड़ा हो जाता हैं। और आगे बढ़ने से रोकने
लगते हैं। और कभी-कभी तो रोकते ही नहीं वर्तमान दर से दस-बीस पैसे पीछे भी धकेल देते हैं। बढ़ने से ही रोकना है तो उन रिश्वतखोरों को
रोको ना,जो सरेआम रिश्वत लेते हैं। भ्रष्टाचार बढ़ा रहे है। इसी तरह रोकना है तो
उन नेताओं को बढ़ने रोको,जो चुनावीं मौसम में तो एक से बढ़कर एक वायदे करते हैं और
जीतने के बाद शक्ल भी नहीं दिखाते।
मेरा तो मानना है कि
पेट्रोल-डीजल इसी तरह बढ़ते रहेंगे तो सरपट दौड़ते वाहनों की
बढ़ोतरी में कमी होगी। वाहनों की बढ़ोतरी में कमी होगी तो पर्यावरण में बढ़ोतरी
होगी। पर्यावरण की बढ़ोतरी होगी तो बारिश होगी। बारिश होगी तो घटता जल स्तर
बढ़ेगा। जल स्तर बढ़ेगा तो किसान खुशहाल रहेगा। किसान
खुशहाल रहेगा तो देश की प्रगति होगी। देश की प्रगति होगी तो विकासशील से विकसित की
ओर बढ़ेगा।