3 Jan 2019

संकल्प पहले ही दिन फेल



मन्नालाल ने नव वर्ष की पूर्व संध्या पर तीन संकल्प लिए। कुछ नया और कुछ अलहदा करने के लिए। अपने आराध्य देव को साक्षी मानकर और डायरी में लिखकर संकल्पों को पुख्ता किया। पहला संकल्प सवेरे जल्दी उठने का लिया। दूसरा शराब नहीं पीने का और तीसरा झूठ नहीं बोलने का। थर्टी फर्स्ट को पूरी रात पार्टी की और सवेरे नींद ने दर दबोच लिया। दोपहर ने नींद तोड़ संकल्प याद दिलवाया। पहला संकल्प पहले ही दिन फेल हो गया। संकल्प पहले ही दिन फेल
शाम को लंगोटिया यार धन्नालाल ने आमंत्रित किया। पार्टी-शार्टी करने के लिए नव वर्ष की ढेर सारी शुभकामनाएँ। सेम टू यू कहकर मन्नालाल ने भी शुभकामनाएँ दी। अब शुभ कार्य में देरी कैसी? सो लवली-लवली पैग बनाकर मन्नालाल को थमाते हुए धन्नालाल बोला,‘यह लो ! पहला पैग नये साल के आगमन की खुशी में।

मैंने तो रात से पीना छोड़ दिया है।’ ‘अबे यार क्यों मजाक कर रहा है? मजाक छोड़ और जल्दी सी गटक जा। दूसरा पैग भी बनाना है।’ ‘सच में छोड़ दिया है।’ ‘क्यों नखरे कर रहा है यार? गिलास को तो हाथ में थाम। बिल्कुल नहीं। मैंने संकल्प लिया है। संकल्प तोड़ नहीं सकता। संकल्प तोड़ दिया तो अनर्थ हो जाएगा। तुम्हारी भाभी जी नाराज हो जाएगी। मुझे घर से निकाल देगी। 
धन्नालाल मुस्कुराते हुए बोला,‘संकल्प ही तो लिया है। सात फेरे थोड़ी लिए हैं। लोग तो सात फेरे लेने के बाद भी अपनी लुगाई को छोड़ देते हैं। एक तुम हो जो कि अपने मित्र के  लिए संकल्प नहीं तोड़ सकते। अबे यार संकल्प लेने के लिए होता है। निभाने के लिए नहीं। ऐसा कर आज पी ले, कल से मत पीना। 
मन्नालाल दुविधा में पड़ गया। सोचने लगा पी लिया तो संकल्प टूट जाएगा और धर्मपत्नी नाराज हो जाएगी। नहीं पिया तो मित्र नाराज हो जाएगा। मित्र की बात मान लेता हूँ। आज पी लेता हूँ। कल से नहीं। और एक बार में ही पूरा पैग गटक गया।
धन्नालाल बोला,‘यह हुई ना मर्दों वाली बात। यह लो दूसरा पैग दोस्ती के नाम का। दूसरे पैग के बाद तब तक नहीं उठे। जब तक पूरी बोतल खाली नहीं हुई। मन्नालाल जब घर लौटा, तो उसके लडख़ड़ाते पैर देखकर उसकी पत्नी समझ गयी। आज तो जनाब टल्ली होकर आए हैं। घर में घुसते ही क्लास लेने लगी। आपने तो संकल्प लिया था ना दारु नहीं पीने का। हां लिया था, पर धन्नालाल माना ही नहीं। उसका मान रखने के लिए पी लिया।
धर्मपत्नी गुस्से से लाल-पीली होती हुई बोली,‘एक तो संकल्प तोड़ दिया और ऊपर से झूठ और बोल रहे हो। आपने तो झूठ नहीं बोलने का भी संकल्प लिया था। अब उसे भी तोड़ दिया। तुम ज़िंदगी में कुछ नहीं कर सकते। पहली बार संकल्प लिए थे। लेकिन सब तोड़ दिए। संकल्प तोडऩे से पहले जरा भी नहीं सोचा कि किसलिए ले रहा हूँ और किसलिए तोड़ रहा हूँ। संकल्पो को तोडऩा ही था तो लिया ही क्यों था? 
धर्मपत्नी के मुंह से सुनकर मन्नालाल मन ही मन में सोचने लगा। संकल्प नहीं लेता तो ही अच्छा रहता। कम से कम धर्मपत्नी के ताने तो नहीं सुनता। डायरी के जिस पन्ने पर लिखकर संकल्प लिया था। उस पन्ने को फाड़कर फिर कभी संकल्प नहीं लेने का अपने आप से वादा किया।

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