10 Jan 2019

ईर्ष्या एक घातक बीमारी


ग्यारसी लाल एक ऐसी अनोखी बीमारी से बीमार है। जिसका इलाज बड़े से बड़े डॉक्टर के पास भी नहीं है। इसकी ना तो कोई दवा है और ना ही मरीज पर किसी दुआ का असर होता है। बस अंदर ही अंदर जलता रहता है। मन ही मन में सोचता रहता है। ऐसी अनोखी बीमारी का नाम है ईर्ष्या बस इसकी एक ही रामबाण औषधि है। अपने स्वभाव में जो ईर्ष्यालु प्रवृत्ति का पर्वत बन जाता है। उसका नेस्तनाबूद करना। लेकिन ईर्ष्यालु प्रवृत्ति की छोटी सी पहाड़ी को भी ध्वस्त करना ग्यारसी लाल के बस की बात नहीं है। ईर्ष्या एक घातक बीमारी

यह डेंगू,चिकनगुनिया,मलेरिया व स्वाइन फ्लू की तरह मौसमी बीमारी भी नहीं है। एक मौसम में आई और चली गई। यह तो एक तरह की बारहमासी मानसिक बीमारी है। बस जानलेवा नहीं है। पर उस जानेमन की तरह घातक है। जो अपने ही साथी के साथ दगा कर जाती है।अच्छा यह कोई नई बीमारी भी नहीं है। सदियों पुरानी है। 
मुगल काल से भी पहले से चली आ रही हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ती हुई,बढ़ती जा रही है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं इस बीमारी से ज्यादा ग्रस्त हैं। उसके बावजूद भी आज तक इसकी रोकथाम के लिए किसी तरह का कोई कदम नहीं उठाया गया और ना ही जागरूकता अभियान चलाया गया है। जबकि पहला सुख निरोगी काया है। लेकिन दूसरों के सुख को देखकर ही यह बीमारी होती है। शायद इसीलिए इसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता।
ग्यारसी लाल से किसी की उन्नति,नौकरीपेशा,व्यापार,कारोबार,मान प्रतिष्ठा व रंग-रूप देखा ही नहीं जाता। वह इस बीमारी से इतना ग्रस्त हो गया है कि अपनी घर-गृहस्थी तक भूल गया। वह दिन-रात ईर्ष्या की आग में ही जलता रहता है। ईर्ष्या की आग ऐसी है कि एक बार लग जाए तो फायर ब्रिगेड से भी नहीं बुझती है। मरीज जल भुनकर काला कोयला ही हो जाता है। कोयला बनने के बाद इस तरह से  सुलगता है कि चिड़चिड़ापन की धुआँ निकलने लगती है। जिससे घर का पूरा वातावरण दूषित हो जाता है। दूषित वातावरण को कोई शुद्ध करने की कोशिश करता है तो उससे लड़ने-झगड़ने लगता है। शायद इसलिए लोग ग्यारसी लाल से हमदर्दी नहीं रखते हैं। दूरियां बनाकर रहते हैं। 
ग्यारसी लाल की कुछेक दिली इच्छाएं हैं। जिससे जलन है। उसकी राह में रोड़ा बनने की। उसे नीचा दिखाने की। उसकी मजाक उड़ाने की। उसकी खुशियां छीनने की। पर यह इच्छाएं जेहन में ही छिपी हुई हैं। बाहर निकलने से तो कतराती हैं। शायद इसीलिए अंदर ही अंदर जलता रहता है। मुझे ताज्जुब है। ईर्ष्या  का मरीज ग्यारसी लाल इतना जल रहा है। फिर भी नहीं तो चारपाई पकड़ रखा है और ना ही इस बीमारी से मरेगा। 

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