22 Jan 2019

बुढ़ापे की लाठी


कई दिनों से देख रहा हूँ कि भाटी जी लाठी को जमकर तेल पिला रहा हैं। लाठी भी तेल पीकर अंबुजा सीमेंट से बनी दीवार की मानिंद इतनी मजबूत हो गई है कि तोड़ने से भी नहीं टूटे। जिसके हाथ में इतनी मजबूत लाठी हो। उसकी भैंस की ओर कोई आँख उठाकर देख ले। है किसी की मजाल। सवाल ही नहीं। इस तरह की लाठी हो तो सवाल ही पैदा नहीं होता। भैंस पानी में चली जाए। बल्कि पानी में गई हुई,वापस आ जाए। 
लेकिन भाटी जी के पास तो बकरी का बच्चा भी नहीं है। फिर लाठी को इतनी ठोस करके क्या करेगा? यह प्रश्न मेरे मन में कौंधा। सोचा कुत्ता-बिल्ली को भगाने के लिए या चोर-उचक्को को डराने के लिए ठोस किया होगा। क्योंकि हाथ में मजबूत लाठी होती है तो मरियल में भी हिम्मत आ जाती है। वह भी अकड़ कर चलता है। लाठीधारी से पहलवान भी डरता है। कहते हैं कि लाठी से तो भूत भी काँपता है। दुम दबाकर भाग जाता है। इस रहस्य का राज जानने के लिए,मैंने भाटी जी से पूछा। पहले तो हंसकर टाल गए। फिर से पूछा तो बताया। यह आम लाठी नहीं। बहुत काम की लाठी है। अब मैं इसकी सेवा कर रहा हूँ। बाद में यह मेरी करेगी। यही तो सेवा की मेवा है। 
मैं समझ गया था। यह बुढ़ापे की लाठी है। बुढ़ापे की लाठी जितनी मजबूत होती है। बुढ़ापा उतना ही आसानी से कटता है। इसीलिए तो व्यक्ति बुढ़ापे की लाठी से ज्यादा प्यार-प्रेम करता है। और उसके लालन-पालन में किसी तरह की कोई कमी नहीं रहने देता है।
भाटी जी की उम्र ढल रही थी और लाठी जवानी के मजे ले रही थी। भाटी जी ने सोचा लाठी कहीं किसी के प्रेम प्रसंग में नहीं पड़ जाए। प्रेम-प्रसंग में पड़ गई तो कमजोर पड़ जाएगी। कमजोर पड़ गई तो उम्र के अंतिम पड़ाव में उंगली भी नहीं पकड़ेगी। यही सोचकर पाणिग्रहण संस्कार कर दिया। शादी के कुछ माह बाद भाटी जी द्वारा पिलाया गया तेल सूखने लगा और नई नवेली द्वारा लगाया गया तेल रमने लगा। देखते ही देखते लाठी गिरगिट की तरह रंग बदलने लगी। आँखें चुराने वाली आँखे बात-बात में आँख दिखाने लगी। कल तक जुबान नहीं उपड़ती थी। आज कतरनी से भी तेज चलने लगी है। मिमियाने की जगह गरयाने लगी। 
लाठी मक्‍खन-मलाई खा रही है। भाटी जी खुरचन के लिए तरस रहा है। जबकि भाटी जी ने लाठी के लिए क्‍या नहीं किया? हमेशा उसकी पाँचों उंगलियां शुद्ध देशी घी में डुबाए रखता था। जिंदगी भर की कमाई उसकी पढ़ाई-लिखाई में लगा दी। और इस काबिल बना दिया कि मक्खन-मलाई ही क्या? रोज महंगी से महंगी मिठाई खा और खिला सकती हैं। भाटी जी ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। जिसे इतना खिलाया-पिलाया। पढ़ाया-लिखाया। एक दिन वही आंख दिखाएंगी ।
हद तो तब हो गई। जब उसने एक दिन भाटी जी पर लाठी उठा ली। यह देखकर मैं भी आश्चर्यचकित रह गया। सोचने लगा कैसा घोर कलि‍युग आ गया है। जिस पर बचपन से लेकर जवानी तक। किसी तरह की कोई आँच नहीं आने दी। आज वही आग बबूला हो रही है। कल तक जिसके मुखमंडल से सभ्य व संस्कारी बोल प्रस्फुटित होते थे। अब उसी मुखमंडल से बुरे-भले बोल मुखर होने लगे हैं। ऐसी बुढ़ापे की लाठी से तो लाख गुना अच्छा है। छोटे-मोटे डंडों के सहारे ही बुढ़ापा काट लिया जाए।

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