24 Jan 2019

कड़ाके की ठंड प्रलोभन में नहीं आती


कड़ाके की ठंड के दिन ज़रा सी भी गुनगुनी धूप आ जाए तो अच्छे दिनों से कम नहीं लगती है। लोग तुरंत छत पर पहुँच जाते हैं। गुनगुनी धूप में गुनगुनाने। लेकिन जिस दिन कड़ाके की ठंड होती है। उस दिन मोदी जी की तरह सूर्यदेव गुनगुनी धूप का सपना ही दिखाता है। कड़ाके की ठंड भी रजाई में ही मन की बात करती है। रजाई से बाहर तो अलाव के अलावा किसी की नहीं सुनती है। अलाव से जरूर दो घड़ी बातचीत कर लेती है। 
गर्म लबादों से लदे लोग आस लगाए बैठे रहते हैं। कड़ाके की ठंड हमारी तो सुनेगी और हमें गरमाहट प्रदान करेगी। मगर कड़ाके की ठंड इनकी भी परवाह नहीं करती है। शीतलहर के साथ गीत गाती हुई सुबह से लेकर रात तक सफर करती रहती है। जिस दिन सफर में इसके साथ धुंध,ओस व कोहरा हमसफर होते हैं। उस दिन तो खुद के बाप की नहीं सुनती है। यहाँ तक की सूर्यदेव के प्रचंड प्रकाश से भी नहीं डरती है। उसके सामने धुंध को आगे कर देती है। धुंध है कि प्रचंड प्रकाश को तब तक रोके रखती है। जब तक की ठंड मंद नहीं हो जाए। 
कड़ाके की ठंड का तो मिजाज भी इतना कड़क रहता है कि सीधे मुँह बात ही नहीं करती है। तूमतड़ाक से पेश आती है। किसी ने दुस्साहस करके बात कर भी ली तो उसके साथ ऐसा सलूक करती है कि बंदा फटाफट कंबल ओढ़कर वहाँ से खिसक लेता है। अगर किसी ने खिसकने के बजाय रिस्क ले ली। उसे तो फिर ईश्वर ही बचा सकता है। एक बार हाथ पकड़ ली न तो उसका ऐसा हाल करती है कि बंदा गर्मियों में भी जेब में हाथ डाले रखता है।
लोगबाग इसको लालच भी खूब देते हैं। गजक,रेवड़ी गुड,मूँगफली,तिल,हरी मेथी के पराठे व गोंद से बने देसी घी के लड्डू तक खिलाकर पटाने की कोशिश करते हैं। सोचते है कि एक बार पट जाए तो इसको समझा दे कि गर्मियों के मौसम में आया कर और जी भर के खाया व  पिया कर। उन दिनों आइसक्रीम,कोल्ड ड्रिंक,नींबू पानी,ज्यूस जो मन चाहे वह मांग लेना। लेकिन कड़ाके की ठंड इनके प्रलोभन में कभी नहीं फँसती है। मेरे समझ में नहीं आती। लोग समझते क्यों नहीं? कड़ाके की ठंड इंसान की तरह थोड़ी है,जो कि थोड़ा सा लोभ दिया और लालच में आ गई। यह लोभी नहीं है। यह तो फूलगोभी की तरह जिसकी हर परत हरी ही हरी है 
मेरा पड़ोसी खड़क सिंह इतना कड़क है कि उसे सड़क पर चलता देखकर हर कोई साइड में हो लेता है। सब उसकी कड़क से डरते हैं। लेकिन वह भी कड़ाके की ठंड के सामने तो दोनों कान पकड़कर दंड बैठक लगाता है  जो लोग ठंड को भगाने के लिए,महंगे से महंगे शाल,कंबल ओढ़कर घर से निकलते हैं। उन्‍हें तो कड़ाके की ठंड कि हमसफर शीतलहर घर की देहरी पर ही दर दबोच लेती है। खड़क सिंह को देखकर मैं तो समझ गया हूँ। कड़ाके की ठंड से बचना है तो रजाई में दुबककर रहने में ही भलाई है।

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