20 Mar 2019

कलरफुल स्ट्राइक सबूत के साथ


लोगों के चेहरों पर होली उत्सव का उत्साह साफ दिख रहा है। रंग-बिरंगे रंग-गुलाल के ढेरों के पीछे बैठे दुकानदार के होठों पर रंगीन मुस्कान बिखरी हुई है। जिसको देखो वहीं फागुन की मस्ती में मस्त दिख रहा है। यहां तक की मौसम में भी होली की मस्ती छाई हुई है। फागुनी राग से आसमान गुंजायमान हैं। धरा रंग-बिरंगी रंग-गुलाल की चुनरी ओढ़ने के लिए,कब से पलक पावडे बिछाई हुई हैं। प्रकृति अपने प्रकृति प्रेमियों के साथ होली खेलने के लिए बेताब है। देवर-भाभी,जीजा-साली एक-दूसरे को रंगने के लिए योजना बना चुके हैं। टोली के संग होली खेलने वाले अपनी-अपनी टोलिया गठित कर चुके हैं। बस अब तो योजनाओं को अंजाम देना है।
नेताजी भी होली खेलने के लिए पूरा मन बना चुके हैं। क्योंकि होली के बाद लोकतंत्र का सबसे बड़ा त्योहार आमचुनाव नजदीक है। अबकी बार लोगों के संग होली नहीं खेली तो मतदाता अपना असली रंग दिखा देगा। इस डर के मारे आम आदमी के संग होली खेलने के लिए,अपने आपको समर्पण कर दिया है। हालांकि नेताजी को रंग-गुलाल से सख्त एलर्जी है लेकिन वो भली-भांति जानते हैं कि वोटर के पास जो वोट का रंग है वह होली के रंगों से कहीं ज्यादा रंग-बिरंगा होता है। मतदान के दिन उंगली पर लगने वाली स्याही का नीला रंग कई नेताओं के चेहरे का रंग उड़ा भी देता है तो कईयों के चेहरों पर रंग जमा भी देता है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को मजबूत करने वाला अगर कोई रंग है तो वह नीला रंग है। सरकार बनाने में और गिराने में भी नीले रंग की महती भूमिका रहती है।
मैं भी सोच रहा हूँ कि क्यूँ ना होली पर्व पर एक छोटी सी स्ट्राइक कर ही डालू। चाहे किसी के रंग-गुलाल लगे या नहीं लगे। सुर्खियों में तो आ ही जाऊंगा। सुर्खियों में छा गया तो समझ लीजिए मेरी कलरफुल स्ट्राइक की भी सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक से कम टीआरपी नहीं आएगी। शहर में नहीं तो कम से कम अपनी कॉलोनी में तो चर्चाएं आम हो ही जाएंगी। चर्चा आम हो गई तो आम से खास आदमी बन जाऊंगा।
स्ट्राइक के बाद रंग-गुलाल में रंगी अपनी एक सेल्फी सोशल मीडिया पर डालकर कैप्शन में लिख दूंगादेखिए मैंने भी होली पर्व पर कलरफुल स्ट्राइक की है। कोई कमेंट करके पूछेगा कि कितनों के रंग-गुलाल लगाया तो ऐसा आंकड़ा बताऊंगा कि सबूत मांगने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। फिर भी किसी ने सबूत मांग लिया तो अपने मोबाइल के कैमरे से पहले से ही वीडियो रिकॉर्डिंग करके रखूंगा। जरूरत पड़ी तो दिखा दूंगा अन्यथा मोबाइल में पड़ा रहेगा। 

कलरफुल स्ट्राइक करने के लिए,मैंने हरा,पीलानीला,लाल,गुलाबी रंगो का गठबंधन करके एक ही थैली में मिश्रित कर लिया है। ताकि स्ट्राइक के वक्त इसी प्रकार की समस्या उत्पन्न नहीं हो। क्या है कि अलग-अलग रंगों को अलग-अलग थैलियों में लेकर स्ट्राइक के समय होली खेलते हुए किसी टोली से सामना हो गया तो एकाध रंग की थैली शहीद ना हो जाए। यह डर रहता है। होली के रंगों में किसी भी रंग का शहीद होना समाज व देश के लिए हानिकारक है। 
क्योंकि हमारी जिंदगी में रंगो का बहुत बड़ा महत्त्व है। दुनिया में ऐसी कोई चीज नहीं है जिसका रंग नहीं है और प्रत्येक रंग किसी ना किसी का प्रतीक है। रंगो के बिना तो हम सोच भी नहीं सकते हैं। जिस तरह बिना प्राण का शरीर किसी काम का नहीं हैवैसे ही बिना रंगो के जीवन रंगहीन होता है।
होली के रंग एक-दूसरे के चेहरों को रंगने का काम ही नहीं करते हैं,बल्कि गिले-शिकवे भी दूर करते हैं। सालभर से रूठे हुए को मनाने में महती भूमिका निभाते हैं। हंसी-मजाक के माध्यम हैं। रिश्ते-नाते व सगे-संबंधियों में सामाजिक सौहार्द बनाए रखते हैं।
दरअसल में अपने पड़ोसियों को बताना चाहता हूँ कि छप्पन इंच का सीना नहीं,बल्कि छबीस इंच का सीना भी स्ट्राइकर सकता है। जो रंग-गुलाल लगवाने से डरते हैं उन्हें भी रंग-गुलाल से सराबोर कर दूंगा। फिर वे अपने आप ही मेरे द्वारा की गई कलरफुल स्ट्राइक की फोटो खींचकर अपनी-अपनी फेसबुक वॉल पर लगाकर पूरी दुनिया को बता देंगे कि अबकी बार हम भी होली के रंग में रंगे गए। बस फिर क्‍या सबको पता लग ही जाएगा।

15 Mar 2019

देश के भविष्य का चुनाव

आमचुनाव की उद्घोषणा हो चुकी है। फागुन के गीत गाए जा रहे हैं। पेड़ों से पत्तियां झड़ने लगी है। मौसम का मिजाज बदल रहा है। राजनीतिक सरगर्मियों से बाजार गुलजार हो गया है। मतदाता बदलाव की बयार में ईवीएम का बटन दबाने के लिए तैयार बैठा है। जूतम-पैजार वाले माननीय जूते को सलाम कर रहे हैं। जूता आमचुनाव में अपनी भागीदारी निभाने के लिए जुगाड़ की जुगत तलाश रहा है।
सियासत के मैदान में टिकटों का खेल आरंभ हो चुका है। टिकट के खिलाड़ी लोकसभा नामक खेल खेलने के लिएहाईकमान से अनुनय-विनय करने में लगे हुए हैं। हाईकमान है कि जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में पानी के ग्लास के ग्‍लास पिए जा रहा हैं,फिर भी अंतिम निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहा है। किसको को मैदान में उतारा जाए और किसको नहीं। युवा को उतारा जाए या फिर पुराने को या फिर नया चेहरा जीत का सेहरा बांध सकता है?कुछ इस तरह का संशय बना हुआ है। जिन नेताओं को अपने टिकट के कटने का भय सता रहा हैं,वे आलाकमान स्तरीय तांत्रिक से अपना भय दूर करवाने के लिए उनकी शरण में दिल्‍ली में डेरा डाले हुए हैं। 

इस बार होली का रंग चुनावी रंग में मिलकर एक नए रंग में नजर आएगा। राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी रंग-बिरंगी योजनाओं की पिचकारिओं से मतदाताओं को रंगने की कोशिश करेंगी। लेकिन इस बार मतदाता के हाथ में भी लोकलुभावन योजनाओं को रंगने का रंग-गुलाल रहेगा। आज का मतदाता बहुत समझदार है। वह अच्छी तरह से जानता है कि किसको किस रंग में रंगना है। उसे पता है कि देश के भविष्य का चुनाव है,इसलिए ईवीएम का बटन दबाने से पहले सौ बार सोचेगा। 
 मगर राजनीतिक पार्टियां भी देश के भविष्य को मजबूत हाथों में देने के बात बार-बार कहेंगी।बरगलाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाएंगी। जुमले के झूले में झुलाने के लिए मतदाताओं को रिझाएंगी। हो सकता है खरीद-फरोख्त की रोक के बावजूद भी अमूल्य वोट का  मूल्य निर्धारित करके उसे खरीद लिया जाए। क्योंकि यहाँ पर अच्छे धाम लगने पर बिकने वालों की भी कमी नहीं है। यह लोग खुद का भविष्य सुधारने के लिए किसी का भी भविष्य बिगाड़ सकते हैं। देश का भविष्य बनाना तो इनका एक बहाना है। असल में तो यह खुद का भविष्य बनाने में लगे रहते हैं।
 सही मायने में देश का भविष्य नेताओं के हाथ में नहीं हैबल्कि मतदाता की उस ऊंगली पर है,जिससे ईवीएम का बटन दबाया जाता है। लेकिन कई बार मतदाता की उंगली को पता नहीं क्या हो जाता है,जो बहुतों की उम्‍मीदों पर पानी फेर देती है। 

14 Mar 2019

उम्मीदों पर पानी फेरती उंगलियां


फागुन के गीत गाए जा रहे हैं। पेड़ों से पत्तियां झड़ने लगी हैं। मौसम का मिजाज बदल रहा है। राजनीतिक सरगर्मियों से बाजार गुलजार हो गया है। मतदाता बदलाव की बयार में ईवीएम का बटन दबाने के लिए तैयार बैठा है। जूतम-पैजार वाले माननीय जूते को सलाम कर रहे हैं। जूता आम चुनाव में अपनी भागीदारी निभाने की जुगत तलाश रहा है। टिकटों का खेल आरंभ हो चुका है। टिकट के खिलाड़ी लोकसभा नामक खेल खेलने के लिए हाईकमान से अनुनय-विनय करने में लगे हुए हैं। हाईकमान है कि जिताऊ उम्मीदवार की तलाश में पानी के ग्लास के ग्लास पिए जा रहा है, फिर भी अंतिम निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा। किसको मैदान में उतारा जाए और किसको नहीं। युवा को उतारा जाए या फिर पुराने को या फिर नया चेहरा जीत का सेहरा बांध सकता है? जिन नेताओं को अपने टिकट के कटने का भय सता रहा है, वे आलाकमान स्तरीय तांत्रिक से अपना भय दूर करवाने के लिए उनकी शरण में दिल्ली में पड़े हुए हैं।
इस बार होली का रंग चुनावी रंग में मिलकर एक नए रंग में नजर आएगा। राजनीतिक पार्टियां अपनी-अपनी रंग-बिरंगी योजनाओं की पिचकारियों से मतदाताओं को रंगने की कोशिश करेंगी। लेकिन इस बार मतदाता के हाथ में भी लोक-लुभावन योजनाओं को रंगने का रंग-गुलाल रहेगा। आज का मतदाता बहुत समझदार है। वह अच्छी तरह से जानता है कि किसको किस रंग में रंगना है। उसे पता है कि देश के भविष्य का चुनाव है, इसलिए ईवीएम का बटन दबाने से पहले सौ बार सोचेगा। मगर राजनीतिक पार्टियां भी देश के भविष्य को मजबूत हाथों में देने के लिए बरगलाने की एड़ी से चोटी तक की कोशिश करेंगी।
सही मायने में देश का भविष्य मतदाता की उस उंगली पर है, जिससे ईवीएम का बटन दबाया जाता है। लेकिन कई बार मतदाता की उंगली को पता नहीं क्या हो जाता है, जो बहुतों की उम्मीदों पर पानी फेर देती है।



13 Mar 2019

जिसके हाथ जूता,काटेगा वो फीता



जूता तब से सुर्खियों में है,जब एक इराकी पत्रकार ने जॉर्ज बुश पर जूता फेंका था। तब से अब तक न जाने कितनों पर जूता उछाला जा चुका है। सस्ते से सस्ता व फटा-पुराना जूता भी सुर्खियां बटोर चुका है। खबरिया चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज़ बन चुका है।वैसे तो टमाटर,अंडा व स्याही ने भी खूब सुर्खियां बटोरी हैं,लेकिन सुर्खियों का असली सुख जूते ने ही लिया है। क्योंकि जब भी सियासी गलियारों में जूता उछला है या उछाला गया है। जूता समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ की हेड लाइन बना है। सोशल मीडिया के युग में तो जूते ने सुर्खियां नहीं,बल्कि लाइक व कमेंट के हीरे-जवाहरात तक लूटा है।
अब जूता पैर की जूती ही नहीं रहा है,बल्कि जूते मारने में भी सिद्धहस्त हो गया है। अपना नाम सुनतेे ही काम तमाम करने को आतुर रहता है। पैर से हाथ में आने तक का सफर तय करने में पलभर ही लगाता है। हाथ में आने के बाद तो दो-चार जूते मारे बिना नहीं रहता है। जिसके सिर पर जूते पड़ते हैंवह जूते खाने के बाद चैन से नहीं बैठता है। वह भी उस दिन के बाद जूते मारने की फिराक में रहता है। मौका लग गया तो वह भी किसी ना किसी बदन की मालिश कर देता है। अन्यथा जूते के पॉलिश करता रहता है। पॉलिश करते रहने से बदले की भावना कायम रहती है।
देख लेना,अब वे दिन दूर नहीं है। भविष्य में जिसके हाथ में जूता होगा वही फीता काटेगा। शिला पट्ट पर उसी का नाम होगा जो जूतम-पैजार में सुपर होगा। पार्टियां भी उसी को टिकट देंगी,जो जूता उछालने में सर्वश्रेष्ठ होगा। कार्यकर्ता भी उसी का प्रचार-प्रसार करेंगे,जो जूते मारने में अव्वल रहा है। हो सकता है आने वाले समय में कोई नई नवेली पार्टी जूते को अपना चुनाव चिह्न भी बना ले। अगर चुनाव चिह्न जूता रहा तो पार्टी का नारा कुछ इस तरह से होगा। जूता का बटन दबाइए और जूता सरकार बनाइए। गलती से जूते की सरकार बन गई तो जूतम-पैजार मंत्रालय भी बना दिया जाएगा। जूतम-पैजार मंत्री उसी को बनाया जाएगाजिसको जूते मारने का अनुभव सबसे ज्यादा रहा होगा। 
जूता निर्माता कंपनियों के इश्तिहार भी कुछ इस तरह से होंगे,हमारी कंपनी का जूता पहनने में ही नहीं,बल्कि मारने में मजबूत है। सियासत में अपना कैरियर संवारना है तो हमारी कंपनी का जूता अवश्य पहनिये और सत्ता का सुख भोगिए। विज्ञापन में जूते का चित्र भी माननीय द्वारा जूता मारते हुए दिखाया जाएगा। जिसे देखकर कस्टमर खरीदने के लिए मजबूर हो जाएगा। कंपनियां अपना ब्रांड एम्बेसडर  भी उस माननीय को ही बनाएंगीजिसने जूते मारने में रिकॉर्ड कायम किया हो।

8 Mar 2019

पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है


मैं अपने पड़ोसी से उतना ही दुखी हूँ। जितना की आम आदमी बढ़ती महँगाई से है। गरीब गरीबी से है। बेरोजगार बेरोजगारी से है। उसकी रोज-रोज की उधारी से मुझे ब्लड प्रेशर की बीमारी हो गई है। वह इतना मीठा बोलता है,जैसे कि उसकी वाणी में मिश्री घुली हुई हो। उसके मीठे बोल सुनकर कहीं मुझे शुगर नहीं हो जाए। इस डर से वह जो भी चीज लेने आता हैं,मैं तत्काल दे देता हूँ। लेकिन वह तत्काल को आपातकाल में भी वापस नहीं करता है। कहता है कि मालामाल के क्या मांगे आपातकाल। उसके मुँह से मालामाल शब्द सुनकर मेरे मुँह से भी निकल जाता है कि तेरे मुँह में घी शक्कर। घी शक्कर का नाम सुनते ही उसके मुँह में पानी जाता है और वह उसी वक्त घी शक्कर मांग लेता है।
मौके पर चौका मारने में कभी नहीं चूकता है। मौके की तो वाइड गेंद को भी नहीं छोड़ता है। उस पर भी ऐसे घुमाकर मारता है कि गेंद सीधी मौके की बाउंड्री पर जाकर गिरती है। उस पर गुस्सा तो बहुत आता है। लेकिन वह मुझे गुस्सा थूकने वाला पान खिला देता है। जिसको खाने से मेरा सातवें आसमान पर चढ़ा गुस्सा भी उतर आता है और चेहरा चमक जाता है। चेहरे पर चमक देखकर वह नमक तक माँग लेता है। उसे माँगने में कतई शर्म नहीं आती है। शर्म को तो उसने खूँटी के टाँग रखा है। आएगी कहाँ से। बेझिझक आता है और जो चाहिए वह लिया जाता है। कोई मना कर दे तो मनुहार करके उसे खुश कर देता है। फिर वह खुशहाली में थाली भरकर देता है। खाली हाथ तो कभी नहीं लौटा है। बच्चों के गाल सहलाकर दाल तो इतनी ले जा चुका है,चुकाए तो उसके बाल तक बिक जाए। गृहस्थी की सरकार घाटे में चल रही है,ऐसा कहकर आटा तो आए दिन लेने जाता है। डाटा की तो पूछिए मत। हॉटस्पॉट ऑन करने के लिए सुबह चार बजे से ही  मिस कॉल पर मिस कॉल देने लगता हैं।
आदत से इतना लाचार हैं कि आचार तक नहीं छोड़ता है और विचार-विमर्श इस तरह करता है,जैसे कि बहुत बड़ा विचारक हो। जबकि विचारक कम प्रचारक ज्यादा है। क्योंकि वह गोपनीय बात का भी प्रचार-प्रसार करे बिना नहीं रहता है। सच पूछिए तो,मेरे तो किसी भी काम के लायक नहीं हैफिर भी मांगने पर उसे अपनी बाइक देनी पड़ती है। नहीं दूं तो भय रहता है,पड़ोसी धर्म संकट में नहीं पड़ जाए। क्योंकि मैं धर्म के मामले में बहुत धार्मिक हूँ। वह इसी का फायदा उठाता है। जामन के लिए भी आधी रात में आकर दरवाजा खटखटा देता है। गहरी नींद में सोया हो तो भी जगा देता है। वक्त की नजाकत देखकर भाषा शैली का प्रयोग करता है। डिस्टर्ब करके कहता है कि डिस्टर्ब के लिए क्षमा चाहता हूँ। दरअसल क्या है कि जावन को बिल्ली चाट गई। भले ही रखना भूल ही गया हो,लेकिन कहेगा हमेशा यही कि बिल्ली चाट गई।
इतना चतुर चालाक है कि लोमड़ी तक को अपनी गिरफ्त में कर लेता है। मुझे ही देख लो! मेरी उँगली पकड़ता-पकड़ता पहुँचा पकड़ लिया है। मुझे डर है कि गर्दन नहीं पकड़ ले। किसी दिन गर्दन पकड़ ली तो क्या होगाजो माँगेगा वही देना पड़ेगा। नहीं दिया तो जान से हाथ धोना पड़ेगा। लेकिन मेरी पत्नी को पूरा विश्वास है,वह विश्वासघात तो कभी नहीं करेगा। उसे क्या मालूम नहीं,तुमने कभी उसको आलू के लिए भी मना नहीं किया है। ईमेल बाद में किया है,पहले उसे तेल दिया है। तुम्हें मारकर वह अपनी उधार की दुकान क्यों बंद करेगाबल्कि वह तो तुम्हारी लंबी उम्र की दुआ करता होगा। वह और दुआ। कल ही मना कर दूं तो स्वाहा कर देगा।
मेरा यह पड़ोसी आलू प्याज ही नहींबल्कि ब्याज के नाम पर रुपया तक ले जाता है। लेकिन जब देने आता है तो मूल रकम तो अदा कर देता हैपर ब्याज जीम जाता है। मांगता हूँ तो बहानेबाजी कर जाता है। यह बहानेबाजी में भी अव्वल है। ऐसा बहाना बनाता है कि यकीन नहीं हो तो भी यकीन करना पड़ता है। कभी खुद तो कभी बीबी-बच्चों को बीमार कर देता है। खाँसी जुकाम को भी गंभीर बीमारी का रुप देकर घर बैठे को आईसीयू में भर्ती कर देता है। झूठ की पराकाष्ठा तक को लाँघने में कतई नहीं झिझकता है। आँख मूंदकर छलांग लगा देता है। क्योंकि यह  झूठपाखंड जैसी कलाओं में कलाकार आदमी है। सच कहूं तो यह पड़ोसी नहीं एक बला हैजो कि टालने से भी नहीं टलती है। 
मेरे इस पड़ोसी की एक अहम बात तो बताना भूल ही गया। इसका एक आदर्श वाक्य हैं,जिसका उच्चारण करना कभी नहीं भूलता है। जब भी कुछ लेकर जाएगा तो अपना आदर्श वाक्य 'पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता हैअवश्य बोलकर जाएगा। लेकिन मेरा यह पड़ोसी मेरे तो आज तक किसी काम नहीं आया है। सिर्फ नाम का पड़ोसी है। मेरा तो छोटा सा भी काम हो तो आनाकानी कर जाता है। खुद का काम हो तो थूक के आँसू लगाकर करवा लेता है। इससे कैसे पीछा छुड़ाऊ। समझ में ही नहीं आता है। किसी से राय-मशवरा करता हूँ तो वो भी वहीं सलाह देते हैं,जो कि उसके आदर्श वाक्य में निहित है। बोलते हैं कि आप भी कैसी बात करते होपड़ोसी के प्रीति मन में जो भ्रम है,उसे निकाल दो। एक पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। यह सुनकर मैं निरुत्तर हो जाता हूँ।