सोचते-सोचते दिमाग
खराब हो रहा था मगर उस विषय का आइडिया ही नहीं आया जिस पर अब से पहले किसी ने भी व्यंग्य नहीं लिखा है। अगर इस
तरह का कालजयी विषय दिमाग में आ जाए,तो आने के पश्चात उसे किसी भी हालात में जाने न दूं। जाने के लिए आग्रह
करें या बहाने बनाए,तब भी नहीं जाने दूं। बिना समय गवाए ही उस पर व्यंग्य लिख डालूंगा।
उस समय कहीं भी
रहूँ,वहीं पर लिखने बैठ जाऊंगा। चाहे सफर में रहूँ या हमसफर के साथ रहूँ। जाम
में फंसा हुआ भी जाम खुलने से पहले स्मार्टफोन पर एकाध पैराग्राफ तो लिख ही डालूंगा क्योंकि आजकल तो लेखक परंपरागत कागज,कलम,दवात छोड़कर,मोबाइल के जरिए ही रचना कर्म और रचना धर्म निभा
रहे हैं। कालजयी रचना की
व्यथा
यह सच है कि मेरे
दिमाग में आया विचार ज्यादा देर नहीं टिकता है। इसलिए मैं विचार को आते
ही पकड़ लेता हूँ और पकड़कर ई-मेल के ड्राफ्ट बॉक्स में बंद कर देता हूँ।
तत्पश्चात जब मन करता है, तभी ड्राफ्ट बॉक्स को खोलकर
उस पर लिखने लग जाता हूँ। मुकम्मल होते ही संपादक महोदय
के हवाले कर देता हूँ। उसके बाद यह उन पर निर्भर करता है कि वे उसके साथ क्या सलूक
करते हैं। प्रकाशित करके उन्मुक्त करते हैं या ई-मेल के
इनबॉक्स में ही पड़े रहने देते हैं या फिर डिलीट करके उसकी जीवन लीला ही समाप्त कर देते हैं। अगर उसे प्रकाशित का
सौभाग्य प्राप्त हो जाता है तो फेसबुक पर उसकी कटिंग चिपकाकर मैं भी लाइक व कमेंट
बटोर लेता हूँ।
कालजयी विषय के
विचार को दिमाग में लाने के लिए, मैंने अपने दिमाग की खिड़कियां ही नहीं,बल्कि मेन गेट भी खोल रखा है। विचार का कोई अता पता नहीं,कब व कहां से आ जाए और आकर कहां चला जाएं। मस्तिष्क के चारों ओर पहरेदार भी खड़े कर रखे हैं ताकि विचार आते ही धर दबोच लें। नींद में भी आ
गया तो छोड़ने वाला नहीं हूँ। तुरंत जागकर पकड़ लूंगा और उस पर लिखने लग जाऊंगा।
सच बता रहा हूँ,एक बार
विचार दिमाग में घुस गया न तो उसे पकड़कर ऐसा व्यंग्य लिखूंगा, जिसे पढ़कर हर कोई
आश्चर्यचकित रह जाएगा। व्यंग्य लिखने की जितनी भी शैली है न, सब की सब उसमें समाहित कर दूंगा। व्यंग्य को व्यंग्यमय बनाने के लिए अभिधा,लक्षणा,व्यंजना शब्द शक्ति का प्रहार करने से भी नहीं
डरूगा। जहाँ पर यह लगेगा कि यहाँ पंच मारना है,वहीं पर पंच
का एनकाउंटर कर दूंगा।
जब उस रचना को
संपादक महोदय के पास ई-मेल करूंगा न तो जो संपादक रिप्लाई की घास तक नहीं
डालता है,वह भी आपके द्वारा
प्रेषित की गई रचना को हम सम्मिलित कर रहे हैं,कृपया इसे
अन्यत्र नहीं भेजें,लिखकर रिप्लाई का चारा-पानी तक डालेगा। छपने
के बाद जब फेसबुक पर लगाऊंगा न,तब शानदार,मजेदार,धारदार,बेहतरीन,लाजवाब,बेमिसाल,
उम्दा,बहुत खूब,वाह,जैसे कमैंट्स नहीं आने लगे तो कहना।
दिमाग की नसें
फटने को तैयार हैं,मगर कमबख्त विचार नहीं आ रहा है। जबकि
समसामयिक विषयों के विचार दिमाग का दरवाजा खटखटा रहे हैं। दिमाग के अंदर घुसने के लिए,एक-दूसरे के कोहनी मार रहे हैं। पर समसामयिक विषयों पर लिखकर करू भी क्या? उनकी उम्र सप्ताह भर से ज्यादा नहीं
होती। इस समय में किसी भी अखबार में जगह नहीं मिली तो उसकी जिंदगी वैसे नरक बन जाती है। मुझे तो सौ साल से भी ऊपर की उम्र का विषय चाहिए जिसके
जरिए मेरी पहचान बन सके। आने वाली पीढ़ी सदियों तक याद रखें।
बहरहाल सोच-सोचकर
थक चुका हूँ और इसी तरह सोचता रहा
तो आज नहीं तो कल,कल नहीं तो
परसों,परसों नहीं तो वर्ष दो वर्ष बाद जिस विषय पर अब से पहले कालजयी
व्यंग्य नहीं लिखा है,उस विषय का आईडिया दिमाग में आ ही
जाएगा। तब तक के लिए इन सामयिक विषयों से ही काम
चला लेता हूँ। यह भी फेसबुक पर बधाई के कमेंट तो दिलवाए देते हैं। इनके जरिए भी
थोड़ी-बहुत पहचान तो बन ही जाती है। नाम के साथ व्यंग्यकार तो लग ही जाता है। वैसे भी अधिकतर अखबारों के व्यंग्य कॉलम समसामयिक विषय पर ही होते हैं।