29 Apr 2019

कालजयी रचना की व्यथा



सोचते-सोचते दिमाग खराब हो रहा था मगर उस विषय का आइडिया ही नहीं आया जिस पर अब से पहले किसी ने भी व्यंग्य नहीं लिखा है। अगर इस तरह का कालजयी विषय दिमाग में आ जाए,तो आने के पश्चात उसे किसी भी हालात में जाने न दूं। जाने के लिए आग्रह करें या बहाने बनाए,तब भी नहीं जाने दूं। बिना समय गवाए ही उस पर व्यंग्य लिख डालूंगा।
उस समय कहीं भी रहूँ,वहीं पर लिखने बैठ जाऊंगा। चाहे सफर में रहूँ या हमसफर के साथ रहूँ। जाम में फंसा हुआ भी जाम खुलने से पहले स्‍मार्टफोन पर एकाध पैराग्राफ तो लिख ही डालूंगा क्योंकि आजकल तो लेखक परंपरागत कागज,कलम,दवात छोड़कर,मोबाइल के जरिए ही रचना कर्म और रचना धर्म निभा रहे हैं।  कालजयी रचना की व्यथा 


यह सच है कि मेरे दिमाग में आया विचार ज्यादा देर नहीं टिकता है। इसलिए मैं विचार को आते ही पकड़ लेता हूँ और पकड़कर ई-मेल के ड्राफ्ट बॉक्स में बंद कर देता हूँ। तत्पश्चात जब मन करता है, तभी ड्राफ्ट बॉक्स को खोलकर उस पर लिखने लग जाता हूँ। मुकम्मल होते ही संपादक महोदय के हवाले कर देता हूँ। उसके बाद यह उन पर निर्भर करता है कि वे उसके साथ क्या सलूक करते हैं। प्रकाशित करके उन्मुक्त करते हैं या ई-मेल के इनबॉक्स में ही पड़े रहने देते हैं या फिर डिलीट करके उसकी जीवन लीला ही समाप्त कर देते हैं। अगर उसे प्रकाशित का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है तो फेसबुक पर उसकी कटिंग चिपकाकर मैं भी लाइक व कमेंट बटोर लेता हूँ। 
कालजयी विषय के विचार को दिमाग में लाने के लिएमैंने अपने दिमाग की खिड़कियां ही नहीं,बल्कि मेन गेट भी खोल रखा है। विचार का कोई अता पता नहीं,कब व कहां से आ जाए और आकर कहां चला जाएं। मस्तिष्क के चारों ओर पहरेदार भी खड़े कर रखे हैं ताकि विचार आते ही धर दबोच लें। नींद में भी आ गया तो छोड़ने वाला नहीं हूँ। तुरंत जागकर पकड़ लूंगा और उस पर लिखने लग जाऊंगा।
सच बता रहा हूँ,एक बार विचार दिमाग में घुस गया न तो उसे पकड़कर ऐसा व्यंग्य लिखूंगा, जिसे पढ़कर हर कोई आश्चर्यचकित रह जाएगा। व्यंग्य लिखने की जितनी भी शैली है नसब की सब उसमें समाहित कर दूंगा। व्यंग्य को व्यंग्यमय बनाने के लिए अभिधा,लक्षणा,व्यंजना शब्द शक्ति का प्रहार करने से भी नहीं डरूगा। जहाँ पर यह लगेगा कि यहाँ पंच मारना है,वहीं पर पंच का एनकाउंटर कर दूंगा।
जब उस रचना को संपादक महोदय के पास ई-मेल करूंगा न तो जो संपादक रिप्लाई की घास तक नहीं डालता है,वह भी आपके द्वारा प्रेषित की गई रचना को हम सम्मिलित कर रहे हैं,कृपया इसे अन्यत्र नहीं भेजें,लिखकर रिप्लाई का चारा-पानी तक डालेगा। छपने के बाद जब फेसबुक पर लगाऊंगा न,तब शानदार,मजेदार,धारदार,बेहतरीन,लाजवाब,बेमिसाल,
उम्दा,बहुत खूब,वाह,जैसे कमैंट्स नहीं आने लगे तो कहना। 
दिमाग की नसें फटने को तैयार हैं,मगर कमबख्त विचार  नहीं आ रहा है। जबकि समसामयिक  विषयों के विचार दिमाग का दरवाजा खटखटा रहे हैं। दिमाग के अंदर घुसने के लिए,एक-दूसरे के कोहनी मार रहे हैं। पर समसामयिक विषयों पर लिखकर करू भी क्याउनकी उम्र सप्ताह भर से ज्यादा नहीं होती। इस समय में किसी भी अखबार में जगह नहीं मिली तो उसकी जिंदगी वैसे नरक बन जाती है। मुझे तो  सौ साल से भी ऊपर की उम्र का विषय चाहिए जिसके जरिए मेरी पहचान बन सके। आने वाली पीढ़ी सदियों तक याद रखें।
बहरहाल सोच-सोचकर थक चुका हूँ और इसी तरह सोचता रहा तो आज नहीं तो कल,कल नहीं तो परसों,परसों नहीं तो वर्ष दो वर्ष बाद जिस विषय पर अब से पहले कालजयी व्यंग्य नहीं लिखा है,उस विषय का आईडिया दिमाग में आ ही जाएगा। तब तक के लिए इन सामयिक विषयों से ही काम चला लेता हूँ। यह भी  फेसबुक पर बधाई के कमेंट तो दिलवाए देते हैं। इनके जरिए भी थोड़ी-बहुत पहचान तो बन ही जाती है। नाम के साथ व्यंग्यकार तो लग ही जाता है। वैसे भी अधिकतर अखबारों के व्यंग्य कॉलम समसामयिक विषय पर ही होते हैं।

25 Apr 2019

मतदाता की समझ


देखिए,चुनावी महासंग्राम चल रहा है। चुनाव लड़ने वाले योद्धा मैदान-ए-जंग में ताल ठोक रखे हैं। जिससे राजनीतिक दांव-पेच नहीं लग पा रहा है,वह बेतुके बयानों के जरिए चुनाव जीतना चाहता है। मगर सामने वाला भी कमजोर नहीं है वह भी सियासी तरकश से बेतुके बयानों के बाण प्रक्षेपित करके उसे पटकनी देने में लगा है।
बेतुके बयानों से राजनीतिक गलियारों में रौनक छा गई है। टीवी वालों को डिबेट के लिए मुद्दा मिल गया है। आरोप-प्रत्यारोपण के बीज प्रस्फुटित होकर पौधे का आकार लेने के लिए तीव्र गति से बढ़ने लगे है। लगता है आम चुनाव के अंतिम चरण से पहले वटवृक्ष का रूप धारण अवश्य कर लेंगे।

एक-दूसरे पर बेतुके बयानों का प्रहार देखकर,इनका नतीजा तय करने वाला वोटर अभी चुप्पी साधे हैं। वह लाइव देख रहा है कि मतदान दिवस तक बेतुके बयानों से कौन घायल होता है और कौन बचकर निकलता है। और जनता किसके पक्ष में उतरती है। उसके बाद में ही वह अपना अमूल्य वोट ईवीएम को समर्पित करेगा। क्योंकि वह अपने वोट की ताकत भली-भांति जानता है। उसे पता है कि लोकतंत्र में आम आदमी के पास एक वोट देने का ही तो अधिकार है। जिसका उपयोग भी  किसी ऐरे-गैरे,नत्थू-खैरे के पक्ष में कर दिया,तो वोट गड्ढे में चला जाएगा। यह कोई भी नहीं चाहता है कि मेरा वोट गड्ढे में जाएबल्कि सबकी यही इच्छा होती है कि मेरे वोट से ऐसी सरकार बने की अपने संसदीय क्षेत्र के साथ-साथ देश के भी तस्वीर बदल जाए।
लेकिन बेतुके बयान देने वाला नेताजी ईवीएम का बटन दबाने से पहले वोटर पर अपनी जादुई छड़ी के जरिए,कुछ इस तरह का जादू टोना करता है कि वोटर का वोट अपने आप ही खींचा चला आता है। परंतु उसकी जादुई छड़ी पर निर्वाचन आयोग की निगरानी रहती है। इसलिए उसका जादू चल नहीं पाता है। पर कई बार आचार संहिता का उल्लंघन करके जादुई छड़ी का जादू चल भी जाता है और अपेक्षा से ज्यादा वोट ले भी लेता है। जिसे हम आश्चर्यजनक परिणाम कहते हैं संभवतः वह किसी ना किसी जादूई छड़ी का ही परिणाम होता है।
ज्ञानी जनों का कहना है कि जिनके पास मुद्दे नहीं होते,वह बेतुके बयान देकर सुर्खियां बटोरते हैं और वोटर को असमंजस में डाल देते हैं। ताकि मतदान से पहले कोई और उसे बरगलाने नहीं सके। क्योंकि कई बार मतदाता बहकावे में आकर भी मतदान कर देता है। लेकिन आज का मतदाता पहले वाला नहीं है। बहुत समझदार हैं। नेताओं की हर चाल को समझता है। जीतने के बाद कौन अपेक्षाओं पर खरा उतरेगा और कौन नहींयह जांच परख कर ही ईवीएम का बटन दबाता है।


23 Apr 2019

हाशिए पर अटकी लटकी कर्मठता

वह कर्मठ कार्यकर्ता है। इसका प्रमाण पार्टी का हर वह बड़ा नेता है,जो उसे भले ही नाम से नहीं जानता हो,लेकिन शक्ल से अच्छी तरह से पहचानता हैं। जब भी कोई बड़ा नेता उसकी पीठ थपथपाता है,तो उसका सीना इतना चौड़ा हो जाता है कि नापे तो इंची टेप कम पड़ जाए। थपथपाने से पीठ भी इत्ती मजबूत हो गई है कि चुनाव का सारा भार उठा लेती है। दरी-पट्टी बिछाने में और कुर्सियां उठाने में तो जरा सी भी नहीं दुखती है। बल्कि मांसपेशियों को मजबूती प्रदान होती है।


धरना-प्रदर्शन के नेतृत्व कर्ता के नेतृत्व में पीठ ने पुलिस की लाठियां भी खूब खाई है। पर कभी भी पीठ नहीं दिखाई। भले ही खुद लहूलुहान हो जाए,मगर अपने लीडर के खरोंच तक नहीं आने देता है। पार्टी के प्रति यह उसकी सच्ची निष्ठा है। जिसको निभाए रखना अपना परम कर्तव्य समझता है। अपनी कार्यशैली पर कभी प्रश्नवाचक नहीं लग जाएइसलिए पार्टी के हर कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। चुनावी समय में तो दिन-रात पार्टी के प्रचार-प्रसार में जुटा रहता है। उसकी यह उपस्थिति भी इस बात की गवाह है कि वह पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता है।

वह पार्टी के प्रति कितना समर्पित है। यह बताने की आवश्यकता नहीं है। उसके गले में लटका पार्टी के रंग में रंगा पट्टा और हाथ में उठाए हुए पार्टी के झंडे को देखकर ही पता लग जाता है। जब वह पार्टी के नाम के जिंदाबाद के नारेे लगाता है तो उसे देखकर बाकी कार्यकर्ताओं में अपने आप ही जोश आ जाता है। उसे कार्यकर्ताओं में जोश भरने का अग्रदूत कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। 

वह पुतले तो इस तरह से फूँकता हैं कि देखने वाले की फूँक निकल जाती है। उस समय कोई उसकी और आगे बढ़ता है तो फूँक-फूँक कर कदम रखता हैं। पता नहीं क्या कर डाले। आक्रोशित हो जाए। आक्रोश आक्रोश में जलते पुतले में पेट्रोल डालकर उसे और दहका दे। पार्टी को जब भी किसी का पुतला फूँकना होता है तो उसी से सींक लगवाते हैं। क्योंकि वह भली-भांति जानता है कि कब और किसके सामने पुतला फूँकना है। जब तक पुलिस और प्रेस वाले नहीं आ जाएं,तब तक तीली भी नहीं जलाता है।

पार्टी में उसके योगदान पर एक नजर डालें,तो उन माननीयों की खादी पर उसके योगदान की चमक अवश्य दिख जाएगी। जिनकी खादी पर पहलेे दाग लगे हुए थे और अब दाग का नामोनिशान नहीं है। और उनकी कुर्सी पर योगदान का बलिदान दिख जाएगा। जो जमीन से आसमान पर पहुँच गए हैं। जब भी चुनावी समय आता है तो इन सबको जिताने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा देता है। खादी पर लगे हुए दागों को राजनीतिक साजिश बताकर ऐसी धुलाई कर देता है कि वोटर को कहीं पर दाग नजर ही नहीं आता है।

लेकिन जब उसने टिकट मांगा तो पार्टी ने उसे हाशिए पर धकेल दिया। उसकी जगह उसे टिकट दे दिया,जो विरोधी पार्टी से आकर शाम को ही पार्टी में सम्मिलित हुआ था। जिसे नहीं तो पार्टी की रीति-नीति पता है और नहीं पार्टी का इतिहास जानता है। मगर इससे कार्यकर्ता के ज्ञान चक्षु खुल गए। उसे ज्ञान हो गया। पार्टी में कार्यकर्ता,कार्यकर्ता ही रहता है। उसका कभी प्रमोशन नहीं होता है। 

14 Apr 2019

जिंदगी वाया सोशल मीडिया



आजकल किसी की भी आवाजाही का पता लगाना मुश्किल नहीं है। कब जा रहा है,कहाँ जा रहा है,कब वापस रहा है। आदि-इत्यादि पूछने की भी जरूरत नहीं है। बस सोशल मीडिया पर अपडेट रहिए। अपने आप ही मालूम पड़ जाएगा। कहाँ जा रहे हैं और कहाँ से रहे हैं। अब दीवार पर टंगे कैलेंडर को निहारने के दिन गए। उसकी जगह डिजिटल कैलेंडर ने ले ली है। जो कि हर किसी के मोबाइल में लटका रहता है। बगैर पन्ना पलटे ही तिथि वार,तीज त्यौहार,जयंती पुण्यतिथि पलक झपकते ही बता देता है। 
जो सोशल मीडिया पर अपडेट रहता है। वह घर से कहीं बाहर जाता है,तब भले ही परिजनों को नहीं कहकर जाता हो,लेकिन फेसबुक पर बताकर ही निकलता है। पहुँचते ही जहाँ पर गया है,वहाँ की सेल्फी पोस्ट करके बता देता है कि अमुक जगह हूँ। अकेला गया है या साथ में गया है,यह तो सेल्फी से मालूम लग जाता है।
आप किसी भी शुभ अवसर या पर्व पर देख लीजिएजितनी बधाई फेसबुक पर दी जाती हैं,उतनी फेस टू फेस कहाँ दी जाती है। सब जानते हैं कि फेस टू फेस तो एक ही व्यक्ति को दे सकते हैं। फेसबुक पर एक ही पोस्ट से हजारों को शुभकामनाएँ दे दी जाती हैं और कमेंट के जरिए खुद को भी ढेर सारी शुभकामनाएँ मिल जाती हैं।किसी को अलग से भी प्रेषित नहीं करनी पड़ती है। एक ही पोस्ट से सबको निपटा दिया जाता है। यही सोचकर लोग फेस टू फेस के बजाय फेसबुक पर बधाई  देना ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं।
भले ही आपको अपना बर्थडे याद नहीं रहे। लेकिन आप फेसबुक पर हैं तो आपके फेसबुक मित्रों को अवश्य याद रहता हैं। चाहे परिजन,यार-दोस्त रिश्तेदार विश नहीं करें,किंतु एफबी फ्रेंड विश्व के किसी भी कोने में होबर्थडे  पर मुबारकबाद देना कभी नहीं भूलते हैं। खास फ्रेंड तो डिजिटल गिफ्ट तक भेंट करते हैं। मसलनस्टीकर इमोजी। मेरा जैसा तो सोशल मीडिया पर ही डिजिटल केक काटकर अपने जन्मदिन को यादगार बना लेता हैं।
विवाह के उपलक्ष्य पर होने वाली वधू की मुँह दिखाई की रस्म-अदायगी देख लीजिए,दुल्हन ससुराल में नहीं पहुँचती उससे पहले तो सोशल मीडिया पर बगैर नेग दिए ही पूरी दुनिया उसका मुँह देख लेती हैं। आज की दुल्हन के लिए भी नेग से ज्यादा इंपोर्टेंट लाइक कमेंट हो गया है। नेग मिले या नहीं मिलेइसकी परवाह नहीं हैबस लाइक कमेंट मिलने चाहिएइसकी चिंता जरूर रहती है। दूल्हा-दुल्हन फेरे बाद में लेते हैं,पहले लाइव आते हैं। आप शादी में नहीं जा सके,तो पश्चाताप करने की कोई जरूरत नहीं है। वैवाहिक लाइव  देख लीजिए। शादी से ज्यादा मजा जाएगा। आजकल तो प्रथम पूज्य गणपति जी की जगह भी सोशल मीडिया ने ले ली है। आप खुद ही देख लीजिएहम शादी का निमंत्रण पत्र गणपति जी से पहले किसी ना किसी को तो व्हाट्सएप पर भेज ही देते हैं।
अब किसी  से जन्म मरण की भी जानकारी लेने की जरूरत नहीं है। नवजात शिशु को स्तनपान बाद में कराते हैं पहले उसको सोशल मीडिया के दर्शन कराते हैं। वहाँ से पूरी दुनिया को पता पड़ जाता है कि फलाना सिंह बाप बन गया है। लोग सही कहते हैं कि आजकल के बच्चे पैदा होते ही हाथ में मोबाइल थमा लेते हैं। जो बच्चा पैदा होते सोशल मीडिया पर गया। वह होश संभालते ही मोबाइल तो मांगेगा ही। इसी तरह मृतक व्यक्ति परलोक गमन नहीं करता है,उससे पहले तो उसका आगमन सोशल मीडिया पर हो जाता है। यहाँ पर श्रद्धांजलि सभा से पहले तो इतनी श्रद्धांजलि दे दी जाती हैं,मृतक की आत्मा तृप् हो जाती है। अच्छा परिजन चाहे जीवित के जीवनभर ठोकर मारते रहे होलेकिन मृत्यु के उपरांत सोशल मीडिया पर इतनी श्रद्धा से श्रद्धांजलि अर्पित करते हैंजिसे देखकर यह कतई नहीं लगता है कि मृतक के प्रति लगाव नहीं था,बल्कि ऐसा लगता है कि बहुत ख्याल रखते थे।  
देश-दुनिया में क्या घटित हो रहा है और कौन सुर्खियां बटोर रहा है। यह जानने के लिए अखबार के पन्ने पलटने की या टीवी ऑन करने की जरूरत नहीं है। बस सोशल मीडिया पर अपडेट रहिए, आपको अपने आप ही पल-पल की खबरें मिलती रहेंगी। क्योंकि खबरिया चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज़ से पहले तो पूरी स्टोरी सोशल मीडिया पर छा जाती है।
लेखकों को ही देख लीजिए,परम्परागत कागज,कलम,दवात को छोड़कर,सोशल मीडिया पर मोबाइल की-बोर्ड के जरिए रचना कर्म और रचना धर्म निभा रहे हैं। वहां चुटकुलेबाजों और अफवाहबाजों से उनकी स्पर्द्धा जारी है। कल तक जो श्रोता और पाठक ढूंढते थे,आज सुबह-शाम फॉरवर्ड हो रहे हैं। हिसाब लगाया जा रहा है कि एक आह के असर होने तक कितने फॉरवर्ड की जरूरत होती है। अपनी फेसबुक वॉल पर पुष्प जैसे शब्दों की चादर बिछाकर,शब्दों के फूलों पर नहीं मंडराने वाले भंवरे एवं भंवरियों को भी टैग करके लाइक कमेंट बटोर रहे हैं।
आजकल तो प्यार-प्रेम  रिश्ते-नाते सोशल मीडिया के जरिए ही होने लग गए हैं। ब्याह शादी कराने वाला बिचौलिया नामक प्राणी धीरे-धीरे लुप्त होता जा रहा है।छोरा-छोरी चैट करते-करते ही आपस में सेट हो जाते हैं। सेट होने के बाद तो वैवाहिक टेंट लगकर ही रहता हैं।अब सोशल मीडिया इतना ताकतवर बन गया है कि एक ही रात में जीरो को हीरो और हीरो को जीरो बना देता हैं। मेरा तो मानना है कि जिंदगी में कुछ करना है और आगे बढ़ना है तो सोशल मीडिया पर अपडेट रहिए।