1 Apr 2019

एक अदद ‘झूठ’ की तलाश में हूं

मैं कई दिनों से उस ‘झूठ’ की तलाश में हूँ,जिसे बोलकर लोग अपना कार्य आसानी से करवा लेते हैं। नौकरी पा लेते हैं। कारोबार खड़ा कर लेते हैं। प्रेम-प्रसंग चला लेते हैं। शादी रचा लेते हैं। चुनाव जीत जाते हैं। रिश्‍वत ले लेते हैं। पुरस्कार पा लेते हैं। अखबार में छप जाते हैं। टीवी पर दिख जाते हैं। सुर्खियों में बने रहते हैं। खास ऐसा ही झूठ मुझे भी बोलना आता,तो मैं दर-दर की ठोकरें नहीं खा रहा होता। कहीं न कहीं कुछ न कुछ जॉब कर रहा होता। मैं जब भी झूठ बोलता हूँ,पकड़ा जाता हूँ। एक दफा तो पकड़ा ही नहीं गया,अच्छे से धुनाई भी हुईवह भी बिना वॉशिंग पाउडर के। जिस ‘झूठ’ की मुझे तलाश है,उस के लिए मैंने बहुत पापड़ बेले। उन तमाम लोगों से मिला जो झूठ बोलने में पीएचडी हैं। झूठ बोलने के गुर सिखाते हैं। झूठ की बुनियाद पर अपना कारोबार चलाते हैं। इन सभी ने एक ही बात बताई,झूठ बोलने में है बड़ी कठिनाई। हमने तो झूठ बोलकर कईयों को फंसाया,तेरी तू जान भाई। ऐसा झूठ बोलने वालों ने मुझे बताया।

जिसने भी झूठ बोलने का नायाब तरीका बताया,मैंने वहीं अपनाया पर अपने आप को नाकामयाब पाया। इसका कारण मेरी समझ में आज तक नहीं आया। लेकिन मैं हार नहीं मानूंगा। किसी ने मुझे यह भी बताया है कि झूठ बोलने के लिए कसम भी खानी पड़ती हैं। मैं कसम खाने के लिए तैयार हूँ। माँ-बाप। बीवी-बच्चे। भाई-बहिन। यार-दोस्त रिश्‍तेदार की कसम तो मैं ऐसे खा जाऊंगा जैसे लोग गाजर-मूली खाते हैं। झूठी कसम खाने से पहाड़ थोड़ी टूट जाएंगा। लोग तो भरी अदालत मेंगीता’ पर हाथ रखकर न जाने कैसी-कैसी और किस-किस की कसम खा जाते हैं। उन पर न तो पहाड़ टूटता है और नहीं वे पहाड़ तले दबते हैं। झूठ बोलने वाले तो स्वर्गवासी माँ-बाप की कसम तक खा जाते हैं। मुझे ‘आपकी कसम’,‘मेरी कसम’ खाने में भला मेरा क्या जाता हैं। बस,मुझे तो वह ‘झूठ’ बोलना आना चाहिए। जिसे बोलकर लोग बड़ी-बड़ी मछली यूं ही फंसा लेते हैं।

झूठ बोलकर कैसे फंसाते हैं, इसकी खुफिया जानकारी एक महाशय ने दी। उसने बताया कि झूठ बोलने में न हींग लगती हैं,न फिटकिरी। रंग चोखा आता है। न तेरे बाप का। न मेरे बाप का कुछ जाता हैं। जो भी आता है। उसी से आता है,जिसके सम्मुख हम झूठ बोल रहे हैं। झूठ बोलने से अगर कुछ भी नहीं आता है,तो कोई बात नहीं। कम से कम झूठ बोलने का अभ्यास ही हो जाता है,जो आगे काम आता हैं। अपने आप कोई नहीं फंसता हैं। उसे फंसाया जाता हैं। कैसे फंसाया जाता हैं, यह तरीका भी उसने ही बताया। जिस तरह से बकरे को हलाल करने से पूर्व उसे कुछ खिलाते-पिलाते हैं उसके बाद हलाल करते हैं। उसी तरह से झूठ से किसी को फंसाना है,तो पहले उसकी अच्छी तरह से खातिरदारी करों फिर मौका देखकर बातों ही बातों में वह ‘झूठ’ बोल दो। जिससे अपना स्वार्थ सिद्ध होता है। बातों ही बातों में इसलिए,क्योंकि  उसे शक नहीं हो कि बंदा झूठ बोलकर अपने को फंसा रहा है। शक हो गया तो पकड़ा जाएंगा और पकड़ा गया तो मार पड़ना स्‍वभाविक है। इस कला में निपुण हो गया तो समझ ले फिर कहीं भी हिचकिचाने की जरूरत नहीं।
उसी ने बताया कि आज कौन झूठ बोल रहा है और कौन सच,यह परखना जरा मुश्किल है। झूठ सच लगता हैं और सच झूठ। तू तो आँख मूंद कर झूठ बोल। किसी सामने नहीं बोल सकता है,तो मोबाइल पर झूठ बोल। मोबाइल पर तो ज्ञानी से ज्ञानी भी मूर्ख बन जाता है।

मसलन,दस- बीस किलोमीटर दूर बैठा व्यक्ति भी मोबाइल पर यही कहता है- दो मिनट में आ रहा हूँ। पांच मिनट में पहुंच रहा हूँ। नजदीक ही हूँ। बस आ गया। इत्ती स्पीड तो हवाई जहाज की नहीं होती जित्ती इन दो,पांच मिनट वालों की होती हैं। मैंने सलाह तो मान लीलेकिन मुझसे  मोबाइल पर भी झूठ नहीं बोला जा रहा। सोचता हूँझूठ हम बोलते हैं,बदनाम मोबाइल होता है। वह मोबाइलजो हमारे सुख-दुख का साथी है। ऐसे साथी को भी हम झूठ बोलने में क्‍यों शामिल करें। उसने हमारा क्‍या बिगाड़ा है!  

No comments: