देश के आगामी भविष्य के आमचुनाव ने धीरे-धीरे बढ़ते हुए रफ़्तार पकड़ ली है। नेताओं की भाषा शैली भी चुनावी लहजे में ढलने लगी हैं। एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने कि प्रक्रिया मौके की तलाश में खादी के अंदर से बाहर निकलने के लिए मचल रही है। झूठ का पुलिंदा चुनावी दरिया में छलांग लगाने के लिए कपड़े उतारकर अर्धनग्न खड़ा हैं। नेताओं ने वादों की पोटली अपने सिर पर रख ली। बस उसकी गांठ खोलना बाकी है।
नेताओं के राजनीतिक विशेषज्ञ वोट हथियाने का लोकलुभावन सलीका खोजने में जुटे हुए हैं। क्योंकि अबकी बार भ्रष्टाचार, महंगाई,गरीबी, शिक् षा, पानी, बिजली, सड़क इत्यादि मुद्दे चुनावी मुद्दे बने या नहीं बने।लेकिन एयर स्ट्राइक,राफेल,राम मंदिर,बुलेट ट्रेन,रुपया वर्सेस डॉलर,बेरोजगारी,धारा 370,स्मार् ट सिटी,नोटबंदी,जीएसटी,जैसे मुद्दे चुनावी मुद्दे बनने की पूरी संभावनाएं दिख रही है। सत्ताधारी इन मुद्दों के गुणगान के गीत गाएगा तो विपक्ष आलोचना के ढोल बजाएगा।
देश अपना भविष्य संवारने के लिए,आमचुनाव के आईने के सामने खड़ा हो गया है,लेकिन आम चुनाव का आईना धुंधलाया हुआ है। अभी तक उस पर किसी ने साफ करने के लिए पानी के छींटे तक नहीं मारे हैं। लगता है कि देश का वोटर ही सात चरणों में वोट रुपी पानी के छींटे मारकर रद्दी अखबार से ऐसा साफ करेगा की पांच साल तक धूल व दाग-धब्बे लगेंगे नहीं।
लेकिन क्या आमचुनाव ही देश का भविष्य संवारने का एकमात्र माध्यम है? क्या देश के नेताओं के हाथ में ही देश का भविष्य है?क्या आम आदमी देश का भविष्य नहीं बना सकता है? सही मायने में देश का भविष्य को संवारने की जिम्मेवारी देश के प्रत्येक नागरिक हैं। लेकिन हम देश के भविष्य के बारे में तो क्या अपने भविष्य के बारे में नहीं सोचते हैं। सही पूछिए तो मुझ जैसा तो भविष्य की तो छोड़िए अपने वर्तमान को सही ढंग से व्यतीत नहीं कर पाता है। किसी ने कहा भी है कि जिसने अपना वर्तमान सही ढंग से व्यतीत कर लिया,उसका भविष्य अपने आप ही उज्ज्वल है।
आप कुछ भी कहिए या सोचिए, लेकिन नेता अपना भविष्य संवारने के लिए हमेशा चिंतित रहता है। चुनावी मौसम में तो अपना पंचवर्षीय भविष्य बनाने के सिवाय और कुछ सोचता नहीं है। अपना भविष्य बनाने के लिए वोटर से हाथ मिलाने से लेकर उसके पांव पकड़ने तक की प्रक्रिया से गुजरने से नहीं सकुचाता है। चुनावी दौर में तो आप नेताजी से चांद सितारे जमीन पर उतारने के लिए कहेंगे तो एक बार तो उनके लिए भी मना नहीं करेगा। अमूल्य वोट के लिए तो निहायत गरीब या दलित के घर का भोजन भी करना पड़े तो मौके को गंवाएगा नहीं। अमूल्य वोट का भी मूल्य निर्धारित करके उसे खरीदनेे की पूरी कोशिश करते हैं। क्योंकि अच्छे दाम लगने पर बिकने वालों की भी कमी नहीं है। सच पूछिए तो नेता खुद का भविष्य सुधारने के लिए किसी का भी भविष्य बिगाड़ सकते हैं। देश का भविष्य बनाना तो इनका एक बहाना है। असल में तो यह खुद का भविष्य बनाने में लगे रहते हैं।
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