उनकी वंशवाद की
बेल मुरझाई गई थी। सूखकर गिर न जाए। इस चिंता में वे खुद सूखते जा रहे थे।मगर जैसे
ही चुनावी मौसम ने दस्तक दी बेल फूटने लगी। जिसे देखकर बुझ
चुका उम्मीद का दिया जल उठा। कल्पना की कोंपल टहनियों का रूप लेने के लिए मचलने लगी। अतीत के झरोखे की बंद पड़ी खिड़कियो को खोलकर उनमें से अपना राजनीतिक
उज्ज्वल भविष्य देखने लगे। वंशवाद की बेल को सींचने वाले सोचने लगे,अगर पार्टी ने टिकट का खाद दे दिया तो बेल पूर्व की भाँति फिर से हरी-भरी हो जाएगी। एक बार बेल
हरीतिमा का रूप ले ली तो फिर उसकी इस तरह से सार संभाल करते रहेंगे कि भविष्य में
फिर कभी नहीं मुरझा पाएगी।
उन्होंने टिकट
का खाद लेने के लिए,मुरझाने से
पहले बेल ने विकास के खट्टे-मीठे अंगूर जनता को समर्पित किए थे,उनका पूरा विवरण बायोडाटा में लिखकर आलाकमान को
सौंप दिया। मगर बायोडाटा में यह कतई उल्लेख नहीं
किया कि पराभव का कीड़ा लगने
के कारण फलती-फूलती वंशवाद की बेल मुरझा गई थी। टिकट का खाद नहीं मिला तो हमने
पानी देना भी मुनासिब नहीं समझा। शायद इसलिए भी मुरझा गई थी।
लेकिन आलाकमान
को बायोडाटा सौंपते समय यह जरूर बताया था कि चुनावी मौसम में हमारी वंशवाद की बेल फूटने लगी है। आपने टिकट का खाद दे दिया तो यह समझिए कि बेल को खिलने में टाइम नहीं लगेगा। यह तो आप भी भली-भांति जानते हैं कि कितने वर्षों
से सियासत के वृक्ष पर हमारी
वंशवाद की बेल बढ़ती रही है। जिस को और आगे बढ़ाने के लिए टिकट का खाद मांग रहे
हैं।
बायोडाटा
की बजाए फूटती हुई बेल को देखने के लिए,आलाकमान ने तीन सदस्यों की टीम उनके संसदीय क्षेत्र में भेजी। टीम ने बेल को अच्छी तरह से देखने के
बाद जनता की नब्ज टटोली तो नतीजा चौंकाने वाला सामने आया। अबकी बार वंशवाद की बेल
को टिकट का खाद दे दिया तो पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। वंशवाद की
बेल ने जनता को सिर्फ विकास के अंगूर दिखाएं हैं,खिलाए नहीं है। जबकि खुद ने विकास के अंगूर की
बहुत सारी बेल लगा रखी है।
एक
नये युवा चेहरे ने भी ताल ठोक रखी है। जिसकी पैरवी पार्टी के कई
कार्यकर्ता कर रहे हैं। मगर आलाकमान को नया चेहरा जम
नहीं रहा है। क्योंकि नये चेहरे में इतनी ताकत नहीं है कि विपक्ष के प्रत्याशी से
टक्कर ले सकें। सियासत के दांव-पेच नहीं जानता है।
विपक्ष के प्रत्याशी से तो वंशवाद की बेल का उम्मीदवार ही टक्कर ले सकता है। इसलिए बिना समय गवाए प्रथम सूची में ही वंशवाद
की बेल को टिकट का खाद दे दिया।
टिकट
का खाद मिलते ही वंशवाद की बेल सत्ता के वृक्ष पर फलने-फूलने के लिए,मतदाताओं
से मिलने-जुलने लगी। वायदों की पोटली खोलने लगी। अपने वंश की सियासत के गुणगान के गीत गाने लगी। लेकिन यह तो मतगणना के बाद ही पता लगेगा की वंशवाद की बेल पर फूल खिलते
हैं या नहीं।
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