देखिए,जिस तरह से थर्मामीटर में पारा चढ़ता है तो पसीना छूटना स्वाभाविक है, उसी तरह से चुनावी मौसम में नेताओं की जुबान का फिसलना भी नैसर्गिक हैं। यही तो उनका सीजन
है,जिसमें उनके बड़बोले बोल बिना भाव-ताव किए ही थोक के भाव
में आसानी से बिक जाते हैं। यह तो समय होता है अपनी पंचवर्षीय भड़ास निकालने का और
विरोधी पर कीचड़ उछालने का। अगर ऐसे सुनहरे अवसर में
भी बेतुके बयान नहीं दिया तो नेता अपने नेता होने पर धिक्कार है,समझता है।
बेतुके बयान देने वाले नेताओं का मानना है कि विवादित बयान देने से ही तो पहचान बनती है। पहचान बनती है,तब लोकप्रियता तो अपने आप ही अर्जित हो जाती हैं। लोकप्रिय होने के पश्चात
वोटर नेताजी के चंगुल में फंसे बिना रह जाए,ऐसा संभवतःसंभव नहीं। यह कोई जरूरी नहीं है कि
अच्छा भाषण ही चुनावी वैतरणी पार करवा सकता है। कई बार विवादित बयान भी सत्ता की
कमान दिलवा देता है।
विवादित बयान इतिहास के पन्नों को पलटकर देखेंगे तो अतीत में ऐसे बहुत से नेताओं का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा
हुआ मिल जाएगा। जिन्होंने चुनावी दौर में बेतुके बयानों की बाढ़ ला दी थी और उसके
बावजूद भी भारी बहुमत से जीते हैं। आज के नेता अपने पूर्वजों के पदचिह्नों पर न चलकर,आधुनिक
राजनीति के पन्नों पर एक ऐसा इतिहास लिखने में लगे हुए
हैं,जो कि भारत के लोकतंत्र में अब से पहले कभी नहीं लिखा गया हो। जिसके लिए,ऐसे-ऐसे ऊटपटांग शब्द ईजाद कर रहे हैं कि
भविष्य में अपने देश के ही नहीं,बल्कि अन्य लोकतांत्रिक
देशों के जनप्रतिनिधि भी चुनावी समय में अपना राजनीतिक कैरियर संवारने के लिए इन ऊटपटांग शब्दों का उपयोग करते नजर आएंगे।
जब वे ऐसे शब्दों का प्रयोग करेंगे,तो निश्चित
तौर पर राजनीति के मायने बदल जाएंगे। आरोप-प्रत्यारोप की जगह ऊटपटांग शब्दों के जरिए एक-दूसरे पर छींटाकशी करेंगे। मुद्दों पर वार्ता नहीं करेंगे,बल्कि मुद्दे पर मुद्दईगिरी
करते फिरेंगे। असली मुद्दे को छोड़कर बेमतलब के मुद्दों
पर डिबेट करते नजर आएंगे। मुर्दे मुद्दे को भी जिंदा कर देंगे और जिंदे को मुर्दा
कर देंगे।
हो सकता है कि भविष्य में राजनीति विषय के शोधार्थियों के लिए शोध
का विषय बेतुके बयानों की बयानबाजी दिलचस्प रहे। जो शोधार्थी इस विषय पर शोध करेगा,संभवतः उसे ज्यादा
परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। क्योंकि उसे अपने आजू-बाजू में ही विषय से संबंधित
पर्याप्त सामग्री मिल जाएगी। यथार्थ ऐसे नेता मिल
जाएंगे,जो जाने ही विवादित बयानों की वजह से जाते हैं। इस विषय पर गूगल की शरण में जाकर
उससे पूछेंगे,तो वह भी ऐसे-ऐसे बयानवीरों की जीवनी बता देगा,जिनके सियासी तरकश से
बेतुके बयानों के बान ही निकलते हैं।
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