थानागाजी
गैंगरेप की घटना निर्भया कांड से भी बड़ी है। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख
दिया है। हर कोई स्तब्ध है। घर से बाइक पर सवार होकर निकले दंपत्ति को
घर से थोड़ी दूर आगे ही दुहार चौगान मार्ग पर दो बाइकों
पर सवार पांच युवकों ने उनके आगे बाइक लगाकर पहले तो
उनके साथ मारपीट की बाद में सड़क से दूर रेत के ऊंचे
टीलों के बीच में ले जाकर दोनों के कपड़े उतार दिए। फिर
पति को बंधक बनाकर उसकी आंखों
के सामने ही पत्नी के साथ बारी-बारी से 6 बार बलात्कार करके अपनी दरिंदगी का मोबाइल से वीडियो तक बना लिया। उस समय
दंपत्ति खूब चीखें,पुकारे भी,मगर दरिंदे बहुत ही शातिर थे, उनको ऐसे ऊंचे रेत के
टीलों बीच में ले गए थे, जहां से उनकी चीख-पुकार टीलों से
बाहर निकली नहीं पाई। दरिंदों ने ढाई घंटे तक दरिंदगी की।
26 अप्रैल
की घटना का मामला 2 मई को दर्ज होता है। वो तब,जब पीड़ित 30 अप्रैल को
पुलिस अधीक्षक के समक्ष पेश होते हैं और आपबीती बताते हैं। पुलिस
अधीक्षक के निर्देश पर थानागाजी की पुलिस गुपचुप में मामला तो दर्ज कर लेती है,लेकिन चुनाव का हवाला देकर मामले को 5 दिन तक दबाए
रखती है। यहाँ पर कई सवाल खड़े होते हैं। आखिरकार पुलिस
मामले को 5 दिन तक क्यों दबाए रखी?
तत्परता से अपेक्षित कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इस घटना का चुनाव से क्या संबंध था? क्या किसी राजनीतिक षड्यंत्र के तहत मामले को दबाया गया था? अच्छा पुलिस तो नींद से तब जगी,जब दरिंदों ने अपनी दरिंदगी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था।
जनता के आक्रोश के बाद आनन-फानन में पुलिस की 14 टीम गठित की
जाती हैं। अभी तक तीन आरोपी गिरफ्तार हुए हैं। जबकि मुख्य आरोपी अभी तक पुलिस के हाथ नहीं लगे हैं।
इसी क्षेत्र
में इससे पूर्व भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। इस गैंगरेप के दूसरे दिन ही एक
और गैंगरेप का मामला सामने आया है। यह भी थाना अधिकारी के पास 2
दिन पहले आ गया था। लेकिन इस मामले को भी दबा दिया गया। हालांकि
इसके मुख्य आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। यहां पर पुलिस की कार्य
प्रणाली पर प्रश्न उठते हैं और सरकार भी सवालों के घेरे में घिरती है। हालांकि
थानागाजी गैंगरेप मामले में एसपी ने थाना अधिकारी को निलंबित कर दिया और एसपी को
सरकार ने एपीओ कर दिया है। लेकिन क्या थाना अधिकारी को निलंबित और एसपी को एपीओ
करने से पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ेगा।
इस
घटना को लेकर जनता में इतना आक्रोश है कि मुख्य आरोपी अतिशीघ्र गिरफ्तार नहीं किए
गए तो देश में जगह-जगह आंदोलन होने की पूरी आशंका है। लेकिन एक अहम सवाल
खड़ा होता है कि इस तरह गैंगरेप की घटनाएं आखिर कब तक
होती रहेगी। कब तक ऐसे वहशी दरिंदे हमारी बहन-बेटियों को नोचते रहेंगे। आखिर कठोर कानून के बावजूद भी इस तरह के अपराधियों के हौसले बुलंद क्यों हैं? क्यों आए
दिन मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म होते हैं? इन सब के पीछ आखिरकार
जिम्मेदार कौन है? आखिर महिलाओं की सुरक्षा किसके भरोसे हैं।
आज समूचे
देश में ऐसी कोई जगह नहीं बची होगी। जहां छेड़छाड़,लूटपाट,दुष्कर्म व हत्या की घटना घटित नहीं हुई हो।
विकृत प्रवृत्ति के भेडि़ए अपनी हवस पूरी करने के लिए,मासूमों
को भी नहीं छोड़ते। शायद ही ऐसा कोई दिन होगा। जिस दिन देश के किसी कोने से यौन
हिंसा की खबरें अखबारों में नहीं आई हो। अखबारों में तो वे ही
हेडलाइन होती है। जिनका मामला पुलिस में दर्ज हो जाता है या फिर सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती हैं। महिलाओं से जुड़ी बहुत सी जघन्य घटनाएं तो सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण
उजागर ही नहीं हो पाती है। परिजन मामले को इसलिए दबा लेते हैं कि समाज में हमारी
प्रतिष्ठा पर प्रश्नवाचक नहीं लग जाए। या फिर समाज के रसूखदार कोर्ट कचहरी में जाने से पहले ही मामले को दबा देते हैं। कई बार बलात्कार जैसी वीभत्स घटनाएं अपराधियों के भय के कारण भी उजागर नहीं हो पाती है। क्योंकि अपराधी
अपराध करके इस तरह से डराते धमकाते हैं कि पीड़ित सहम जाते हैं।
सच पूछिए तो आज महिलाओं का घर से निकलना
दुश्वर हो गया है। स्वयं या घर के
कामकाज के लिए,महिलाएं घर बाहर
निकलती ही हैं पर, महिलाओं को घर से बाहर निकलते ही,यही भय रहता हैं। कहीं उनके साथ कोई विकृत अनहोनी नहीं हो जाएं। यह खौफ तब
तक बना रहता है। जब तक वे घर वापस नहीं आ जाएं। परिजन भी चिंतित रहते हैं। अपनी
बेटी,बहु सही सलामत घर पहुंच जाती हैं। तब जाकर परिजन राहत
की सांस लेते हैं। अगले दिन फिर यह प्रक्रिया रहती है। महिलाओं का अकेले बाहर
निकलना किसी खतरे से कम नहीं। वहशी इसी फिराक में रहते हैं। वे कभी भी और कहीं भी
हमला कर सकते हैं। रात सुरक्षित है नहीं। लेकिन दिन का भी कोई भरोसा नहीं।
यदि
राजस्थान में अपराधों की घटनाओं के आंकड़ो पर बात की जाए तो राष्ट्रीय अपराध
रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2016 की रिपोर्ट के
अनुसार राजस्थान में दुष्कर्म के 3656 मामले दर्ज किए गए। इन
आंकड़ों के साथ राजस्थान का स्थान देश में चौथे नंबर पर रहा। यदि नाबालिक बच्चियों
के यौन शोषण के आंकड़ों पर प्रकाश डाला जाए तो यह आंकड़े चौंका देने वाले हैं। वर्ष 2015
से 2017 के बीच 3 वर्षों
में राजस्थान में 3897 बच्चियों के साथ रेप की वारदातें
हुईं। इन आंकड़ों के मान से प्रतिदिन तीन नाबालिक बच्चियां यौन अपराध की पीड़ा को सह
रहीं हैं। बलात्कार के उम्रवार उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक करीब चालीस प्रतिशत
बच्चियां 14 साल तक की उम्र में बलात्कार का दंश झेल रही
हैं। वहीं 1877 घटनाएं शारीरिक शोषण की भी दर्ज हुई हैं। 18
फीसदी मामलें ऐसे भी हैं जिनमें पुलिस अपराधियों को न पकड़ पाने के
कारण चालान पेश ही नहीं कर पाई,जिसके चलते वे अपराध के बाद
भी मुक्त हैं। समाज में महिलाओं के साथ अपराध होना चिंता का विषय है लेकिन अपराध
होने के पश्चात पुलिस की कार्यप्रणाली तथा सजा मिलने में देरी उससे भी बड़ी चिंता
की बात हैं। जब तक पुलिस की कार्यप्रणाली में तेजी नहीं आएगी अपराधियों में कानून
व्यवस्था का भय नहीं बन पाएगा, आवश्यकता तो कानूनी प्रक्रिया
में तेजी की भी हैं।
प्रत्येक चुनाव में महिला
सुरक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें
की जाती है। मगर वे बातें चुनावी शोरगुल में ही घुल मिलकर रह जाती हैं। सरकार
महिला सुरक्षा की मुनादी तो खूब करती है। लेकिन जब किसी महिला पर अत्याचार होता है
तो चुप्पी साध लेती है। देश में कानून हैं। मगर कानून के रखवाले गहरी नींद में सोए
रहते हैं।
दिल्ली
के निर्भया कांड के बाद उम्मीद की किरण निकली थी। लेकिन वह भी धीरे-धीरे विलुप्त
हो गई। सरकार महिलाओं के संदर्भ में कानून बनाती रहती हैं। लेकिन जिस कानून की
महती आवश्कता है। शायद वह आज तक बना ही नहीं। अगर देश में सख्त कानूनी प्रक्रिया
होती तो निर्भया कांड ही नहीं होता। अपराधियों का दुस्साहस प्रतिदिन बढ़ता जा रहा।
इस दुस्साहस की प्रवृत्ति को रोकना ही होगा। आखिरकार महिलाएं ही अत्याचार की शिकार
क्यों होती हैं? जिस पुरूष प्रधान की
जन्म जननी नारी है,वहीं पुरूष नारी के साथ उत्पीडऩ क्यों
करता है?
महिला
सशक्तिकरण की पहल तब सार्थक होगी। जब देश में महिलाओं पर किसी भी तरह का उत्पीडऩ
नहीं होगा। नारी के पिछे चलने वाला अपराध बोध। पीछा करना छोड़ देगा। तब सही मायने
में महिला सशक्तिकरण चरितार्थ होगी। दकियानूसी जंजीरों से तो महिलाएं स्वतंत्र हो
गई। मगर पुरूषों की संशय दृष्टि से स्वतंत्र नहीं हुई। समाज के कई ठेकेदार महिलाओं के पहनावे पर किचड़
उछालते हैं। पहनावे को जिम्मेदार ठहराना कतई उचित नहीं है। प्राचीन काल में तो
कपड़े ही नहीं थे। पेड़ पत्तों की छाल बांधकर अपने शरीर की हिफाजत करती थी। तब
महिलाएं सुरक्षित थी। आज सुरक्षित क्यों नहीं? यह बुनियादी
सवाल आज भी कायम है। इस तकनीकी युग में ही नारी सुरक्षित नहीं,फिर कब होंगी?अब वक्त आ गया है नारी की सुरक्षा करने
का। नारी भावनात्मक पहलुओं की कोमल अभिव्यक्ति है, जिसमें
उसका स्वतंत्र भाव समर्पित रूप से समाया हुआ है।
-
मोहनलाल
मौर्य
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