इन दिनों
घर-घर में दिवाली स्वच्छता अभियान से चल रहा है। अभियान के
तहत उड़ने वाले धूल मिट्टी के गुब्बारे गगन को छूने के बजाय नाक में घुसकर छींक को
बाहर निकाल रहे हैं। छींक है
कि बाहर निकलकर धूल मिट्टी
पर हमला बोल रही है। उड़नपरी धूल-मिट्टी और छींक के बीच
में घमासान युद्ध को देखकर झाड़ू बहुत प्रफुल्लित होता है। क्योंकि उसे जिन हाथों
ने पकड़ रखा है,वो हाथ उसे छोड़कर नासिका को पकड़ लेते हैं।
हाथ से उन्मुक्त होकर झाड़ू जब नीचे गिरता है, तब उसे बहुत
मजा आता है। क्योंकि दिन भर इस दीवार से उस दीवार पर चलने के कारण इतना थक जाता है
कि पूरी रात करहाता रहता है। छींक है कि इसको पल दो पल का आराम करवा देती है। इसलिए यह छींक
की तरफदारी करता रहता है और धूल मिट्टी के गुब्बारों को खदेड़ने में रहता है।
अभियान
के तहत झाड़ू से मकड़जाल पर हमला किया जा रहा है। बहादुर मकड़िया जाले से कूदकर
फर्श पर गिर रही है और अपनी जान बचाने में कामयाब हो रही है। कमजोर जाले के ही
चिपककर जान गवाह रही हैं और चतुर देखते-देखते ही न जाने कहां पर ओझल हो जाती हैं।
शायद उन्हें पता होता है कि दिवाली पर्व के आसपास कभी भी हमला हो सकता है। इसलिए
इन दिनों वो अहर्निश सजग रहती हैं। झाड़ू स्पर्श होते ही भाग निकलती हैं। जो उसी
समय झाड़ू के लिपटे जाले को निकालने में मशगूल हो जाता है। उसके घर की मकड़िया तो
कभी भी नहीं मरती है। वहीं पर बिंदास रहती और सफाई के दूसरे दिन ही फिर से अपना
मकड़जाल बनाना आरंभ कर देती हैं।
इस
अभियान में कई छिपकलियों के झाड़ू लगने से उनकी पूंछ टूट जाती है और टूटकर नागिन
डांस करने लगती हैं। जिसे देखकर वो कीड़े-मकोड़े बहुत प्रसन्न होते हैं। जो कटी
पूंछ की छिपकली के मुंह में आने से बाल-बाल बच गए थे। मगर कीड़े मकोड़ों पर हमला
देखकर छिपकली बिल्कुल भी प्रफुल्लित नहीं होती हैं। क्योंकि उसका कई दिनों का भोजन
एक ही दिन में साफ-सफाई की भेंट चढ़ जाता है।
जो कॉकरोच को देखते ही डर जाता है। उसके घर के कॉकरोच अपने ऊपर झाड़ू पड़ते ही झाड़ू में ही घुस जाते हैं। जब तक झाड़ू को
दो-तीन बार फटकारे नहीं। तब तक बाहर नहीं निकलते है। निकलने के बाद सीधे उस तरफ
भागते हैं,जहां पर रद्दी पड़ी होती है। रद्दी में घुसने के बाद रद्दी
बिकने पर ही बाहर निकलते हैं।जिनके घर में चूहों ने
हमला बोल रखा है। दिवाली के समय उन पर शामत आ जाती है। घर की साफ सफाई के साथ-साथ
उनका भी सफाया हो जाता है। इनमें भी जो उस्ताद होता है।
वह तो चकमा देकर घर के ही किसी ओने-कोने में छिप जाता है और जो भोला भाला होता है,वह बेचारा बेमौत मारा जाता है।
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