देश के मध्य में प्रदेश के एक युवा नेता के बरसों से हाथ
में हाथ था और अब उनके हाथ में कमल है। उनको हाथ वाला कमल साथ लेकर नहीं चला,तो वो अपनी दादी और बुआये के वाले कमल की गोद में जाकर बैठ गए। गोद में बैठते ही उनको
राज्यसभा का टिकट दे दिया।
क्या यही कारण था? होली के मौके पर भगवा रंग में रंग
जाने का या फिर नेपथ्य में और ही कुछ है। खैर,यह तो आने वाला
वक्त ही बताएगा। उन पर भगवा रंग परवान चढ़ता है या नहीं। लेकिन जिनका रंग बदरंग
करके गए हैं। वो बंद कमरे में बैठकर मंत्रणा कर रहे होंगे। महाराज के खेमे वाले भी
उनके साथ चले गए तो क्या होगा। कैसे भी करके खेमे वालों को लाना होगा। अन्यथा खेमे
वाले सरकार गिरा देंगे। सरकार गिर गई तो जल्दी सी उठेगी नहीं। उठ भी गई तो यह जरूरी
नहीं है कि हमारी ही हो जाएगी। गिराने वालों की गोद में जाकर बैठ जाए। बस इसे तो
बहुमत का सहारा चाहिए। फिर चाहे गठबंधन के द्वारा सहारा दिया जाए या फिर अकेले
दिया जाए।
वैसे तो उन्होंने सरकार को गिरने से बचाने के
लिए अपने विधायकों को
होली भी नहीं खेलने दिया। जिस स्थिति में थे उसी स्थिति में विशेष विमान में
बिठाकर रिसोर्ट में पहुंचा दिया है। रिसोर्ट में ठहरे विधायक कड़ी निगरानी में है।
निगरानी में इसलिए है कि एक भी विधायक इधर-उधर नहीं हो जाए। इधर से उधर हो गया तो
उधर से फिर इधर लाना मुश्किल हो जाता है। मुश्किल होने के बाद फ्लोर टेस्ट का मैच
खेलना भारी हो जाता है। जीते हुए भी हारे के बराबर हो जाते हैं।
रिसोर्ट से कई विधायक इधर से उधर जाने में रहते
हैं। मौका मिलते ही चले भी जाते हैं। सियासत में मौका कोई नहीं छोड़ना चाहता है।
सब के सब मौके पर चौका मारने में रहते हैं। लेकिन चौका उसी का लगता है,जो राजनीति का मंझा हुआ खिलाड़ी होता है। दल
बदलने में देरी नहीं करता है। ऑफर मिलते ही हाथ मिला लेता है। गिरगिट की तरह रंग
बदलने में अग्रणी रहता है।
अब विधायक गायब होने लगे हैं। गायब वाले नायाब
होते हैं। ऐन मौके पर आते हैं और आते
ही मलाईदार विभाग हथिया लेते हैं। मुझे तो लगता
है कि यह मलाई खाने के लिए ही गायब होते होंगे हैं। यह गायब होते हैं तो इनके
परिजन बिल्कुल भी चिंतित नहीं होते हैं और नहीं पुलिस को इत्तला करते हैं। माननीय
जी गायब हो गए या किसी ने अपहरण कर लिया है। क्योंकि उन्हें भी पता है कि गायब हुए
हैं तो,प्रमोशन होकर ही आएंगे। प्रमोशन नहीं भी होकर आए तो
सूटकेस भरकर लेकर आएंगे।
ऐसे अवसर पर हॉर्स ट्रेंडिंग भी होती है। बिकने वाली बिक जाते हैं और नहीं बिकने वाले
रह जाते हैं। कहते हैं कि बिकता हर कोई है,बस उसकी कीमत
लगाने वाला चाहिए। सबकी अपनी अलग-अलग कीमत होती हैं। कई तो हिनाहिना कर अपनी कीमत
बता देते हैं और कईयों की कीमत खरीदार को ही आकलन करनी होती है। सियासत के खरीददार
सबसे पहले उन घोड़ों को खरीदते हैं,जो पंचवर्षीय रेस में बीच
में रह नहीं जाए। मोहनलाल मौर्य
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