20 Mar 2020

मोबाइल पर खांसने का संक्रमण


इन दिनों मैं जब भी किसी के पास फोन लगाता हूं, मेरे मोबाइल में बुजुर्ग व्यक्ति की तरह पहले तो कोई खांसता है, उसके बाद में एक युवती कोरोना वायरस के बचाव के उपाय बताती है। आजकल तो नॉर्मल खांसी भी कोरोना वाली लगती है। इसलिए मोबाइल के खांसने पर एक बार तो डर सा लगता है। कहीं मुझे भी कोरोना अपनी गिरफ्त में न ले ले। मोबाइल के खांसते ही युवती के बताए निर्देशानुसार उसे एक मीटर दूर कर देता हूं और जेब से रूमाल निकालकर अपने मुंह पर लगा लेता हूं। जब तक अगला फोन उठा नहीं लेता, तब तक मोबाइल को कान नहीं लगाता हूं। रूमाल तो फोन कटने के बाद ही मुंह से हटाता हूं। वैसे तो फोन के भीतर वाली युवती की बताई एक-एक बात गांठ बांधने वाली है। जिसने नहीं बांधा, उसकी जिम्मेदारी खुद की है।
जब सामने वाला फोन उठाते ही खांसने लगता है, तब और ज्यादा डर लगता है। कहीं कोरोना मोबाइल में घुसकर न आ जाए। अब तो किसी के पास फोन भी लगाता हूं, तो डरते-डरते लगाता हूं। फोन उठाते हेलो की जगह भैया खांसी आए, तब भी खांसना मत बोले बगैर नहीं रहता। यह सुनकर कई तो इतने नाराज हो गए हैं कि उनकी नाराजगी दूरभाष पर दूर नहीं होगी। उनके पास ही जाना पड़ेगा, मगर इन दिनों पास जाना खतरे से कम नहीं है।
कल ही एक जिगरी दोस्त के पास गया, तो वह मुंह फुलाए बैठा था। कारण पूछा, तो बगैर मुंह पर रूमाल रखे जोर-जोर से खांसने लगा। उसके खांसते ही कारण जाने बगैर, जरूरी काम का हवाला देकर वहां से चला आया। उसने तुरंत मुझे फोन लगाया, लेकिन मैं जान-बूझकर नहीं उठाया, क्योंकि वह फोन पर भी खांसे बगैर नहीं रहता। आजकल मुझे जितना डर खांसी से लगता है, उतना फांसी से भी नहीं लगता।
एक वह दौर भी था। खांसकर घर में प्रवेश करने पर घर की बहुएं बिना बताए समझ जाती थीं कि कोई घूंघट वाला ही आया है। आजकल खांसने से लोग भाग निकलते हैं। मोहनलाल मौर्य

1 comment:

ADITYA DEV said...

बहुत सुंदर। अच्छा लेख