25 May 2020

लॉकडाउन में बुजुर्ग दंपति की व्‍यथा

हमारे मोहल्ले में एक खंडहर नुमा हवेली में रहने वाले नि:संतान बुजुर्ग दंपति हवेली के सामने से गुजरने वाले से दूर से ही यही पूछते हैं कि यह लॉकडाउन कब खुलेगा। गुजरने वाले यही कहते हैं कि जल्दी ही खुलेगा।जब दंपति द्वारा आगे तो नहीं बढ़ेगा पूछने पर बगैर कुछ बताए,वहां से खुद आगे बढ़ जाते हैं। तब आगे बढ़ते को देखकर उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख जाती हैं। उनकी खोपड़ी में कोरोना काल के चलचित्र चलने लगते हैं। 
इनको तो कोरोना वायरस के बारे में भी तब पता चला था जब एक संस्था के लोग उन्हें राशन देने आए थे और  समझाकर गए थे कि भूलकर भी हवेली की चौखट मत लांघना। लांघ गए तो हवेली के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। साथ में कईयों के सिर पर से बाप का साया उठ जाएगा और न जाने कितने ही विधवा व विधुर हो जाएंगे। उस दिन से कोरोना क्या बला है। यह अच्छी तरह से समझ गए थे।
दरअसल में क्या है कि खंडहर नुमा हवेली में इनका दिन में दम घुटता है। दिन में दम इसलिए घुटता है कि खट-खट करते हुए चलने वाला सीलिंग फैन तो है,लेकिन उसे चलाने के लिए बिजली नहीं है। कोरोना काल से पहले लाइनमैन ने बिजली का बिल जमा नहीं कराने के कारण उनका कनेक्शन काट दिया था। बिल इसलिए जमा नहीं करा पाए थे कि बिल की राशि उनको मिलने वाली वृद्धा पेंशन से कहीं ज्यादा आई थी। दोनों को वृद्धा पेंशन इतनी ही मिलती है,जो कि लून,तेल व लकड़ी में ही खर्च हो जाती है। यह तो शुक्र है कि कोटे के गेहूं समय पर मिल गए हैं। वरना खाने के लाले पड़ जाते।

आम दिनों में तो दोनों का दिन कभी इसके तो कभी उसके पास उठने बैठने से आराम से कट जाता था। पर अब काटना मुश्किल हो रहा है। सब घरों के अंदर कैद है। आवाज मारने पर भी बाहर नहीं निकलते हैं। कोई निकल भी आता है तो अपनी शक्ल नहीं दिखाता है। मुंह पर मास्क लगाए रहता है। जिससे पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह कौन है? मोहन या सोहन। दिनभर दीवार पर चढ़ती छिपकलियों को देखते रहते हैं। चिड़िया के घोंसले से चू-चू करते बच्चों को निहारते रहते हैं। चहुँओर पसरे सन्नाटे के बीच कभी-कभार कबूतरों की गुटरगू और नीम के पेड़ पर बैठी कोयल की कू-कू की आवाज कानों में पड़ती है,तो उनकी ओर टकटकी लगाकर देखने लग जाते हैं। 
सुबह-शाम हवेली की चौखट पर मुंह पर हस्तनिर्मित मास्क लगाकर बैठ जाते हैं और सूने पड़े रास्ते पर कुत्तिया के पिल्लों की अठखेलियां देखकर थोड़ा बहुत हंस लेते हैं। जब पिल्ले दिखाई नहीं देते हैं,तो नीले गगन के तले उड़ते पक्षियों को गिनने लग जाते हैं। पर किसी से भी मिलने-जुलने नहीं जाते हैं। यहां तक कि चौखट लांघकर पड़ोसी की देहरी तक भी नहीं जाते हैं। जबकि पड़ोसी की देहरी हवेली से पचास फुट दूर भी नहीं है।उन दोनों का कहना है कि चौखट लांघना कोरोना को न्योता देना है।
 मो‍हनलाल मौर्य

17 May 2020

एक व्हाट्सएप ग्रुप की कहानी


मैं एक ऐसे साहित्यिक व्हाट्सएप समूह का सदस्य हूँ,जिसके सदस्यों की सदाशयता देखने लायक है। वे संसद के सदस्यों की तरह साहित्य पर चर्चा करते हैं। चर्चा के दौरान जो सदस्य विषय से हटकर चर्चा करता है, तो उसे ग्रुप के संविधान रिमूव अनुच्छेद के तहत  बाहर निकाल दिया जाता है। 
उसके बाहर जाने के बाद अंदर वाला कोई भी माननीय सदस्य उसे फिर से वापस लाने के लिए  ‘प्रत्यावर्तन विधेयक ग्रुप में पेश कर देता है,तो संसद की तरह उस पर विचार-विमर्श होता है। पक्ष-विपक्ष में उसके साहित्यिक योगदान पर बहस होती है। बहुमत प्राप्त होने के पश्चात विधेयक को ग्रुपपति के पास भेजा जाता है। ग्रुपपति के हस्ताक्षर होने के बाद उस माननीय सदस्य को ससम्मान ऐड पार्टिसपेंटअनुच्छेद के तहत वापस सम्मिलित कर लिया जाता है।ग्रुपपति महोदय अपने विचार विषम परिस्थितियों में ही रखते हैं,क्योंकि सामान्य परिस्थिति में वो विचार रखने की स्थिति में नहीं रहते हैं,साहित्य साधना में तल्लीन रहते हैं। 
ग्रुप में दो माननीय सदस्य को अन्य सदस्यों की प्रकाशित रचनाओं को अलसुबह ही ग्रुप में डालने का गौरव प्राप्त है। यह दोनों सुबह उठते ही सबसे पहले अखबारों के ई-पेपर देखते हैं। अपने ग्रुप सदस्य की रचना दिखते ही क्रॉप करके सीधे ग्रुप में डाल देते हैं। साथ में बगैर पढ़े ही बधाई भी चेप देते हैं। इनकी बधाई के बाद बधाई का सिलसिला देर रात तक जारी रहता है।
कई बार बधाईयों पर प्रतिबंधविधेयक पेश किया गया है और पूर्ण बहुमत से पास भी हुआ है,लेकिन इनका सिलसिला पूर्व की भांति सुचारू रूप से प्रारंभ हो जाता है। इस संदर्भ में ग्रुप का संविधान लचीला है,जिसे कठोर बनाने के लिए एक कोर कमेटी गठित की गई है। 
ग्रुप में एकमात्र वरिष्ठ माननीय सदस्य हैं,जो प्रकाशित रचना पर अपनी आलोचनात्मक टिप्पणी के साथ ही अपने विचार रखते हैं,अन्यथा फिर वह रखते ही नहीं है। यह बधाई में विश्वास नहीं रखते हैं। ऐसा भी नहीं है कि वह बधाई विरोधी है,लेकिन यह रचना का आलोचनात्मक पोस्टमार्टम करना अपना धर्म समझते हैं। वह अपने के प्रति सदैव सजग रहते हैं। थोड़ी सी भी आंच नहीं आने देते हैं। आ जाए तो डिबेट के लिए तैयार रहते हैं।
ग्रुप में तीन-चार माननीय वरिष्ठ सदस्य ऐसे भी हैं,जो सदैव कनिष्ठ सदस्यों की रचनाओं में खामियां निकालकर वाहवाही लूटने में रहते हैं।  गिद्ध की तरह अशुद्ध शब्द पर नजर गड़ाए रखते हैं। दिखते ही पकड़कर रख देते हैं। चाहे शब्द टाइपिंग मिस्टेक की वजह से अशुद्ध हुआ हो,लेकिन ये लोग मानते हैं कि लेखक को शुद्ध शब्द लिखना नहीं आता है।
दो माननीय सदस्य ऐसे हैं,जो कि घटिया से घटिया प्रकाशित लेख को भी प्रशंसा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किए बगैर नहीं रहते हैं। इनकी दृष्टि में प्रकाशित होना भी अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है,चाहे उस अखबार का एक भी पाठक नहीं हो। एक लेखक के लिए प्रकाशित का परम सुख ही काफी है। इनके पास ग्रुप के सभी सदस्यों के प्रशंसा प्रमाण पत्र  रखे हुए हैं। बस निकालकर देना ही रहता है। दोनों देने में सदैव अग्रणी रहते हैं। दोनों देते भी अलग-अलग हैं।

कुछेक सदस्य ऐसे हैं,जो कि ग्रुप की हर गतिविधि देखते रहते हैं। लेकिन चुप रहते हैं, कभी भी कुछ भी साझा नहीं करते हैं। ऑनलाइन उपस्थित होने के बावजूद भी अपनी हाजिरी तक नहीं बोलते हैं। जब कभी एडमिन या किसी वरिष्ठ सदस्य द्वारा कार्यवाही करने की धमकी दी जाती है,तब भले ही इमोजी डालकर अपनी उपस्थिति प्रस्तुत कर देते हैं।
इस साहित्यिक ग्रुप में सात-आठ नवांकुर लेखक हैं, जिन्हें कुछेक वरिष्ठ तो सदैव सींचने में रहते हैं और कुछेक टांग पकड़कर खींचने में लगे रहते हैं। ज्यादातर हम नवांकुरों को देश के किसी भी प्रमुख अखबार में लहलाते देखकर हतप्रभ रह जाते हैं।
ग्रुप में दो एडमिन है। एक कनिष्ठ और दूसरा वरिष्ठ हैं। दोनों में से एक भी बगैर बीन बजाए नहीं आते। आने के बाद सबको अपने ज्ञान का लिफाफा देकर ही जाते हैं। इनके लिफाफे को देखकर कई सदस्‍य तो कई दिनों तक संशय में रहते हैं।

14 May 2020

कोरोना काल में कहानी घर-घर की


वाह रे कोरोना तूने तो अदृश्यमान हो वो कमाल कर दिया जो आजतक कोई नहीं कर पाया। तूने एक ही झटके में बाहुबली कद्दावर मुल्कों को आसमान दिखा दिया। सबको घर के अंदर बैठा दिया। दिनभर बंदर की तरह उत्पात मचाने वाले भी चारदीवारी के भीतर जिगर थामे चुपचाप बैठे हैं। एक घंटे भी चैन से नहीं बैठने वाले भी महीनों से आराम से बैठे हुए हैं। तेरा इतना खौफ है कि जो किसी से भी नहीं डरते थे,वो म्याऊं बने बैठे हैं। चोर,उचक्के,गुंडे व मवाली भी सहमे हुए हैं। बाहर निकलने से कतराते हैं। जेब कतरे भी तुझे खतरा समझकर खुद की जेबों में ही हाथ दिए टहलते  हैं। उन्हें पता है कि लोगों की जरखेज जेबे तो खूंटी या हैंगर के टकी हुई हैं। बाहर इंसान तो क्याउसकी छाया भी दिखाई नहीं पड़ती है। माया-मोह में फंसे हुए भी अपनी काया पर तेरा साया नहीं पड़ जाएइसलिए सोच-विचार में डूबे हुए हैं। जो कभी चिंतित नहीं हुए,वो भी चिंता के दरिया में गोते लगा रहे हैं।
जिसे देखों,वहीं एक-दूसरे को समझा रहा है और तेरे से बचने के कारगर उपाय बता रहा हैं। ताज्जुब की बात है कि नासमझ भी समझ रहा है और बचाव के तमाम उपाय अपना रहा है। अक्सर हाथ मिलाकर अभिवादन करने वाले हाथ जोड़कर आदर सत्कार कर रहे हैं। जिसने कभी धूप से बचने के लिए भी मुंह पर रूमाल तक नहीं बांधी , वह भी मास्क लगाए रहता है। जो बाथरूम जाने के बाद सादा पानी से भी हाथ नहीं धोते थे। वे भी बीस सेकंड से भी ज्यादा समय तक साबुन लगाकर हाथ धो रहे हैं। सिर्फ धोते ही नहीं उसे निचोड़ते भी हैं. बहुतायत में मच्छर होने के बावजूद भी उन्हें मारने की दवा का कभी स्प्रे नहीं किया। पर तेरे विषाणु के कारण तमाम तरीके के रसायनों का जर्रे जर्रे में छिडकाव कर रहे हैं।
तेरे डर के मारे अपने भी अपनों से दूरी बनाकर रह रहे हैं। लापरवाह भी पूरी एहतियात बरत रहे हैं। जो अपने बाप की मृत्यु पर भी सिर नहीं मुंडवाए थे,वो तेरे कारण लगे लॉकडाउन में अपना सिर मुंडवा रहे हैं। जिसने कभी इधर का तिनका उधर नहीं किया,वो भी घर के सारे कामकाज कर रहे हैं। जिन्हें यह नहीं पता था कि चाय में पहले दूध पड़ता है या पानी,वे रसोई संभाल रहे हैं। दफ्तर में अपने अधीनस्थों पर हुक्म चलाने वाले चुपचाप झाड़ू पोंछा लगा रहे हैं। हमेशा हवा में उड़ान भरने घरेलू टाइप के हलवाई बने हुए हैं और बेचारे पेशेवर हलवाई हाथ पर हाथ धरे  मायूस बैठे हैं।
कोरोना तेरे भय से कई तो इतने भयभीत हो चुके हैं कि अपने सगे बाप की साधारण मौत पर उसे कंधा देना तो दूर उसके अंतिम संस्कार में सम्मिलित नहीं हो रही हैं। जो मृतक के घर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करने में सदैव अग्रणी रहते थे,वो पड़ोसी के स्वर्ग सिधारने पर भी उनके घर पर सांत्वना देने भी नहीं पधार रहे हैं। दिन में दस बार हाल-चाल पूछने वाले भी कहीं नहीं जा रहे हैं। उन्हें भी डर है कि हाल-चाल पूछने के चक्कर में कहीं मैं चपेट में नहीं आ जाऊं। ताश पत्ती खेलकर अपना टाइम पास करने वाले दिनभर मोबाइल में टाइम देखकर ही टाइम पास कर रहे हैं। मगर खेलने से डर रहे हैं। उन्हें पता है कि खेलने गए तो सेहत का खेल बिगड़ सकता है। इन दिनों सेहत बिगड़ गई और वह एंबुलेंस में बैठकर हॉस्पिटल चला गया,तो उसको कोरोना दृष्टि से देखते हैं।
कल तक डेंगू,मलेरियाचिकनगुनिया के मरीज की खबर पड़ोसी को भी नहीं लगती थी। कोरोना तेरे पॉजिटिव के मरीज की खबर पूरे शहर को मालूम हो जाती है कि फला कॉलोनी में एक और पॉजिटिव मिल गया है। आजकल पॉजिटिव सुनकर इतना डर लगता है कि सब सुन्न हो जाते हैं। अपने इलाके का पॉजिटिव से नेगेटिव आ जाता है न तब कहीं जाकर राहत की सांस लेते हैं। उससे पहले तो सांसे फूली ही रहती हैं।
कोरोना तूने कईयों को मालामाल तो कईयों को कंगाल कर दिया हैं। सदैव गुलजार रहने वाले बाजार बंद और कालाबाजार शुरू करवा दिया। शटर के नीचे से शराब बिकती देखी थी। मगर तूने तो गुटका,पानमसाला,तंबाकू,बीड़ी-सिगरेट भी शटर के नीचे से खरीदनेे पर मजबूर कर दिया है। 
कल तक नशेड़ियों का जो नशा दस रुपए में मिलता था। आज वह सौ रुपए में मिल रहा है।
फिर भी नशेड़ी खरीदे बगैर नहीं रह रहे हैं। माना कि तेरे कारण अपराध का ग्राफ घटा है और जल व वायु शुद्ध हुई है। लेकिन तेरे से लड़ने के लिए,समूचे विश्व में न जाने कितने योद्धा युद्ध लड़ रहे हैं। फिर भी तू पस्त नहीं हो रहा है। आखिर तू चाहता क्या हैतेरी मंशा क्या हैअब बहुत हो गया है। रहम कर। अपनी दृष्टि इस सृष्टि पर मत पटक। किसी अन्य ग्रह में जाकर अपनी भड़ास निकाल ले।