हमारे मोहल्ले में एक खंडहर नुमा हवेली में रहने वाले नि:संतान बुजुर्ग दंपति हवेली के सामने से गुजरने वाले से दूर से ही यही पूछते हैं कि यह लॉकडाउन कब खुलेगा। गुजरने वाले यही कहते हैं कि जल्दी ही खुलेगा।जब दंपति द्वारा आगे तो नहीं बढ़ेगा पूछने पर बगैर कुछ बताए,वहां से खुद आगे बढ़ जाते हैं। तब आगे बढ़ते को देखकर उनके चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिख जाती हैं। उनकी खोपड़ी में कोरोना काल के चलचित्र चलने लगते हैं।
इनको तो कोरोना वायरस के बारे में भी तब पता चला था जब एक संस्था के लोग उन्हें राशन देने आए थे और समझाकर गए थे कि भूलकर भी हवेली की चौखट मत लांघना। लांघ गए तो हवेली के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे। साथ में कईयों के सिर पर से बाप का साया उठ जाएगा और न जाने कितने ही विधवा व विधुर हो जाएंगे। उस दिन से कोरोना क्या बला है। यह अच्छी तरह से समझ गए थे।
दरअसल में क्या है कि खंडहर नुमा हवेली में इनका दिन में दम घुटता है। दिन में दम इसलिए घुटता है कि खट-खट करते हुए चलने वाला सीलिंग फैन तो है,लेकिन उसे चलाने के लिए बिजली नहीं है। कोरोना काल से पहले लाइनमैन ने बिजली का बिल जमा नहीं कराने के कारण उनका कनेक्शन काट दिया था। बिल इसलिए जमा नहीं करा पाए थे कि बिल की राशि उनको मिलने वाली वृद्धा पेंशन से कहीं ज्यादा आई थी। दोनों को वृद्धा पेंशन इतनी ही मिलती है,जो कि लून,तेल व लकड़ी में ही खर्च हो जाती है। यह तो शुक्र है कि कोटे के गेहूं समय पर मिल गए हैं। वरना खाने के लाले पड़ जाते।
आम दिनों में तो दोनों का दिन कभी इसके तो कभी उसके पास उठने बैठने से आराम से कट जाता था। पर अब काटना मुश्किल हो रहा है। सब घरों के अंदर कैद है। आवाज मारने पर भी बाहर नहीं निकलते हैं। कोई निकल भी आता है तो अपनी शक्ल नहीं दिखाता है। मुंह पर मास्क लगाए रहता है। जिससे पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह कौन है? मोहन या सोहन। दिनभर दीवार पर चढ़ती छिपकलियों को देखते रहते हैं। चिड़िया के घोंसले से चू-चू करते बच्चों को निहारते रहते हैं। चहुँओर पसरे सन्नाटे के बीच कभी-कभार कबूतरों की गुटरगू और नीम के पेड़ पर बैठी कोयल की कू-कू की आवाज कानों में पड़ती है,तो उनकी ओर टकटकी लगाकर देखने लग जाते हैं।
सुबह-शाम हवेली की चौखट पर मुंह पर हस्तनिर्मित मास्क लगाकर बैठ जाते हैं और सूने पड़े रास्ते पर कुत्तिया के पिल्लों की अठखेलियां देखकर थोड़ा बहुत हंस लेते हैं। जब पिल्ले दिखाई नहीं देते हैं,तो नीले गगन के तले उड़ते पक्षियों को गिनने लग जाते हैं। पर किसी से भी मिलने-जुलने नहीं जाते हैं। यहां तक कि चौखट लांघकर पड़ोसी की देहरी तक भी नहीं जाते हैं। जबकि पड़ोसी की देहरी हवेली से पचास फुट दूर भी नहीं है।उन दोनों का कहना है कि चौखट लांघना कोरोना को न्योता देना है।
मोहनलाल मौर्य