17 May 2020

एक व्हाट्सएप ग्रुप की कहानी


मैं एक ऐसे साहित्यिक व्हाट्सएप समूह का सदस्य हूँ,जिसके सदस्यों की सदाशयता देखने लायक है। वे संसद के सदस्यों की तरह साहित्य पर चर्चा करते हैं। चर्चा के दौरान जो सदस्य विषय से हटकर चर्चा करता है, तो उसे ग्रुप के संविधान रिमूव अनुच्छेद के तहत  बाहर निकाल दिया जाता है। 
उसके बाहर जाने के बाद अंदर वाला कोई भी माननीय सदस्य उसे फिर से वापस लाने के लिए  ‘प्रत्यावर्तन विधेयक ग्रुप में पेश कर देता है,तो संसद की तरह उस पर विचार-विमर्श होता है। पक्ष-विपक्ष में उसके साहित्यिक योगदान पर बहस होती है। बहुमत प्राप्त होने के पश्चात विधेयक को ग्रुपपति के पास भेजा जाता है। ग्रुपपति के हस्ताक्षर होने के बाद उस माननीय सदस्य को ससम्मान ऐड पार्टिसपेंटअनुच्छेद के तहत वापस सम्मिलित कर लिया जाता है।ग्रुपपति महोदय अपने विचार विषम परिस्थितियों में ही रखते हैं,क्योंकि सामान्य परिस्थिति में वो विचार रखने की स्थिति में नहीं रहते हैं,साहित्य साधना में तल्लीन रहते हैं। 
ग्रुप में दो माननीय सदस्य को अन्य सदस्यों की प्रकाशित रचनाओं को अलसुबह ही ग्रुप में डालने का गौरव प्राप्त है। यह दोनों सुबह उठते ही सबसे पहले अखबारों के ई-पेपर देखते हैं। अपने ग्रुप सदस्य की रचना दिखते ही क्रॉप करके सीधे ग्रुप में डाल देते हैं। साथ में बगैर पढ़े ही बधाई भी चेप देते हैं। इनकी बधाई के बाद बधाई का सिलसिला देर रात तक जारी रहता है।
कई बार बधाईयों पर प्रतिबंधविधेयक पेश किया गया है और पूर्ण बहुमत से पास भी हुआ है,लेकिन इनका सिलसिला पूर्व की भांति सुचारू रूप से प्रारंभ हो जाता है। इस संदर्भ में ग्रुप का संविधान लचीला है,जिसे कठोर बनाने के लिए एक कोर कमेटी गठित की गई है। 
ग्रुप में एकमात्र वरिष्ठ माननीय सदस्य हैं,जो प्रकाशित रचना पर अपनी आलोचनात्मक टिप्पणी के साथ ही अपने विचार रखते हैं,अन्यथा फिर वह रखते ही नहीं है। यह बधाई में विश्वास नहीं रखते हैं। ऐसा भी नहीं है कि वह बधाई विरोधी है,लेकिन यह रचना का आलोचनात्मक पोस्टमार्टम करना अपना धर्म समझते हैं। वह अपने के प्रति सदैव सजग रहते हैं। थोड़ी सी भी आंच नहीं आने देते हैं। आ जाए तो डिबेट के लिए तैयार रहते हैं।
ग्रुप में तीन-चार माननीय वरिष्ठ सदस्य ऐसे भी हैं,जो सदैव कनिष्ठ सदस्यों की रचनाओं में खामियां निकालकर वाहवाही लूटने में रहते हैं।  गिद्ध की तरह अशुद्ध शब्द पर नजर गड़ाए रखते हैं। दिखते ही पकड़कर रख देते हैं। चाहे शब्द टाइपिंग मिस्टेक की वजह से अशुद्ध हुआ हो,लेकिन ये लोग मानते हैं कि लेखक को शुद्ध शब्द लिखना नहीं आता है।
दो माननीय सदस्य ऐसे हैं,जो कि घटिया से घटिया प्रकाशित लेख को भी प्रशंसा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किए बगैर नहीं रहते हैं। इनकी दृष्टि में प्रकाशित होना भी अपने आप में बहुत बड़ी उपलब्धि है,चाहे उस अखबार का एक भी पाठक नहीं हो। एक लेखक के लिए प्रकाशित का परम सुख ही काफी है। इनके पास ग्रुप के सभी सदस्यों के प्रशंसा प्रमाण पत्र  रखे हुए हैं। बस निकालकर देना ही रहता है। दोनों देने में सदैव अग्रणी रहते हैं। दोनों देते भी अलग-अलग हैं।

कुछेक सदस्य ऐसे हैं,जो कि ग्रुप की हर गतिविधि देखते रहते हैं। लेकिन चुप रहते हैं, कभी भी कुछ भी साझा नहीं करते हैं। ऑनलाइन उपस्थित होने के बावजूद भी अपनी हाजिरी तक नहीं बोलते हैं। जब कभी एडमिन या किसी वरिष्ठ सदस्य द्वारा कार्यवाही करने की धमकी दी जाती है,तब भले ही इमोजी डालकर अपनी उपस्थिति प्रस्तुत कर देते हैं।
इस साहित्यिक ग्रुप में सात-आठ नवांकुर लेखक हैं, जिन्हें कुछेक वरिष्ठ तो सदैव सींचने में रहते हैं और कुछेक टांग पकड़कर खींचने में लगे रहते हैं। ज्यादातर हम नवांकुरों को देश के किसी भी प्रमुख अखबार में लहलाते देखकर हतप्रभ रह जाते हैं।
ग्रुप में दो एडमिन है। एक कनिष्ठ और दूसरा वरिष्ठ हैं। दोनों में से एक भी बगैर बीन बजाए नहीं आते। आने के बाद सबको अपने ज्ञान का लिफाफा देकर ही जाते हैं। इनके लिफाफे को देखकर कई सदस्‍य तो कई दिनों तक संशय में रहते हैं।

No comments: