वाह रे
कोरोना तूने तो अदृश्यमान हो वो कमाल कर दिया जो आजतक कोई नहीं कर पाया। तूने एक
ही झटके में बाहुबली कद्दावर मुल्कों को आसमान दिखा दिया। सबको घर के अंदर बैठा
दिया। दिनभर बंदर की तरह उत्पात मचाने वाले भी चारदीवारी के भीतर जिगर थामे चुपचाप
बैठे हैं। एक घंटे भी चैन से नहीं बैठने वाले भी महीनों से आराम से बैठे हुए हैं।
तेरा इतना खौफ है कि जो किसी से भी नहीं डरते थे,वो म्याऊं बने बैठे
हैं। चोर,उचक्के,गुंडे व मवाली भी सहमे
हुए हैं। बाहर निकलने से कतराते हैं। जेब कतरे भी तुझे खतरा समझकर खुद की जेबों
में ही हाथ दिए टहलते हैं। उन्हें पता है कि लोगों की जरखेज जेबे तो खूंटी
या हैंगर के टकी हुई हैं। बाहर इंसान तो क्या, उसकी
छाया भी दिखाई नहीं पड़ती है। माया-मोह में फंसे हुए भी अपनी काया पर तेरा साया
नहीं पड़ जाए, इसलिए सोच-विचार में डूबे हुए हैं। जो
कभी चिंतित नहीं हुए,वो भी चिंता के दरिया में गोते लगा रहे
हैं।
जिसे देखों,वहीं
एक-दूसरे को समझा रहा है और तेरे से बचने के कारगर उपाय बता रहा हैं। ताज्जुब की
बात है कि नासमझ भी समझ रहा है और बचाव के तमाम उपाय अपना रहा है। अक्सर हाथ
मिलाकर अभिवादन करने वाले हाथ जोड़कर आदर सत्कार कर रहे हैं। जिसने कभी धूप से
बचने के लिए भी मुंह पर रूमाल तक नहीं बांधी , वह भी मास्क
लगाए रहता है। जो बाथरूम जाने के बाद सादा पानी से भी हाथ नहीं धोते थे। वे भी बीस
सेकंड से भी ज्यादा समय तक साबुन लगाकर हाथ धो रहे हैं। सिर्फ धोते ही नहीं उसे
निचोड़ते भी हैं. बहुतायत में मच्छर होने के बावजूद भी उन्हें मारने की दवा का कभी
स्प्रे नहीं किया। पर तेरे विषाणु के कारण तमाम तरीके के रसायनों का जर्रे जर्रे
में छिडकाव कर रहे हैं।
तेरे डर के
मारे अपने भी अपनों से दूरी बनाकर रह रहे हैं। लापरवाह भी पूरी एहतियात बरत रहे हैं। जो अपने बाप
की मृत्यु पर भी सिर नहीं मुंडवाए थे,वो तेरे कारण लगे
लॉकडाउन में अपना सिर मुंडवा रहे हैं। जिसने कभी इधर का तिनका उधर नहीं किया,वो भी घर के सारे कामकाज कर रहे हैं। जिन्हें यह नहीं पता था कि चाय में
पहले दूध पड़ता है या पानी,वे रसोई संभाल रहे हैं। दफ्तर में
अपने अधीनस्थों पर हुक्म चलाने वाले चुपचाप झाड़ू पोंछा लगा रहे हैं। हमेशा हवा
में उड़ान भरने घरेलू टाइप के हलवाई बने हुए हैं और बेचारे पेशेवर हलवाई हाथ पर हाथ
धरे मायूस बैठे हैं।
कोरोना तेरे
भय से कई तो इतने भयभीत हो चुके हैं कि अपने सगे बाप की साधारण मौत पर उसे कंधा
देना तो दूर उसके अंतिम संस्कार में सम्मिलित नहीं हो रही हैं। जो मृतक के घर जाकर
श्रद्धांजलि अर्पित करने में सदैव अग्रणी रहते थे,वो पड़ोसी के स्वर्ग
सिधारने पर भी उनके घर पर सांत्वना देने भी नहीं पधार रहे हैं। दिन में दस बार
हाल-चाल पूछने वाले भी कहीं नहीं जा रहे हैं। उन्हें भी डर है कि हाल-चाल पूछने के
चक्कर में कहीं मैं चपेट में नहीं आ जाऊं। ताश पत्ती खेलकर अपना टाइम पास करने
वाले दिनभर मोबाइल में टाइम देखकर ही टाइम पास कर रहे हैं। मगर खेलने से डर रहे
हैं। उन्हें पता है कि खेलने गए तो सेहत का खेल बिगड़ सकता है। इन दिनों सेहत
बिगड़ गई और वह एंबुलेंस में बैठकर हॉस्पिटल चला गया,तो उसको कोरोना दृष्टि से देखते हैं।
कल तक डेंगू,मलेरिया, चिकनगुनिया के मरीज की खबर पड़ोसी को भी नहीं लगती थी। कोरोना तेरे
पॉजिटिव के मरीज की खबर पूरे शहर को मालूम हो जाती है कि फला कॉलोनी में एक और
पॉजिटिव मिल गया है। आजकल पॉजिटिव सुनकर इतना डर लगता
है कि सब सुन्न हो जाते हैं। अपने इलाके का पॉजिटिव से नेगेटिव आ जाता है न तब
कहीं जाकर राहत की सांस लेते हैं। उससे पहले तो सांसे फूली ही रहती हैं।
कोरोना तूने
कईयों को मालामाल तो कईयों को कंगाल कर दिया हैं। सदैव गुलजार रहने वाले बाजार बंद
और कालाबाजार शुरू करवा दिया। शटर के नीचे से शराब बिकती देखी थी।
मगर तूने तो गुटका,पानमसाला,तंबाकू,बीड़ी-सिगरेट भी शटर के नीचे से खरीदनेे पर मजबूर कर दिया है।
कल तक
नशेड़ियों का जो नशा दस रुपए में मिलता था। आज वह सौ रुपए में मिल रहा है।
फिर भी
नशेड़ी खरीदे बगैर नहीं रह रहे हैं। माना कि तेरे कारण अपराध
का ग्राफ घटा है और जल व वायु शुद्ध हुई है। लेकिन तेरे से लड़ने के लिए,समूचे विश्व में न जाने कितने योद्धा युद्ध लड़ रहे हैं। फिर भी तू पस्त
नहीं हो रहा है। आखिर तू चाहता क्या है? तेरी मंशा क्या
है? अब बहुत हो गया है। रहम कर। अपनी दृष्टि इस सृष्टि
पर मत पटक। किसी अन्य ग्रह में जाकर अपनी भड़ास निकाल ले।
2 comments:
सुन्दर व्यंग
सर जी!हृदय से आभार������।
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