वह बड़ा आदमी है। इतना बड़ा है कि बड़े-बड़े भी उसके चरण
स्पर्श करते हैं। अपने आपको उसके चरणों की धूल बताते हैं। मगर मेरा मानना है कि जो
स्वयं को उसके चरणों की धूल बताते हैं,वे या तो स्वयं मूर्ख हैं या दूसरों को मूर्ख बनाते हैं। क्योंकि वे स्वयं
की शिनाख्त जिस आदमी के चरणों की धूल होने में करते हैं,उसके चरणों में तो धूल कभी होती
ही नहीं है। अगर कभी भूल से जरा धूल लग भी जाए, तो
पोंछने- चाटने वाले धूल का एक कण भी नहीं छोड़ते। फिर वे चरणों की धूल कैसे हुए? यह समझ से परे है और परे ही रहेगा। वैसे ऐसी घटिया बातों को धूल में ओटकर
भूल जाना ही अच्छा।
मगर लोग कहते हैं कि उस आदमी, जिसके पैरों में धूल बताई गई थी, के आदेश को बड़े से
बड़े लोग सिर- आँखों पर रखने से इंकार नहीं करते। क्यों
करेगा? दरअसल,उसके आदेश के साथ गांधीजी
जो चस्पा होते हैं। गांधीजी किसे बुरे लगते हैं। सबको अच्छे लगते हैं। और जो चीज
अच्छी लगती है,लोग सिर-आँखों पर
ही नहीं, माथे,मगज,जेब से लेकर बैंक अकाउंट तक में भी रखने से कभी इंकार नहीं करते।
उस बड़े आदमी का नाम इतना बड़ा नहीं है कि उसके नाम से काम
हो जाएं। हाँ,मगर जब उसके नाम के पिच्छू गांधीजी का सरनेम लग जाता है तो फिर उसका कोई
काम नहीं रुकता। वह अपने काम निकालने के लिए सामने वाले को गांधीजी के दर्शन करवाता है। सामने वाला भी दर्शन करते ही सत्य और अहिंसा टाइप की
चीजें ऊपर वाली दराज से निकालकर, उन्हें सैनिटाइजर करके नीचे
वाली दराज में खिसका देता है। और फिर ऊपर वाली दराज में गांधीजी को रख लेता है।
उसके सत्य और अहिंसा तब तक नीचे वाली दराज में नहीं जाते,जब
तक की गांधीजी ऊपर वाली दराज में नहीं आ जाते।
दरअसल,उस बड़े
आदमी का गांधीजी में बहुत विश्वास है। बल्कि यूं कह
लीजिए कि उसके पास गांधीजी का इतना अधिक टर्नओवर है कि
लोग अब उसमें विश्वास करने लगे हैं। लोगों ने उसका टर्नओवर देख उसकेे प्रति अपनी
हिकारत को यू-टर्न करवा दिया है। वह गांधीजी का छोटा नहीं बल्कि बड़ा अनुयायी है। बड़ा इस मायने
में है कि वह छोटे काम में हाथ डालता ही नहीं। बस सामने वाले के मुँह पर
बड़ेे-बड़े गांधीजी फेंकता है और बड़े काम निकलवा लेता है। छोटे काम उसे अपनी और
गांधीजी, दोनों की तौहीन लगते
हैं। वह गांधी के दर्शन और गांधी के प्रदर्शन दोनों में गहन विश्वास रखता है।
दरअसल,पहले वह बहुत छोटा आदमी था।
मगर गांधीछाप हरी पत्ती के हेर-फेर में वह इतना बड़ा हो गया कि अब पहले से भी और
छोटा,और बोना हो गया है।
उसने आज तक गांधीजी को कभी पढ़ा नहीं है, बस देखा है। उसके लिए इतना ही पर्याप्त है।
गांधीजी को पढ़कर करता भी क्या? ऐसा उसका जमीर अक्सर उससे कहता रहता है। हाँ, लेकिन जिस शिद्दत से उसने
गांधीजी को देखा और फिर उनका सदुपयोग किया है, वैसा गांधीजी स्वयं का नहीं कर पाए होंगे।
गांधीजी अक्सर उसके सपने में आते हैं, बल्कि वह तो जागते
हुए भी गांधीजी के ही सपने देखता है। उसने खुद ही नहीं
बल्कि अपने नाते-रिश्तेदारों को भी गांधीजी के ही सपने देखने की लत-सी लगा दी है।
रिश्तेदार भी अब सरकारी टेंडर का फॉर्म डालने से पहले गांधीजी का स्मरण करते हैं
और फिर टेंडर का चयन करने वाले अधिकारी को गांधीजी का स्मरण करवा डालते हैं। अब गांधीजी का कहा कौन टाल सकता है भला! इसलिए
गांधीजी का नया,गच्च-भक्त बना वह अधिकारी भी गांधीजी की बात नहीं टालता और बड़ा
आदमी मुस्करा देता।
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