26 Jun 2022

अनुभवी को प्राथमिकता

मुझे यह कहकर साक्षात्‍कार से बाहर की राह दिखा दी कि न तो अनुभव है और न ही अनुभव प्रमाण पत्र है। हम अनुभवी को ही प्राथमिकता देते हैं। दुख बाहर किए जाने का नहीं है। बाहर तो कई बार मुझे यार-दोस्‍तों ने भी कर दिया हैं। कई बार कुपित होकर पिताजी ने बाहर कर दिया है । बाहर करना था तो कह देते,तुम्‍हारे पास अप्रोच नहीं है। तुम्‍हारे पास कोई सोर्स नहीं है। तुम्‍हारे पास फलाना नहीं है। तुम्‍हारे पास डिमका नहीं है। ये क्‍या बात हुई कि तुम्‍हारे पास अनुभव नहीं हैअरे,अनुभव तो मि‍त्रोंमित्रों के पास भी नहीं था। फिर भी हवा में उड़े की नहीं। और ऐसा उड़े कि परिंदे भी जिंदगी भर में जितना नहीं उड़े कि वे पाँच साल में उतने उड़ लिए।

अनुभव को प्रमाण कि क्‍या जरूरत हैअनुभव तो मेरे अंदर कूट-कूट के भरा है। यकीन न हो तो कूट-कूट कर देख लो। सैम्‍पल लेकर देख लो भाईरक्‍त का,मांस का,मज्‍जा का। बोटी-बोटी से अनुभव टपेगा। अंग-अंग से फड़क उठेगा। इसके बाद भी अगर प्रमाण लेना ही है तो एक कागज के टुकड़े पर लिखे ढाई आखर के प्रमाण से क्‍या लेनाइस तरह के प्रमाण के प्रमाण पत्र तो रद्दी के भाव में बहुत मिल जाते हैं। लेना ही है तो कुछ दिन अवसर देकर लीजिए। फिर मेरा प्रायोगिक अनुभव देखकर अपने आप आभास हो जाएंगा।https://vyangyalekh.blogspot.com/

जब पैदा हुआ,बड़ा हुआ,अपने आस-पास देखा तो अनुभव मिला। क्‍या मालिया कर्जे से डूबता छोड़ अनुभव लेकर पैदा हुआ थाउससे सीखा कि ऋण लेकर घी पीना चाहिए। फिर देश-दुनिया देखी। सीखा कि पाँव पूजाने का अनुभव। जरूरत पड़ी तो पाँव उखाड़ने का अनुभव भी पाया। धवल धारियों से सीखा कि वक्‍त जरूरत पड़ने पर किस तरह पलटी मारी जाती है। पलटी मारकर किस तरह बाजी जीती जाती है। गधे को बाप बनाने का हुनर तो अब पुराना हो गया। आजकल तो मैं इतना सीख गया हूँ कि शेर को बच्‍चा बना सकता हूँ। हाथी को पहाड़ के नीचे ला सकता हूँ। ऊँट को पहाड़ पर ले जा सकता हूँ। उखड़े को गाड़ सकता हूँ। गाड़े को उखाड़ सकता हूँ। इतना सर्वतोमुखी सम्‍पन्‍नता के बाद भी बाहर कर देना कैसे हजम होगीबताओं भलाआज के हालात में और देश में जीने के लिए ऐसे अनुभवों की दरकार है या नहींएक बार मौका देकर तो देखे,दम नहीं,खम देखें,पाँच सितारा बुंलदी न देखा दो तो सच्‍चा भारतीय नहीं। आप तो धार देखें,चाहे तो उधार देखें,और एक बार सेवा का मौका दे।vyangyalekh

मुझे पच्‍चीस तीस प्रतिशत अनुभव तो पुश्‍तैनी विरासत से मिला है। पच्‍चीस प्रतिशत संघर्ष करके अर्जित किया है और चौदह प्रतिशत साक्षात्‍कार देते रहने से हो गया है। कुलयोग किया जाए तो चौंसठ प्रतिशत होता है। मुझे मालूम है,आज के युग में चौंसठ प्रतिशत की कोई वैल्‍यू नहीं। इसलिए शेष छत्‍तीस प्रतिशत के लिए भी प्रयासरत हूँ। वैसे देखा जाए तो छत्‍तीस प्रतिशत वाले नब्‍बे,पचानवे प्रतिशत वालों पर हुक्‍म चलाते हैं। साथ में वे ही अनुभव के आधार पर देश चला रहे हैं। और नब्‍बे,पचानवे वाले उनकी हाँ में हाँ और ना में ना मिलाकर भागीदारी निभा रहे हैं। अनुभव के आधार पर तो झोलाछाप डॉक्‍टर क्‍लीनिक चला रहे हैं। बिना लाइसेंस धारी  मोटरसाईकल से लेकर ट्रक तक दौड़ा रहे हैं और ट्रैफिक पुलिस वाले उनका बाल भी बांका नहीं कर पाते। एक मैं हूँ,जिसे चौंसठ प्रतिशत अनुभवी होते हुए भी बाहर की राह दिखा दी जाती है। बताओंक्‍या यह सही है?

जब बाहर निकला तो सोचा,मतलब अनुभव पाया कि अब मैं धक्‍के नहीं खाऊंगा। धक्‍के देकर आगे बढ़ना होगा। जिंदगी इतनी सरल नहीं बाबू कि सारी जिंदगी धक्‍के खाते रहो। देखना अब मेरे अनुभव का कमाल। ऐसा धमाल मचाऊंगा कि देखकर सब ढंग रह जाएंगे। जिन्‍होंने बाहर की राह दिखाई है न वे भी देखकर दांतों तले उँगली चबाते रह जाएंगे। vyangyalekh

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गड़े मुर्दें उखाड़ने वाला गुड्डू

गुड्डू गड़े मुर्दे उखाड़ने में पीएचडी है। आए दिन किसी ना किसी के उखाड़ता रहता है और सुर्खियों में बना रहता है। उसे सुर्ख़ियों से उतना ही प्यार है। जितना हीर-रांझा और लैला-मजनू को था। सुर्खियों में बने रहने के लिए सौ साल पुरांने को भी नहीं छोड़ता है। उसे भी उखाड़कर उछाल देता है। पुराने से पुराने का उछाल उसी तरह से उछलता है। जिस तरह से शेयर बाजार का सेंसेक्स उछलता है। क्या है कि नए गड़े मुर्दे उखाड़ने पर उतनी टीआरपी नहीं मिलती है। जितनी पुराने को उखाड़ने पर मिलती है। vyangyalekh


अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए,गुड्डू नित्य नयों के बजाय पुराने से पुराने गड़े मुर्दे खोजता रहता हैं। जैसे ही हाथ लगा फेसबुक पर लाइव आकर उछालने लग जाता है। लाइव के दौरान बीच-बीच में शेयर करने की अपील अवश्य करता रहता है। ताकि उखाड़े गए मुर्दे से ज्यादा से ज्यादा लोग वाकिफ हो सके और अच्छी खासी टीआरपी मिलती रहे। क्या है कि फेसबुक लाइव की जितनी ज्यादा शेयर होती है। उतनी ही ज्यादा कमेंट्स बॉक्स में डिबेट चल रही होती है। मगर यहाँ पर टीवी की तरह डिबेट नहीं होती है। एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर डिबेट पूरी कर ली। यहाँ पर तो बहुत तीखी नोकझोंक होती है। विचारों की तलवारे तन जाती हैं। ज्ञान बांटने की होड़ लग जाती है। अज्ञानी भी ज्ञान बांटकर वाहवाही लूट लेता है।अमर्यादित भाषा पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है। गाली-गलौज देने की पूरी छूट होती है। जरूरी नहीं सवाल का जवाब ही मिले। जवाब के बदले में गाली भी मिल सकती है।vyangyalekh

गुड्डू गड़े मुर्दों पर इतना शोध करता रहता है कि उसके व्हाट्सएप पर भी किसी ना किसी उखाड़े मुर्दे के छायाचित्र की ही डीपी लगी हुई होती है। उसका लक्ष्य हैं,गड़े मुर्दे उखाड़ने का वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम करना। इसके लिए चाहे अपनों के ही क्यूँ नहीं उखाड़ने पड़े। उन्हें भी जड़ से उखाड़कर,उन्हें पछाड़ देगा,जो इस प्रतिस्पर्धा में है। मगर अभी तो दूसरों के ही बहुत से केस पेंडिंग पड़े हैं। उनको उखाड़ने के लिए समय नहीं है। क्या है कि गुड्डू ऐरे-गैरे,नत्थू-खैरे गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ता है। उनको उखाड़ता है,जो चर्चा का विषय बने। जिनके जरिए खुद बिना प्रचारित ही चर्चित हो जाए। vyangyalekh

आपको यकीन नहीं होगा,उसकी फेसबुक वॉल एक से बढ़कर एक गड़े मुर्दों की पोस्ट से भरी पड़ी है। जिन्हें देखकर कोई चकित रह जाता है तो कोई कुपित हो जाता है। मगर यूट्यूब पर तो ऐसे-ऐसे मुर्दे अपलोड किए हुई है। जिन्हें देखकर हर कोई अवाक रह जाता है। इंस्टाग्राम पर तो ऐसी-ऐसी मुँह बोलती फोटो अपलोड करता है। जिन्हें देखकर आँखें फटी की फटी रह जाती है। उसके टि्वटर पर लिखे को पढ़करवह व्यक्ति अवश्य सतर्क हो जाता है। जिसको हमेशा यह भय रहता है कि कहीं कभी अपने गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ दे।vyangyalekh

यह कोई भी नहीं चाहता है कि कोई उनके गडे़ मुर्दे उखाड़े। क्योंकि उखड़ने के बाद फिर से नया गड्ढा खोदकर दबाना पूर्व की भाँति जितना आसान नहीं है। गुपचुप में गड्ढा खोदकर दबा दिया और किसी को कानों कान खबर ही नहीं लगी। उखड़ने के तत्पश्चात दबाना तो दूर,उखड़े हुए को सँभालना ही बहुत मुश्किल हो जाता है। क्योंकि उस समय उनके सामाजिक वातावरण में लोक निंदा की हवा घुली हुई होती। जिसमें श्वास लेना भी दुश्वार होता है। ऐसी स्थिति अपने आप को संभाले या फिर उखाड़े गए को संभाले। vyangyalekh

दरअसल में गड़े मुर्दे उखाड़ना भी आसान नहीं है। बहुत ही जोखिमपूर्ण है। थोड़ी सी लापरवाही के कारण वाहवाही की जगह हाय-हाय में परिवर्तन होते देर नहीं लगती है। सावधानीपूर्वक होकर उखाड़ना होता है। ताकि परिजनों को बुरा नहीं लगे। फिर भी कई बार उन्हें इतना बुरा लगता है कि वे खुद उखड़ जाते हैं। उस समय उन्हें सँभालना बहुत मुश्किल हो जाता है। कई बार तो कहासुनी होकर रह जाती है और कई बार मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं। लेकिन गुड्डू तो गड़े मुर्दे उखाड़ने में पीएचडी है न इसलिए हर बार बच निकलता है।vyangyalekh

12 Jun 2022

एक वक्‍ता का वक्‍तव्‍य

एक कार्यक्रम में एक वक्ता ने सभागार में उपस्थित लोगों को कुछ इस तरह से संबोधित किया। आज के भव्य कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महोदय तथा विशिष्ट अतिथिगण। पितातुल्य बुजुर्गों,माताएंबहनों और भाइयों तथा प्यारे बच्चों। मैं यहाँ कोई भाषण देने नहीं आया हूँ। मुझे आता भी नहीं है। मैं ज्यादा तो कुछ नहीं कहूंगा। बस इतना ही कहूंगा...। 

मेरे समझ में नहीं आया कि बुजुर्ग तो पितातुल्य और माताएं मातातुल्य नहीं। बहिने सिर्फ बहिने ही। उनके लिए तुल्य जैसा कोई शब्द नहीं। भाइयों के लिए भाइयों ठीक-ठाक था। लेकिन वहाँ उपस्थित सभी बच्चे प्यारे तो नहीं थे। कुछेक शरारती भी थे,जो उसको दिख भी रहे थे। फिर भी उनको संबोधित नहीं किया। सिर्फ प्यारे बच्चे ही बोला। शुक्र है कि शरारती बच्चों ने ध्यानपूर्वक नहीं सुना। अगर सुन लेते तो तालियां बजाकर ही बता देते कि हम किस टाइप के शरारती हैं। 

मैं यहाँ भाषण देने नहीं आया हूँ। अगर कोई उस समय उसे पूछ लेता कि मंच पर भाषण देने नहीं आए,तो किस लिए आए हो। राशन देने के लिए। क्या जवाब देता।  यह तो गनीमत है कि किसी ने पूछा नहीं। या फिर जिसके लिए आया था। वो बताने चाहिए था। अमुक काम के लिए आया हूँ। उसने कहा कि मुझे भाषण देना भी नहीं आता है। फिर लंबा-चौड़ा भाषण कैसे पेल दिया। शुक्र है कि जैसे-तैसे श्रोतागणों ने झेल लिया। अन्यथा वो भी तालियां बजाकर बता देते। अगर किसी भी वक्ता के वक्तव्य पर आवश्यकता से ज्यादा तालियां बजने लगती हैं,तो उसको समझ जाना चाहिए कि श्रोता सुनना नहीं चाहते हैं। लेकिन फिर भी वक्ता बकता रहता है।

आगे उसने कहा कि ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा। जबकि कहा बहुत ही ज्यादा। जब ज्यादा ही कहना था,तो बस इतना ही कहूंगा क्यों कहा। यूँ कह सकता था कि कम नहीं ज्यादा ही कहूंगा। उसके कहने पर कौन सा टैक्स लग रहा था या जीएसटी लग रही थी। ज्यादा कहने से क्या श्रोता उठकर चल देते या सो जाते। वो तो जहां पर थे,वहीं पर रहते। ज्यादा कहने पर ज्यादा से ज्यादा एकाध उठकर चल देता। एकाध के चले जाने से पांडाल खाली नहीं हो जाता। सृष्टि का नियम है कि एक जाता है तो दूसरा आता भी है।

जब उसने कहा कि यह मेरे व्यक्तिगत विचार है। आपसे साझा कर रहा हूँ। अगर उसके विचार व्यक्तिगत ही थे,तो फिर सार्वजनिक क्यों किया। व्यक्तिगत ही रखता। सीधे-सीधे यूं ही कह देता कि यह मेरे सार्वजनिक विचार है। जिन्हें आपके सम्मुख रख रहा हूँ। अच्छे लगे तो प्रचार-प्रसार करना और बुरे लगे तो मुझे सूचित करना। 

उसने विचार देने के बाद में विचार वापस लिया। कहा कि मैं अपने विचार वापस लेता हूँ। जबकि उसको पता होना चाहिए विचार कमान से निकले तीर की तरह होता है,जो एक बार निकलने के बाद कभी वापस नहीं होता है। उसने ध्यान से देखा नहीं,वापस मांगने पर एक भी श्रोता ने वापस नहीं किया। सबने अपनी पॉकेट में रख लिया था।

उसने अपना उद्बोधन कुछ इस तरह से समापन किया। समय को देखते हुए बस यहीं पर अपनी वाणी को विराम देता हूँ। आपने मुझे बोलने का अवसर दिया और ध्यानपूर्वक सुनने के लिए दिल से धन्यवाद। अगर उसने समय को देखा ही होता तो दो वक्ताओं के समय को नहीं खाता। उसे किसी ने भी बोलने का अवसर नहीं दिया। बल्कि खुद ने लिया था। खुशामद के जरिए। ध्यानपूर्वक किसी ने भी नहीं सुना। ज्ञान की बात कहता तो अवश्य सुनते। बेमतलब की बातें कह रहा था।

 

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भक्त की तलाश

भजनी ने चेले-चाटी परखकर देख लिए। चमचे भी आज़मा लिए। अब भक्त रखना चाहता है। उसका कहना है कि चेले और चमचे में भक्त ही अग्रगामी है। बलशाली है। आज्ञाकारी है। परोपकारी है। आभारी है। झूठ को सच और सच को झूठ मानने वाला प्राणी है। और इन दिनों चेलों और चमचों से ज्यादा सुर्खियाँ बटोर रहे हैं।

लेकिन भजनी को भक्त ढूँढे नहीं मिल रहा। जबकि उसको भक्त या उसके जैसे लोगों की सख्त जरूरत है। लग रहा है कि अगर भजनी को वक्त रहते  भक्त नहीं मिला,तो उसकी जमानत ज़ब्त हो जाएगी। ज़ब्त हो गई,तो उसका रक्तचाप बढ़ जाएगा। बढ़ गया,तो उसे आग बबूला होने से कोई रोक नहीं सकता। और उस दौरान वह कब सातवें आसमान पर पहुँच जाता हैउसे पता ही नहीं रहता है। पहुँचने के बाद आपा खो बैठता है। बैठने के बाद उसके मुख से न जाने क्या-क्या निकल जाता है। जिन्हें सुनकर लोग भड़क जाते हैं। भीड़-भड़क्का हो जाता है। हाहाकार से गगन  गुंजायमान हो उठता है। कई बार तो ब्रेकिंग न्यूज़ तक बन जाती है। जिसे देखकर लोग सड़क पर उतर आते हैं। माफी माँगने पर विवश करते हैं। और कई बार माँगनी भी पड़ जाती हैं।

यह सब घटित नहीं हो इसीलिए भजनी भक्त की तलाश में है। उसका मानना है कि ऐसे वक्त पर भक्त ही काम आता है। वही है,जो कि घटना घटित होने से पहले ही बता देता है। उसने बताया कि भक्त इतना सशक्त होता है कि अपना रक्त बहाने से भी नहीं घबराता है। जबकि चेले और चमचे रक्तदान करने से ही हिचकिचाते हैं। आजकल के चेले तो केले की तरह हो गई हैं,जो कि पकने से पहले ही बिकने के लिए बाजार में आ जाते हैं। चमचे फटे-पुराने गमछे की तरह हो गए हैं,जो कि किसी कामकाज के नहीं हैं । 

भजनी का कहना है कि मुझे ऐसा भक्त चाहिए,जिसके नेता पर कीचड़ उछालने पर,भक्त दलदल में फंसा हुआ भी उसके लिए मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। उसकी अनुपस्थिति में भी उसकी जय-जयकार करता रहता है। जिंदाबाद के नारे लगाकर जिंदा रखे रखता है। अपने नेता को नेता नहीं,देवता समझता है। विकास पुरुष कहकर संबोधित करता है। अपनी बात पर अडिग रहता है। अकड़ने पर अड़ियल बनते देर नहीं करता है। विरोधियों के सामने सीना तानकर डटे रहता है। उनके सवाल का जवाब न देकर,उन्हीं से सवाल करने में माहिर होता है। विपत्ति में भी आपत्ति नहीं करता है। सदैव प्रसन्न रहता है।

भजनी का तो यह तक कहना है कि जिस दिन मुझे इस तरह का भक्त मिल गया न जगत से लड़ने की जरूरत नहीं। फिर जगत से भिड़ने के लिए भक्त ही काफी है। वही कार्यों में खामियाँ निकालने वालों को ख़ामोश करेगा। आरोप-प्रत्यारोप लगाने वालों को सबक सिखाएगा। सलाखों के पीछे धकेलेगा। धरना-प्रदर्शन करेगा। पुतला फूंकेगा। सोशल मीडिया पर भड़ास निकालेगा। अखबार की हेडलाइन और टीवी की ब्रेकिंग न्यूज़ बनने पर बौखलाएगा।

लेकिन भजनी को किसी ने बताया है कि भक्त मिलता नहीं है,बल्कि बनता है और वह भी बनाने से नहीं,अपने आप बन लेता है। जब भजनी ने बताने वाले से पूछा कि अपने आप कैसे बनता हैतो बताने वाले ने बताया कि आँखों में धूल झोंक करजनता को सपने दिखा। मन की बात कर,मगर अपने मन की मत बता। अपने आपको फकीर कह,पर रहे राजा की तरह। लोक लुभावने वायदे कर,किंतु पूरे मत कर। जहां कहीं भी जाए,वहीं बाहें फैलाकर लोगों को गले लगा। और इतनी झूठ बोल कि लोग तुझे एक नंबर का झूठा कहने लग जाए। फिर देखिए,व्यक्ति भक्त नहीं,अंधभक्त बन जाएगा। एक बार जो अंधभक्त बन गया न फिर वह आँख मूंदकर विश्वास नहीं करें तो कहना। तू जो कहेगा और जो करेगा,उसे ही सही कहेगा। तेरे को कोई गलत साबित करने की कोशिश भी करेगा तो वह कतई सहन नहीं करेगा। विरोध करेगा। उसने भजनी को जो भी बातें बताई है नउन पर मंथन जारी है।

मोहनलाल मौर्य