19 Jul 2022

मुँह पर ताला,जबान का बोलबाला

मनुष्य नामक प्राणी के मुख में जीवनयापन करने वाली जबान ही है,जो कि व्यक्ति के व्यक्तित्व से परिचित करवाती है। उसकी उपलब्धियां और खामियां बताती है। उसके चरित्र का सर्टिफिकेट दिखाती है। मगर कई जबान अपने ही मुख पर मुक्की खाने के लिए कभी भी और कहीं पर भी फिसल जाती है। न समय देखती हैं और न माहौल। बस इन्हें तो लात घूसे और मुक्के खाने से मतलब रहता है। यह सुनहरा अवसर जहाँ कहीं पर भी मिल जाए वहीं पर अग्रणी रहती हैं। अस्पताल में भर्ती होने लायक मार मिल जाए तो अपने आप को इतनी खुशनसीब समझती हैं,जैसे सोने पे सुहागा मिल गया हो। 


कई तो ऐसी है कि एक बार फिसलने के बाद संभलने की ही नहीं सोचती है। फिसलती ही चली जाती है। जब तक अपने मानव मालिक की हड्डी पसली एक नहीं हो जाती उससे पहले ब्रेक नहीं लगाती हैं। यह अपने प्राणी के प्राणों की भी परवाह नहीं करती हैं। अनाप-शनाप बोलती हुई वहाँ तक पहुँच जाती हैं। जिसकी सपने में भी कभी कल्पना नहीं की होती है। यह कई दिनों का कोटा एक ही दिन में पूरा करने के लक्ष्य में रहती हैं। इसलिए यह ऐसी जगह पर कि फिसलती हैं,जहाँ पर भीड़भाड़ होती है। जब इनसे भीड़ भिड़ने लगती हैतब यह अपने सशक्त हथियार अपशब्दों का उपयोग करके अपना लक्ष्य प्राप्त कर ही लेती हैं।

कई जबान कतरनी की तरह कितनी तेज चलती है कि रिश्ता नाम के धागे तक को काट देती है। जबकि भली-भांति जानती हैं कि एक बार धागा कट गया तो फिर वह गाँठ के माध्यम से ही जुड़ता है। गाँठ पड़ने के बाद में धागे में लगी गाँठ को कितना ही छिपा लो। वह दिखाई देती ही है।मगर इनके लिए धागा कटे या कटने के बाद गाँठ पड़े या फिर गाँठ खुलेऐसी जबाने तब तक अपनी स्पीड कम नहीं करती हैंजब तक रिश्ता नाम का धागा खुद टूटने पर मजबूर नहीं हो जाए।  

कई जबाने ऐसी भी हैं जो कि मुँह में होने के बावजूद भी दिखाई नहीं देती हैं। अदृश्य रहती हैं। मगर इन्हें पहचाना बहुत ही आसान है। जहाँ कहीं पर भी लोग यह कहते हुए दिख जाएमुँह में जबान नहीं है क्याइसके बाद में भी प्रत्युत्तर नहीं मिले। निरुत्तर मिले तो समझ लीजिए वही अदृश्य जबान है। परंतु ऐसी जबाने कतिपय ही बची हुई है। अधुनातन में तो अपने सगे बाप से जबान लड़ाने वाली जबानों का बोलबाला हैं। एक जमाना था बाप के सामने थोड़ी सी भी जबान बाहर निकल जाती थी तो बाप उसकी जबान खींच लेता था। मगर आज जबान संभाल कर बात कर कहने वाले या तो चुप्पी साध लेते हैं या फिर उस पर ऐसी लगाम लगाते हैं कि उसकी जबान को लकवा ही मार जाता है।

12 Jul 2022

हाइट ने छीनी बाइट


मेरी हाइट छ फिट छ इंच है। न एक इंच कम और न ज्यादा है। चाहे इंची टेप से नापकर देख लीजिए। रत्ती भर भी फर्क नहीं मिलेगा। आप सोच रहे होंगे,मैं नाप-तौलकर क्यों बता रहा हूं। इसलिए बता रहा हूं कि मैं अपनी हाइट से परेशान हूं। मेरा जीना दूभर कर रखा है। उसकी वजह से लोग मुझे लंबू कहते हैं।

कई बार तो घरवाली भी मखौल उड़ाने लग जाती है। कहती है कि तुम में और विद्युत खंभे में ज्यादा फर्क नहीं है। तुम चलते-फिरते हो और वह एक जगह खड़ा रहता है। अगर तुम एक फुट छोटे होते,तो अच्छा रहता। तुम्हारी सूरत देखने के लिए दूरबीन की जरूरत न पड़ती।

अब मैं एक फुट कम कैसे होऊं। मार्केट में हाइट बढ़ाने के कैप्सूल तो किस्म-किस्म के मौजूद हैं। मगर हाइट घटाने वाला एक भी नहीं है। अगर होता तो मैं अवश्य लेता। साइड इफेक्ट की भी परवाह नहीं करता। भविष्य में हाइट कम करने का कोई कैप्सूल आएगा,तो मैं लेकर ही रहूंगा। उसकी कीमत चाहे जो भी हो।

घर में जो भी सामान ऊंचाई पर रखा है न,उसे उतारने के लिए सब मुझे ही बुलाते हैं। नहीं जाता हूं,तो कहते हैं कि हम तेरे जितने कद्दावर होते,तो आसमान में छेद कर देते। इक तू है कि सामान नीचे उतारने के लिए नखरे करता है। तुझे इसलिए कहते हैं,तू बगैर एड़ी ऊंची किए कोई भी सामान आसानी से उतार देता है। भगवान ने तुझे यह हाइट दी है,लोगों की सहायता के लिए दी है। इस पर इतना गर्व मत किया कर। मैं कैसे बताऊं कि मुझे अपनी हाइट पर गर्व नहीं,बल्कि शर्मिंदगी है। 

जिनके दरवाजों की ऊंचाई मेरी हाइट से कम है,उनमें प्रवेश करते समय अक्सर मेरा सिर टकरा जाता है। एकाध बार तो चोट भी आ चुकी है।  उस समय लोग यही कहते हैं कि दिखता नहीं है क्या? झुक नहीं सकता क्या? कईयों के दरवाजे तो इतने छोटे हैं कि झुकने के बावजूद भी बच नहीं पाता हूं। चोट सीधी ललाट पर लगती है। सच पूछिए तो दरवाजों से टकराना आए दिन की घटना हो गई है। अब कोई इसे गंभीरता से नहीं लेता है। कोई लेगा भी क्यों? उनका माथा थोड़ी फूटता हैं। मेरा फूटता है। मुझे लेना चाहिए। मैं गंभीरता से लेकर करूं क्या? मेरी हाइट की वजह से तो लोग अपने घरों के दरवाजे बदलने से रहे। 

मैं जब भी बस या रेल में यात्रा करता हूं,तो मेरी हाइट देखकर,वे यात्री तो मुझे कह ही देते हैं,जिनके हाथ एड़ी ऊंची करने के बावजूद भी वहां तक नहीं पहुंच पाते हैं,जहां पर सामान रखना होता है या रखे हुए को उतारना होता है। भाई साहब! हमारा ये बैग ऊपर रख दीजिए। भैया वो सूटकेस नीचे उतार दीजिए। जब मैं नहीं रखता हूं और नहीं उतारता हूं न,तब वे यात्री मन ही मन में बड़बड़ाते हुए कहते हैं कि भगवान ने हमसे थोड़ी सी ज्यादा हाइट क्या दे दी। अपने आप को न जाने  क्‍या समझ रहा है।  

एक बार एक पत्रकार ने मेरी बाइट लेनी चाही,पर हाइट की वजह से ले नहीं पाया। बेचारा इतना छोटा था कि दोनों हाथ ऊपर करने के बावजूद भी उसका कैमरा मेरे चेहरे तक नहीं पहुंच पाया। उस समय हम दोनों को अपनी-अपनी हाइट पर बहुत गुस्सा आया। उसे कम गुस्सा आया होगा पर मुझे ज्यादा आया। अपनी-अपनी हाइट को लेकर हम दोनों विवश थे। मुझे पहली बार टीवी पर आने का और उसे पहली बार किसी व्यंग्यकार की बाइट लेने का अवसर हाइट ने छीन लिया। 
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