एकाध दिन से देख रहा हूं
कि धर्मपत्नी अखबार के पन्ने पलट-पलट कर, एक-एक विज्ञापन को बड़े गौर से देख रही है। जबकि ओर दिनों
अखबार को देखना तो दूर उस पर नजर भी नहीं मारती है। उसे यह भी पता नहीं रहता है कि आज के अखबार में मुख्य
समाचार क्या छपा है? मुझे तो लगता है
कि एकाध विज्ञापन की कटिंग भी काट कर रख रखी होगी। मैं धर्मपत्नी से जिक्र इसलिए
नहीं करना चाहता हूं कि जहां तक बचा जाए बचना चाहिए। पर धर्मपत्नी से बचना मुश्किल
है।
सुबह-सुबह ही बोल दिया-‘अजी! सुनते हो।
यह देखों! साड़ी का विज्ञापन। ‘विशेष छूट’ व ‘आकर्षक इनाम’ के साथ है। सीमित
समय के लिए है। चलो शॉपिंग करने चलते है। ऐसा मौका बार-बार नहीं आता है।’
मैंने कहा-‘आज मेरा मूड नहीं
है। किसी ओर दिन देख लेंगे।’
यह सुनकर वह झुंझलाती हुई
बोली-‘किसी ओर दिन कब? ऐसा बढिय़ा ऑफर
निकल जाएंगा तब। तुम्हें क्या पता। मैं कब से एक-एक विज्ञापन को देख रही हूं। कई
विज्ञापनों की तो कटिंग भी काट कर रख रखी है। लेकिन इस विज्ञापन में जो है,उन में कतई नहीं
है। बड़ी मुश्किल से तो आज इतना बढिय़ा ऑफर आया है। उसके लिए भी किसी ओर दिन के लिए
टाल रहे हो।’
मैंने कहा- ‘ऑफर का क्या है।
ऑफर तो आते-जाते रहते है।’
धर्मपत्नी बोली- ‘ऐसे ऑफर बार-बार
नहीं आते सीमित समय के लिए आते हैं। एक तो दो साड़ी की खरीद पर एक साड़ी मुफ्त में
मिल रही है। ऊपर से सुनिश्चित उपहार अलग से है। हो सकता है प्रथम प्राइज हमारे ही
निकल आए। तुम किस्मत तो अजमाते हो नहीं। तुम्हें क्या पता ऑफर व उपहार के बारे
में।’
मैंने कहा-‘ऑफर वगैरह के
चक्कर में मत पड़ों। तुम्हें इससे भी अच्छी साड़ी दिला दूंगा।’
‘आप बात को टालने की कोशिश मत करों। यह देखों! साफगोई लिखा
है,सुनिश्चित उपहार।’- धर्मपत्नी उस
विज्ञापन को दिखाती हुई बोली।
मैंने कहा- ‘यह सब तो ठीक है।
लेकिन तुम समझ नहीं रही हो।’
धर्मपत्नी बोली-‘अजी! मैं तो
अच्छी तरह से समझ भी रही हूं और देख भी रही हूं। मुझे अब कुछ नहीं सुनना है। आप तो
यह बताओं कि मेरी साथ शॉपिंग करने चले रहे हो या मैं खुद ही जाओं।’
मैंने कहा-‘मैं तो नहीं चल
रहा। तुम्हें जाना है,तो जाओं।’
धर्मपत्नी बोली- ‘मुझे तो पहले ही
पता था कि तुम मेरे साथ नहीं चलोंगे। तुम मक्खीचूस जो ठहरे।’ यह कहकर वह बाजार
के लिए रवाना हो गई। मैं भी उसके पीछे-पीछे चल दिया। वहां जाकर आंखों देखा लाइव
कास्ट,मैं आपको बताता
हूं।
धर्मपत्नी जी बाजार में
उस दुकान पर गई,जिसका उसने
विज्ञापन देखा है। वहां जाते ही उसने दुकानदार को ‘विशेष छूट’ व ‘आकर्षक इनाम’ का ऑफर याद
दिलाया। ऑफर सुनकर दुकानदार मुस्कुराया और
धर्मपत्नी से कहा-‘बहिनजी! बैठये।
इसे आपकी ही दुकान समझये। लीजिए,ठंठा पानी पीजिए।’ यह सुनकर धर्मपत्नी भी पुलकित हो गई। दुकानदार उसे एक से
बढक़र एक साड़ी दिखाता है। एक-एक साड़ी का ऑफर बताता है। इस साड़ी पर यह ऑफर है। इस
साड़ी पर यह आकर्षक इनाम है। है। हर साड़ी का अलग-अलग ऑफर सुनकर,धर्मपत्नी जी
कंफ्यूज हो गई। कौनसी साड़ी लूं?और कौनसी नहीं लू? मुझे फोन लगाती है और कहती है-‘अजी! आप यहां पर
आ जाए। यहां तो ऑफर्स की भरमार है।’
मैंने कहा-‘ऑफर्स की भरमार
तो होगी ही। जल्दी करों कहीं ‘विशेष छूट’ व ‘आकर्षक इनाम’ का ऑफर निकल नहीं
जाए।’ यह कहकर मैंने
फोन काट दिया।