28 Feb 2017

फेसबुक के एक जीव की विशेषता

मोहन लाल मौर्य
आज हम आपको फेसबुक पर पाए जाने वाले ऐसे जीव के बारे में बताएंगे,जो फेसबुक के सामान्य जीवों से अलहदा है। जिसके प्रादुर्भाव के समय ही निर्धारित फ्रेंड्स सूची पूर्ण हो जाती है और फोलॉअर्स की बहुतायत रहती है। फर्जी प्रजाति के इस जीव की पहली विशेषता होती है-यह नर होते हुए भी मादा के नाम से जाना जाता है। इसकी प्रोफाइल पर खुद की फोटू न होकर एक सुंदर सी लड़की की फोटू होती है। जिसके बारे में खुद भी नहीं जानता किसकी फोटू है। जानकर करेंगा भी क्या? प्रोफाइल फोटू तो आएदिन बदलनी जो रहती है।
                                                                                    इस जीव की दूसरी विशेषता होती है- इसके पास फ्रेंड्स रिक्वेस्ट कम आती और भेजता ज्यादा है। इसकी फ्रेंड्स सूची में यूथ का बोलबोला होता है। यह जरूरी नहीं कि इसकी एक ही फेबु आईडी होती है। अनेक भी हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि कई फेबु आईडी होती हैं। जिन्हें बारी-बारी से उपयोग करता रहता है। इस जीव का मुख्य उद्देश्य सस्ती लोकप्रियता हासिल करना और लोगों को गुमराह करना होता है। गुमराह कर शिकार करना इसकी चालाकी है। इसे जब देखों तब ही ऑनलाइन देखता है। लगता है जियोका भरपूर फायदा उठा रहा है।
             इसकी तीसरी विशेषता पोस्ट संबंधी होती है। नित्य एक से बढ़कर एक आकर्षित करती  सुंदर लड़की की फोटू पोस्ट करता हैं,जो प्रोफाइल फोटू से मिलती-जुलती होती है। सच बताना कैसी लग रही हूं? मुझसे दोस्ती करोंगे। जो कमेंट्स करेंगा उसको वाट्सऐप नम्बर दूंगी। सुंदर लड़की की फोटू के साथ इसी तरह से लिखा हुआ देखकर मनचले एक से बढ़कर एक कमेंट्स करते हैं। पलभर में ही हजारों की तादाद में लाइक्स,कमेंट्स आ जाते हैं। पर रिप्लाई एक को भी नहीं मिलती है। कई तो रिप्लाई के इंतजार में रातभर ढंग से सो भी नहीं पाते। बार-बार देखते रहते हैं,रिप्‍लाई आयी की नहीं आयी। अपने कमेंट्स का रिप्लाई नहीं मिलने पर इनबाक्स में जाकर चैट करते हैं। पर यह जीव बहुत चतुर होता है। इनबाक्स में बिछाई गई चैट रूपी जाल को दूर से ही भाप जाता है। समीप आता ही नहीं।
दिन-प्रतिदिन फेबु पर फर्जी प्रजाति के इस जीव की तादाद बढ़ती ही जा रही है। इसकी बढ़ती तादाद फेसबुक के सामान्य जीवों लिए घातक साबित हो सकती है। कई बार यह जीव अश्लील प्रवृत्ति की पोस्ट भी कर देता है। आपने अपनी फेसबुक वॉल पर इस जीव को कई बार देखा होगा और कई बार सामना भी हुआ होगा। चाहे यह आपकी फ्रेंड्स सूची में नहीं हो। पर आपके फ्रेंड्स लाइक,कमेंट,शेयर करके आपकी वॉल पर भी ले आते हैं। यह अपने आकर्षण से प्रभावित करता है। इससे जितना बचा जाए उतना ही फायदेमंद है। जब भी आपकी वॉल पर विचरण करने आए तो इसे लाइक,कमेंट मत कीजिए। यह अपने आप की चला जाएंगा। आज के लिए बस इनता ही। अब मुझे इजाजत दीजिए। अगले एपिसोड में मिलते एक ओर ऐसे ही जीव की कहानी के साथ। कहीं जाएंगा नहीं, देखते रहे फेसबुक जीवों से जुड़ा एक ओर खास कार्यक्रम।

19 Feb 2017

चार लोग क्या कहेंगे


मोहन लाल मौर्य
व्यक्ति चार लोगों से डरता हैं। अन्यथा पता नहीं क्या से क्या कर दे। आप सोच रहे होंगे। भला ये चार लोगहै कौन और व्यक्ति इनसे डरता क्यों हैं? मैं आपको बता दूं ये चार लोगआप हम में से ही होते हैं। जरूरी नहीं पुरूष ही हो,महिलाएं भी हो सकती हैं। ये चार लोगनारदमुनि गुणों से युक्‍त होते हैं। राई का पहाड़ और बात का बतंगड़ बनाने में महारथी होते हैं। इसको उसकी और उसकी इसको,  मिर्च-मसाला लगाकर कहना इनका कार्य है। खुशामद करने व करवाने में अग्रणी रहते हैं। जो इनकी खुशामद करता है,वह खुशहाल रहता है और जिसकी ये खुशामद करते हैं उसे कंगाल करने में लगे रहते हैं। ये किसी के फटे में ही टांग नहीं अड़ाते बल्कि फटे,पुराने व नये में भी अपनी टांग फंसा देते हैं। इनको तो अपनी टांग फंसाने से मतलब रहता हैं, फिर चाहे फटा,पुराना व नया ही क्यों ना हो? टांग फंसाने के लिए बस थोड़ा सा फटा हो। कैसे भी करके एक बार फटे में टांग फंस जाए, फिर उस फटे को ओर फाडऩे में तो ये सिद्धहस्त हैं।
ये चार लोगचहूंओर विराजमान रहते हैं। अपनी शातिर निगाहों से चलते-चलते ही ताक-झांक कर लेते हैं। कौन कब घर आ रहा है और कब घर से जा रहा है? कहां जा रहा है और कहां से आ रहा है? किसके नल में ज्यादा पानी आता है और किसके नल में कम आता है। किसका नल दिनभर खुला रहता है और किसका नल बंद रहता है। रामू के घर में क्या चल रहा है? श्यामलाल की बीवी बेलन से उसकी रोज मरम्‍मत क्‍यों करती है? मदनलाल की बीवी अपनी पड़ोसिनों कमला और विमला से क्‍या कानाफूसी करती है? जेठाराम का लडक़ा किसकी लडक़ी से नैन मटक्‍का कर रहा है? इन सब बातों की भनक लगते ही ये चार लोगप्रचार-प्रसार करने में जुट जाते हैं। जहां कहीं भी इनको दो-चार लोग मिल गए या बैठे हो,  वहीं अपनी पोटली खोल देते है। एक बार बात दो से चार में गई। उसके उपरांत कुछ ही देर में सिलसिला एक-दूसरे से आगे बढ़ता हुआ सर्वविदित हो जाता है। आधुनिकता में सोशल मीडिया ने इनका काम ओर भी आसान कर दिया है। बस कॉपी-पेस्ट करना होता है। बाकी का काम तो खुद-ब-खुद ही हो जाता है। इनके वक्तव्य की पहली शर्त होती है-देख किसी से कहना मत और कह भी दे तो मेरा नाम मत लेना। अगर मेरा नाम आ गया तो देख लेना तेरी खैर नहीं।जब सूनने वाला इस शर्त को फॉलो कर लेता है। फिर उसे पूरी स्टोरी बताते है। बाकायदा टीवी सीरियल की तरह चलचित्र दर्शाते है। एक-एक पात्र से परिचय करवाते हैं और उनका चरित्र बताते हैं।
इन चार लोगों की वैसे तो तकरीबन सारी क्रिया-प्रतिक्रिया तंदुरुस्त रहती है,पर पाचन शक्ति कमजोर रहती है। इनको आप किसी भी तरह की बात कह दो। ऊपर से कसम भी दिला दो। इनके हजम नहीं होगी। जब तक आपके द्वारा कहीं बात दो-चार को कानाफूसी नहीं कर दे। तब तक इनके पेट में मरोड़े उठ़ते रहते हैं। कुलबुलाहट लगी रहती हैं। मैं सोचता हूं,भला इनके भोजन कैसे पचता होगा?
 इनके भय से हर कोई भयभीत रहता हैं। मां-बाप अपने बेटा-बेटी को यहीं कहता है-तुम कोई-ऐसा-वैसा काम मत करना, अन्यथा चार लोग क्या कहेंगे। बात चार में चल गई तो हमारी नाक कट जाएंगी। एक बार नाक कट गई तो किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। समाज में रहने के लिए नाक का होना जरूरी है। फिर चाहे नाक कैसे भी हो? लम्बी हो,छोटी हो,टेड़ी-मेड़ी हो। बस कटी हुई नहीं हो। जब नाक साफ करते वक्त जरा सा नाखून लगने से नाक कट जाती है,तब भी बहुत तकलीफ होती है। यहां तो मामला बिरादरी की नाक का हो जाता है। बिरादरी में नाक कटने पर तकलीफ नहीं बदनामी होती है। व्यक्ति तकलीफ तो सहन कर लेता है, बदनामी सहन नहीं होती। हर कोई यहीं चाहता है कि समाज,बिरादरी में मेरी नाक ऊंची रहे। नाक कटे नहीं। शायद इसीलिए व्यक्ति इन चार लोगों से डरकर ही रहता हैं।

मजे की बात है कि इन चार लोगों का तो बाल भी बांका नहीं होता। जिसका होना होता है उसका हो जाता है। ये तो अपना काम कर चलते बनते हैं। पीछे से चाहे कुछ भी हो इनकी सेहत पर क्या फर्क पड़ता हैं। जो भी पड़ता उस पर ही पड़ता है। वहीं दबता और वहीं झूकता है। इनके आगे नहीं सही पर किसी ना किसी के सम्मुख तो झूकता ही है। नहीं झूके तो अकिंचित भी कीचड़ उछाल देता है। जिसका वजूद न के बारबर होता है। पर क्या करें? जब जिसका वक्त होता है वहीं हावी होता है। जिस पर हावी होता है वह भीगी बिल्ली की तरह म्याऊं रहता है। फिर चाहे वह शेर क्यों ना? ये लोग चाहते भी यहीं है कि शेर हमारे समक्ष दहाड़े नहीं। बिल्ली की तरह म्याऊं-म्याऊं ही करता रहे। इनको शेर की दहाड़ नापसंद है और बिल्ली की म्याऊं- म्याऊं पसंद है। क्योंकि ये भी बिल्ली की श्रेणी में आते हैं। जिस तरह बिल्ली घर-घर जाती है। उसी तरह ये भी दिनभर इधर-उधर ही भटकते रहते हैं। मेरा मानना है इनसे जो जितना भयभीत रहता है। वह उतना ही पीछे चला जाता है। आप-हम पूरी जिंदगी इसी भय में गुजार देते है कि चार लोग क्या कहेंगेऔर अंत में चार लोग यहीं कहते है-राम ना सत्य है। उस वक्त आप-हम इस मोह-माया संसार को छोडक़र परलोक की यात्रा पर होते है। जहां ये चार लोगनहीं चार यमदूत होते हैं।

13 Feb 2017

वसंत अब ऑनलाइन ही मिलेगा


मोहन लाल मौर्य
वसंत एक फरवरी को परदेश से आया था। मैंने ही नहीं दीनू काका ने भी देखा था। देखा क्या था,उसने दीनू काका के पैर भी छूए थे। काका ने शुभाशीष भी दिया था-जुग-जुग जियो। यूं ही आते-जाते रहना।वसंत समूचे मोहल्ले वासियों का चेहता हैं। हर साल  इन्हीं दिनों घर आता है। कपड़ों का बैग भरकर लाता हैं। वसंत को पीले वस्त्र बहुत प्रिय हैं। उसका रूमाल तक पीले रंग का होता है। सब उससे मिलना चाहते हैं। पर जबसे आया है, दिखाई नहीं दे रहा है।

कल रामू काका पूछ रहे थे- सुना है वसंत आया हुआ है?’ मैंने कहा-आपने ठिक सुना है।यह सुनकर वे बोले-तो फिर वह कहां है? मैंने तो उसे देखा ही नहीं और ना वह मुझे मिला है।इस पर मैंने उन्हें समझाते हुए कहा-आजकल वह आप से ही नहीं, किसी से भी मिलता-जुलता नहीं है।रामू काका चौंके-क्या कह रहे हो? वसंत ऐसा लडक़ा नहीं है। वह तो जब भी आता है, सबसे मिलता है। बड़े-बुजुर्गों का अदब करता। प्यार-प्रेम की वार्ता करता है। जरूर किसी कार्य में व्यस्त होगा।
रामू काका वसंत से मिलने उसके घर पहुंचे। पर वह वहां नहीं था। उसके मां-बाप बता रहे थे कि जबसे आया है, फेसबुक पर ही चिपका रहता है। पता नहीं क्या हो गया है? गुमसुम रहता है। पहले तो खेत-खलियान में भी जाता था। सरसों के फूल बरसाते हुए आता था। सबसे मिलता-जुलता था। दिनभर खुश रहता था।

अगले दिन मैं गया तो वसंत अपने कमरे में बैठा फेसबुक पर लिख रहा था- मैं वसंत हूं। परदेश से तुम्हारे लिए आया हूं। एक खास गिफ्ट लाया हूं। वैलेंटाइन डे पर मिलेगे...।तभी उसे कमरे में मेरे दाखिल होने का भान हुआ। उसने गर्दन मेरी आरे घुमाई और बोला-आप और यहां। कैसे आना हुआ?’
मैंने कहा-भाई! आपसे मिलने आ गया। आप जबसे आए हो, मिले ही नहीं। आपको रामू काका भी पूछ रहे थे। कईयों को तो यकीन नहीं है कि वसंत आ गया है। आखिरकार बात क्या है?’ वसंत बोला-बात-वात कुछ नहीं है। अभी तुम जाओं। मैं व्यस्त हूं। शाम को फेसबुक पर ऑनलाइन मिलते हैं। वहीं वार्तालाप करते हैं।

मैं मन मसोसकर चला आया। रास्ते में रामू काका मिले। उन्होंने पुन: पूछा-वसंत मिला क्या? नहीं मिला तो कहां मिलेगा?’मैंने कहा-काका,वसंत तो अब फेसबुक पर ऑनलाइन मिलेगा।

9 Feb 2017

कबूतर चाहते हैं रोज सभा हो

मोहन लाल मौर्य
गांव की चौपाल में एक विशाल पीपल का पेड़ है। उसके चारों ओर चबूतरा बना हुआ है। जिस पर सुबह-शाम कबूतर चुग्गा चुगते हैं और दोपहर में बुजुर्ग लोग ताश-पत्ती खेलकर अपना टाइम पास करते हैं। यदा-कदा पंच-पटेल फैसला करते हैं। फैसले में न्याय होता है या अन्याय। यह तो पीपल की टहनियों पर बैठे कबूतर भी जानते हैं। पर खामोश रहते हैं। गुटरगूं-गुटरगूं नहीं करते। किस की कहे और किस की नहीं कहे यह दिक्कत रहती है। एक बार अन्याय के खिलाफ गुटरगूं-गुटरगूं की थी। किसी ने सुनी ही नहीं । एक दफा जन सुनवाई में भी गुटरगूं-गुटरगूं की थी। उस वक्त सुनकर अनसुनी कर दी। इसलिए टहनियों पर ही बैठे रहना ही उचित समझते हैं।

गांव के छोटे-मोटे सार्वजनिक कार्यक्रम इसी पीपल तले बने चबूतरे पर आयोजित होते हैं। कार्यक्रमों को देख-देखकर कई कबूतर बड़े हुए हैं और कई बुजुर्ग हो गए हैं। कबूतरों ने यहां रामलीला देखी है और धूमधाम से राष्ट्रीय पर्व भी मनाए हैं। रावण दहन पर रावण जलता देखा और होली दहन पर होली जलती देखी हैं। मदारी का खेल-तमाशा और जादूगर का जादू देखा है। पर जो चुनावीं मौसम में देखने और दाने चुगने को मिलता है। वह ऐसे अवसरों पर कहां मिलता है। चुनाव में आए दिन चबूतरे पर सभाएं होती हैं। जिस दिन जनसभा होती है। उस दिन कबूतर खुश रहते हैं। उन्हें मुफ्त में दाना-पानी मिलता है। कहीं पयालन उड़ान भरने की जरूरत ही नहीं पड़ती। बल्कि बैठ-ठाले ही बंदोबस्त हो जाता है। जब भी चुनावीं मौसम आता है। पीपल के कबूतरों के अच्छे दिन’ आ जाते हैं। नित्य किसी ना किसी नेताजी का कार्यकर्ता चबूतरे पर दाना-पानी की व्यवस्था कर देता है। दाना चुगकर दिनभर मस्त रहते हैं। पर ज्यों ही चुनावीं मौसम खत्म होता है। दाना-पानी चुगने के लाले पड़ जाते है। दाने-दाने के लिए मोहताज होना पड़ता है। कई बार तो दो चार दिन तक दाना-पानी नसीब नहीं होता है। कबूतर तो चाहते है कि रोज सभाएं हो। रोज सभाएं होंगी तो मुफ्त में दाना-पानी मिलेगा। मुफ्त का माल भला कौन छोड़ता है।

सुनने में आया है कि पीपल कटने वाला है। जब से कबूतरों ने यह खबर सुनी है चिंतित हैं। पीपल न रहेगा तो यहां सभाएं नहीं होंगी और सभाएं नहीं होगी तो दाना-पानी भी नहीं मिलेगा। चुनावीं मौसम में कहे तो किस से कहे। नेताजी भी अपने प्रचार-प्रसार में व्यस्त है। चलो नेताजी से कहकर देखते वे ही कोई ना कोई हल निकालेंगे। यह सोचकर नेताजी के पास गए। नेताजी ने कहा- मैं जीत गया तो पीपल को कभी नहीं कटने दूंगा। यह मेरा आपस से वादा है। दाना-पानी की भी व्यवस्था करवा दूंगा। चौबीस घंटे चबूतरे पर दाना-पानी उपलब्ध रहेगा। यह सुनकर कबूतर प्रफुल्लित हो गए और नेताजी को दुआएं देने लगे। नेताजी ने आश्वासन तो दिया है। यह तो चुनाव जीतने के बाद पता चलेगा पीपल कटता है या यथावत रहता है।

3 Feb 2017

हवा में उड़ते गुब्बारे की विशेषता


मोहन लाल मौर्य
चुनावीं रंग कैसे परवान चढ़े और लोग अपने रंग में कैसे रंगे? वोटर कैसे प्रभावित हो? पार्टी सत्ता में कैसे आए? गुणा,भाग,जोड़-घटा बढ़ाकर समीकरण बैठाते हैं। विचार-मंथन कर प्रचार-प्रसार करने का नायाब तरीका अपनाते हैं। अलहदा प्रसार कर चुनावीं वैतरणी पार करने की सोचते है। अबकी बार नेताजी का प्रसार हवा में गुब्बारें उड़ाकर करने का निर्णय लिया है। कर्मठ कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दे गई है। क्योंकि इस कृत्य में पार्टी का कर्मठ कार्यकर्ता पारंगत होता है। वह नेताजी के नाम के गुब्बारें हवा में उड़ाना जानता है। हवा का रूख देखकर गुब्बारें उड़ाता है। उड़ते हुए गुब्बारें को जो पकडऩे दौड़ता है उसे अपना वोटर समझ बैठता है।
दिनभर गुब्बारें उड़ाने के उपरांत शाम को कार्यालय में रिपोर्ट देनी होती हैं। कार्यालय प्रमुख एक-एक कार्यकर्ता से रिपोर्ट लेता हैं-आज तुमने कितने गुब्बारें उड़ाए और कितने गुब्बारें लोगों ने पकड़े। जो गुब्बारें उड़ते हुए फुस हो गए उनकी गणना कर मत बताना। उन्हें तो वापस जमा करवाने हैं। उनके बदले में नए जो लेने हैं। जो कार्यकर्ता सर्वाधिक गुब्बारें उड़ाने का जिस दिन रिकॉड़ कायम करता है उस दिन नेताजी उसकी पीठ थप-थपाते है और उसे ओर गुब्बारें उड़ाने के लिए प्रोत्साहित करता है। नेताजी के मुंख मंड़ल से अपनी प्रशंसा सुनकर कार्यकर्ता पुलकित हो जाता है और अगले दिन उससे भी ज्यादा गुब्बारें उड़ाने के लिए जुट जाता है।
हवा में उड़ते हुए गुब्बारें को जो पकड़ लेता है उसे गुब्बारें की विशेषता बताते हैं। ये ऐसा-वैसा कोई साधारण गुब्बारा नहीं है। इसको बनाने से पूर्व हर तबके का ध्यान रखा गया हैं। उसके उपरांत इसको विकास के रंग-बिरंगे रंग से रंगा गया है। इस पर पार्टी का घोषणा पत्र अंकित हैं। विविध योजना हैं। योजनाओं को कब कैसे लागू करना है,प्लान है। प्लान के मुताबिक योजना है और योजनाओं के अनुरूप विकास है।
देखना इस बार गुब्बाराछा गया तो विकासराजमार्ग व राष्ट्रीयमार्ग से नहीं बल्कि गली,मोहल्ला,गांव व शहर से होता हुआ गुजरेगा। जिधर से भी विकासगुजरेगा उधर से कूड़ा,कचरे का नेस्तनाबूद हो जाएंगा। जल की विकट समस्या से आप नहीं हमारे नेताजी लड़ेगे। गरीब व किसान के लिए भी कुछ ना कुछ करेंगे। चौबीस घंटे विद्युत आपूत्र्ति होगी और बूंद-बूंद सिंचाई से खेती होगी। किसानों के लिए अच्छी किस्म का बीज उपलब्ध करवाएंगे। अच्छी किस्म का बीज होगा तो अच्छी पैदावार होगी। अच्छी पैदावार होगी तो किसान खुशहाल रहेगा और गरीब तंगहाल नहीं रहेगा। गरीब की मूलभूत आवश्यताओं की पूर्ति  होगी। बेरोजगारों के लिए रोजगार नहीं नौकरी होगी। हमारा प्रयास और आपका एक वोट’ ‘गुब्बारेंकी उड़ान को गगन तक पहुंचा सकता है। गुब्बारेंका गगन तक पहुंचने का अभिप्राय है नेताजी की विजय भव:निश्चित होना।