31 Oct 2019

दिवाली पर चलता स्वच्छता अभियान



इन दिनों घर-घर में दिवाली स्वच्छता अभियान से चल रहा है। अभियान के तहत उड़ने वाले धूल मिट्टी के गुब्बारे गगन को छूने के बजाय नाक में घुसकर छींक को बाहर निकाल रहे हैं। छींक है कि बाहर निकलकर धूल मिट्टी पर हमला बोल रही है। उड़नपरी धूल-मिट्टी और छींक के बीच में घमासान युद्ध को देखकर झाड़ू बहुत प्रफुल्लित होता है। क्योंकि उसे जिन हाथों ने पकड़ रखा है,वो हाथ उसे छोड़कर नासिका को पकड़ लेते हैं। हाथ से उन्मुक्त होकर झाड़ू जब नीचे गिरता है, तब उसे बहुत मजा आता है। क्योंकि दिन भर इस दीवार से उस दीवार पर चलने के कारण इतना थक जाता है कि पूरी रात करहाता रहता है। छींक है कि इसको पल दो पल का आराम करवा देती है। इसलिए यह छींक की तरफदारी करता रहता है और धूल मिट्टी के गुब्बारों को खदेड़ने में रहता है।  
अभियान के तहत झाड़ू से मकड़जाल पर हमला किया जा रहा है। बहादुर मकड़िया जाले से कूदकर फर्श पर गिर रही है और अपनी जान बचाने में कामयाब हो रही है। कमजोर जाले के ही चिपककर जान गवाह रही हैं और चतुर देखते-देखते ही न जाने कहां पर ओझल हो जाती हैं। शायद उन्हें पता होता है कि दिवाली पर्व के आसपास कभी भी हमला हो सकता है। इसलिए इन दिनों वो अहर्निश सजग रहती हैं। झाड़ू स्पर्श होते ही भाग निकलती हैं। जो उसी समय झाड़ू के लिपटे जाले को निकालने में मशगूल हो जाता है। उसके घर की मकड़िया तो कभी भी नहीं मरती है। वहीं पर बिंदास रहती और सफाई के दूसरे दिन ही फिर से अपना मकड़जाल बनाना आरंभ कर देती हैं।
इस अभियान में कई छिपकलियों के झाड़ू लगने से उनकी पूंछ टूट जाती है और टूटकर नागिन डांस करने लगती हैं। जिसे देखकर वो कीड़े-मकोड़े बहुत प्रसन्न होते हैं। जो कटी पूंछ की छिपकली के मुंह में आने से बाल-बाल बच गए थे। मगर कीड़े मकोड़ों पर हमला देखकर छिपकली बिल्कुल भी प्रफुल्लित नहीं होती हैं। क्योंकि उसका कई दिनों का भोजन एक ही दिन में साफ-सफाई की भेंट चढ़ जाता है। 
जो कॉकरोच को देखते ही डर जाता है। उसके घर के कॉकरोच अपने ऊपर झाड़ू पड़ते ही झाड़ू में ही घुस जाते हैं। जब तक झाड़ू को दो-तीन बार फटकारे नहीं। तब तक बाहर नहीं निकलते है। निकलने के बाद सीधे उस तरफ भागते हैं,जहां पर रद्दी पड़ी होती है। रद्दी में घुसने के बाद रद्दी बिकने पर ही बाहर निकलते हैं।जिनके घर में चूहों ने हमला बोल रखा है। दिवाली के समय उन पर शामत आ जाती है। घर की साफ सफाई के साथ-साथ उनका भी सफाया हो जाता है। इनमें भी जो उस्ताद होता है। वह तो चकमा देकर घर के ही किसी ओने-कोने में छिप जाता है और जो भोला भाला होता है,वह बेचारा बेमौत मारा जाता है। 

18 Oct 2019

मोहनलाल मौर्य बानसूर गौरव रत्न अवार्ड से सम्मानित


अलवर। जिले के बानसूर तहसील में स्थित युवा जागृति संस्थान की 9 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य पर 17 अक्‍टुबर गुरूवार को गांव चतरपुरा निवासी युवा व्यंग्यकार मोहनलाल मौर्य को  बानसूर गौरव रत्न अवार्ड 2019 देकर सम्मानित किया। युवा जागृति संस्थान के सचिव गोकुल चंद सैनी ने बताया कि मौर्य को यह अवार्ड साहित्य सृजन में सर्वश्रेष्ठ कार्य करने पर कार्यक्रम में मुख्य अतिथि विकास अधिकारी मदन लाल बैरवा,विशिष्ट अतिथि  डीडीएम नाबार्ड अलवर प्रदीप चौधरी,सीडीपीओ मेघा चौधरी,डिपो प्रबंधक आबकारी अलवर विजेंद्र यादव,वाणिज्य कर अधिकारी शाहजहांपुर महेंद्र यादव,प्रबंधक एयू बैंक बानसूर इंद्रजीत सिंह,डॉ अरविंद वर्मा पशुपालन विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केंद्र बानसूर,सहायक कृषि अधिकारी,सुरेश यादवआईसीआईसी बैंक रीजनल सेल्स हेड अलवर दीपू यादव,  मैनेजर टेक्नोलॉजी सीएससी एसपीवी दिल्ली ओमवीर चौधरी,अध्यक्ष युवा जागृति संस्थान कुंदन लाल शर्मा के द्वारा प्रदान किया गया। इन्हें गत दिनों अखिल भारतीय रैगर महासभा जिला शाखा कार्यकारणी अलवर के द्वारा प्रशस्ति पत्र एवं बाबा साहब बी आर अंबेडकर का प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया था। मौर्य की आएदिन देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं।













8 Oct 2019

अच्छाई


देखते ही देखते तू-तू मैं-मैं से हुई तकरार हाथापाई पर उतर आई। बीच-बचाव में गए सज्जन गाली-गलौज की गोलियों से घायल होकर वापस लौट आए। पर बुराई बाई और अच्छाई ताई की ओर से गालियों की गोलाबारी शांत नहीं हुई। बल्कि हावी होती गई और लड़ती-झगड़ती बीच सड़क पर आ गई। तमाशबीन भीड़ छुड़ाने के बजाय खड़ी-खड़ी तमाशा देखने में मशगूल थी। मैं बीच-बचाव में इसलिए नहीं कूदा कि औरतों की लड़ाई हैं। कहीं भारी नहीं पड़ जाए। कोर्ट-कचहरी के चक्कर नहीं काटने पड़ जाए। पर वहाँ पर औरतें भी काफी थी। जिनमें से छुड़ाने के लिए एक भी आगे नहीं आ रही थी।
कई भाई लोग तो अपने मोबाइल से इस तरह वीडियो बना रहे थे। जैसे कि किसी फिल्म की शूटिंग कर रहे हो। मैंने एक भाई साहब से पूछा भी आप वीडियो क्यों बना रहे हैंभाई साहब ने पहले तो मेरी ओर घूर कर देखा और फिर बोला,'आपको क्या आपत्ति है?' 'मुझे कोई आपत्ति नहीं है पर किसी का इस तरह वीडियो बनाना अच्छी बात नहीं है।यह सुनकर वह बोला, 'मैं ही अकेला थोड़ी बना रहा हूँ और भी तो बना रहे हैं। इसलिए मैं भी बना रहा हूँ।मैंने उससे पूछा,'बनाकर क्या करोगे?'वह तपाक से बोला,'सोशल मीडिया पर वायरल करूंगा। तुम इतने सवाल-जवाब क्यों कर रहे होयह दोनों क्या तुम्हारी सगी संबंधी हैं। 'मैंने कहा, 'नहीं हैं।तो फिर साइड हटो। और मैं साइड में हो गया।
तमाशबीन भीड़ में से मुट्ठी भर लोग यह जरूर पूछ रहे थे कि दोनों के बीच हुज्जत हुई कैसेभीड़ में से पता चला कि अच्छाई ताई ने बुराई बाई को यह कह दिया था कि आज रावण दहन के पुतले के साथ बुराई भी जलकर खाक हो जाएगी। बस यह सुनकर ही बुराई बाई आग बबूला हो गई और गालियों की झड़ी लगा दी। काफी देर तक तो अच्छाई ताई सुनती रही। जब नहीं-नहीं मानी तो चोटी पकड़कर दो-चार थप्‍पड़ रसीद कर दी। फिर क्‍या थादोनों में गुत्‍थमगुत्‍थी हो गई और लड़ती-झगड़ती घर से सड़क तक आ गई। 
बुराई बाई अच्छाई ताई को जो मुँह में आया वही बकी जा  रही थी। तू अच्छाई ही होकर भी क्या कर पाईमुझे देख मैं चुटकियों में असंभव को भी संभव कर देती हूँ। तू क्या समझती है रावण के पुतले के साथ जलकर खाक हो जाती हूँ। यह तेरा भ्रम है और मेरी कलाकारी हैजो कि मैं तुम जैसे लोगों की आँखों में धूल झोंककर साइड से निकल जाती हूँ। मैं वह बुराई हूँ जो कभी खत्म नहीं होने वाली। एक बार तू मुझे छोड़फिर बताती हूँमैं क्या बला हूँ। अच्छाई ताई उसका हाथ मरोड़ती हुई बोली,'तू चाहे जो भी बला हो। मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। आज मैं तुझे तेरी औकात बताकर ही रहूंगी। यह तो शुक्र है कि वक्त पर एक ओर से अच्छाई ताई की बहन 'भलाईआ गई और दूसरी ओर से बुराई बाई का भाई 'बुराआ गया था। जिन्होंने आते ही दोनों को अलग-अलग कर दिया। अन्यथा तमाशबीन भीड़ के भरोसे तो न जाने क्या अनर्थ हो जाता। बुरा भाई बुराई बाई को धमकाते हुए बोला,' तेरे अंदर थोड़ी बहुत भी लाज शर्म है या नहीं। इतनी बड़ी बूढ़ी के साथ हाथापाई पर उतर गई। तुझे पता भी है आखिरकार जीत अच्छाई की होती है और अच्छाई ताई अच्छाई के सब गुण विद्यमान है। चल घर पर तेरी खबर लेता हूँ।

7 Oct 2019

शिक्षा से ही होगा समाज का उत्थान

थानागाजी। अखिल भारतीय रैगर महासभा जिला कार्यकारिणी अलवर के तत्वावधान में रविवार को नवम प्रतिभावान सम्मान समारोह कस्बे के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में डॉ एस के मोहनपुरिया की अध्यक्षता में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ एस के मोहनपुरिया ने उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करते हुए अपने बालक बालिकाओं को अच्छी शिक्षा दिलाकर समाज को गौरवान्वित करें। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि स्थानीय विधायक कांति प्रसाद मीणा ने कहा कि समाज पढ़लिख कर आगे बढ़े और उन्नति की ऊंचाइयों को छुए। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि पंचायत समिति सदस्य राजेंद्र प्रसाद रैगर, प्रदेश अध्यक्ष अखिल भारतीय रैगर महासभा जेपी महोलिया, युवाप्रकोष्ठ प्रदेश अध्यक्ष नीरज कुमार तोनगरिया, जिलाध्यक्ष जयपुर ग्रामीण गुलाबचंद बारोलिया, सेवानिवृत्त शिक्षा उपनिदेशक ज्ञानचंद मौर्य, प्रोफेसर पदमचंद मौर्य, अखिल भारतीय रैगर महासभा के राष्ट्रीय सचिव सुखदेव अटल, पूर्व जिला अध्यक्ष तोताराम मौर्य, गोपीराम जाजोरिया, अखिल भारतीय रैगर महासभा के राष्ट्रीय प्रचार प्रसार सचिव यादराम नोगिया, समाजसेवी कुशालचंद जाजोरिया थे। कार्यक्रम की शुरुआत बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर जी केे समक्ष दीप प्रज्वलित करके किया। इस अवसर पर समाज के 10वीं 12वीं में न्यूनतम  70% स्नातक एवं स्नातकोत्तर में न्यूनतम 60% नीट आईआईटी एमबीबीएस जेआरएफ एवं अन्य्य विशिष्ट उपलब्धियों वाले  व्यक्तियों को प्रशंसा प्रमाण पत्र एवं बाबा साहब की स्मृृति चिह्न देकर सम्मानित किया। कार्यक्रम का समापन जिला अध्यक्ष रामजीलाल जाजोरिया ने धन्यवाद ज्ञापित करके किया।  इस मौके पर प्रधानाचार्य कुम्हेरलाल मौर्य, सरदार सिंह, व्याख्याता रामप्रताप खोरवाल, सेवानिवृत्त क्षेत्रीय वन अधिकारी धूणीलाल रातावाल, सेडू राम मौर्य, पत्रकार मोहनलाल मौर्य, मोहन लाल सांटोलिया,सुश्रुत धूडिया, दिनेश कुमार खोलिया, इंद्राज तोनगरिया सहित समाज के गणमान्य लोग मौजूद थे। कार्यक्रम का मंच संचालन व्याख्याता पूरणमल रातावाल ने किया।

















6 Oct 2019

छपने की प्रक्रिया


जब भी मैं किसी प्रतिष्ठित अखबार में छपता हूँ,तो छपने की प्रक्रिया के बारे कोई न कोई तो पूछ ही लेता है। साहित्यिक पैसेंजर,फेसबुक मैसेंजर और  व्हाट्सएप के जरिए हाय-हैलो करके पूछे बगैर नहीं रहते हैं। इनके पूछने का सलीका भी अलहदा होता है। सीधे-सीधे न पूछकर घुमा-फिराकर पूछते हैं। पहले प्रकाशित होने की बधाई देंगे,फिर प्रशंसा स्वरूप दो लाइन लिखकर आदरणीय, श्रीमान जी, सर जी, भाई साहब, मित्र, आदि इत्यादि सम्मानसूचक शब्दों से संबोधित करके पूछेंगे कि छपने की प्रक्रिया क्या है, जरा हमें भी बताइए! आभारी रहेंगे आपके।

दरअसल,मुझे खुद पता नहीं है। इनको क्या बताऊं,मगर इनको जब तक नहीं बताऊंगा, तब तक यह जोड़े हुए हाथ का ‘इमोजी’ भेजते रहते हैं,जिन्‍हें देखकर पत्थर दिल भी मोम की तरह पिघलकर तत्काल बता देगा कि भई,यह प्रक्रिया है। पर मैं क्या बताऊं और क्या नहीं बताऊं? मैं अक्‍सर  इस दुविधा में पड़ जाता हूँ। पड़ने के बाद बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। यह कोई गली व मोहल्ले का रास्ता तो पूछ नहीं रहे होते हैं,जो कि बता दूं कि यह तो शॉर्टकट पड़ेगा और यह वाला लंबा पड़ेगा। रास्‍ता न मालूम होने पर बोल भी दूं कि किसी अन्य से पूछ लीजिए या फिर गूगल मैप पर देख लीजिए। वो फिर थैंक यू बोलकर चले जाएंगे।
छपने के बारे मैं यही बताता हूँ कि सबसे पहले दिमाग में विषय लाना होता है। समसामयिक विषय आसानी से मिल जाता है। बस सोशल मीडिया पर अपडेट रहना पड़ता है। कालजयी विषय के लिए दिमाग के घोड़े बहुत दूर तक दौड़ाने पड़ते हैं। गहराई में उतरना पड़ता है,पढ़ना पड़ता है। उसके बाद में चिंतन करना होता है। चिंतन के दौरान जो विचार आते हैं, उन्हें लिपिबद्ध करना पड़ता है। पर आजकल लिपिबद्ध कौन करता हैसब टाइपबद्ध करते हैं। मेरा जैसा तो टाइपबद्ध भी नहीं करता है। मोबाइल में वॉइस के जरिए ही बद्ध कर लेता है। इसके बाद में संपादक जी की ईमेल आईडी पर प्रेषित कर दिया जाता है। छापना और न छापना तो संपादक जी पर निर्भर करता है। लेकिन यह प्रक्रिया बताता हूँ तो लोग यकीन ही नहीं करते हैं। पढ़कर तुरंत लिखते हैं कि यह तो हम भी जानते हैं। यही प्रक्रिया अपनाते हैं। उसके बावजूद भी छप नहीं पाते हैं। नहीं छपने का मलाल नहीं है,लेकिन जो छपने की प्रक्रिया है,उसे जानने की उत्कंठा है। या तो आप सही नहीं बता रहे हैं या जान-बूझकर मजे ले रहे हैं। हो सकता है,आपकी छपने की प्रक्रिया भिन्न हो। जब  इनको यह बताता हूँ कि न तो मेरी प्रक्रिया भिन्न है, न ही मैं मजे ले रहा हूँ। सच बता रहा हूँ, मेरी तो यही प्रक्रिया है, तब भी लोग विश्वास नहीं करते हैं। हद से ज्यादा हंसता हुआ हंसने वाला इमोजी भेजकर लिखते हैं कि अन्यथा मत लीजिए। सही-सही बताइए,श्रीमान जी, कहीं संपादक से तो सांठगांठ नहीं है। यह पढ़कर अन्यथा लेने का मन तो करता है। पर लेकर करूं क्या? मेरे किसी काम की नहीं है। जो कामकाज की नहीं, उसे गंभीरता से लेना भी बेवकूफी है। इसलिए नजरअंदाज करते हुए लिखता हूँ कि रचना सांठगांठ से नहीं,सर्वश्रेष्ठ होती है तब छपती है। अन्यथा संपादक जी खास रिश्तेदार ही क्यों न हो,उसकी भी नहीं छपती है। क्योंकि संपादक के अंदर के संपादकीय का संबंध सिर्फ और सिर्फ सर्वश्रेष्ठ रचना से ही होता है।
यह पढ़कर भी उन्हें आत्मसंतुष्टि तो होती नहीं हैं, पर संतुष्टि का ढोंग करते हुए पुष्प वाली इमोजी के साथ हृदयतल से आभार लिख भेजते हैं। ऐसे लोग ईमेल आईडी पूछे बगैर नहीं रहते हैं। जब आईडी मिलने के बाद भी नहीं छपते हैं तो मुझ जैसे किसी दूसरे-तीसरे से कंफर्म करते हैं कि दी गई थी आईडी सही है या गलत।