1 Mar 2020

एक लेखक की दिनचर्या


आपने अपने पसंदीदा अभिनेता या नेता की दिनचर्या के बारे में तो खूब पढ़ा होगा। लेकिन,क्या आपने कभी किसी लेखक की दिनचर्या के संदर्भ में पढ़ा हैअगर नहीं पढ़ा है तो पढ़िए अधुनातन युग के एक लेखक की दिलचस्प दिनचर्या। जिसका नाम छोटे लाल 'छोटू' है। छोटू उसका तख़ल्लुस है। साहित्य में तख़ल्लुस बहुत मायने रखता है। तख़ल्लुस से वह तकलीफ दूर हो जाती है,जो कि साहित्यिक पथ पर चलने के दौरान आती है।
छोटू के मोबाइल में जैसे ही सुबह पाँच बजे की अलार्म बजती है। उसका हाथ उसी तरह से सिरहाने रखें मोबाइल पर पहुँच जाता है। जिस तरह से खुजली चलने पर पहुँच जाता है। क्या है कि वह अपने सुख-दुख के संगी साथी मोबाइल को हमेशा सिरहाने रखकर ही सोता है। पता नहीं कब किसकी घंटी बज जाए। रिसीव करने से पहले ही घंटी मिसकॉल की नहीं हो जाए। यह उसे कतई पसंद नहीं है। इसी तरह से अलार्म के समय पड़ोसी का मुर्गा बांग नहीं मार दे। इंटरनेट के युग में मुर्गे की बांग सुनकर जगना वह अपनी तौहीन समझता है।इसलिए नींद में ही अलार्म बंद करके मोबाइल को रजाई में ले लेता है। फिर रजाई के अंदर ही आँखें मसलते हुए सबसे पहले उन अखबारों का ईपेपर देखता है। जिन्हें अपनी रचना भेज रखी है। जब किसी भी अखबार में अपनी रचना के दर्शन नहीं होते हैं तो अन्य लेखकों की रचना के दर्शन करके उन्हें सेव कर लेता है। 
खुद बाद में पढ़ता हैं। पहले लेखक को हार्दिक बधाई के साथ व्हाट्सएप करता है। क्योंकि छोटू लेखकों के कई व्हाट्सएप ग्रुपों से जुड़ा है। वहीं से नंबर सर्च करके प्रेषित कर देता है। प्रेषित करने से भी प्रसिद्धि प्राप्त होती है। ऐसा उसे लगता है। जो अपरिचित है,उसे बगैर पूछे ही अपना लेखकीय परिचय भेजकर परिचित कर लेता है। परिचित होने के बाद आए दिन परिचर्चा करता रहता है। परिचर्चा से चर्चित होता है। ऐसा उसका मानना है। उस लेखक की फेसबुक वॉल पर अपना नाम सूचनार्थ के रूप में देखकर फूले नहीं समाता है। फुले नहीं समाने का कोई रहस्य पूछता है तो उसे भानगढ़ के भूतहा किला की कहानी सुनाने लग जाता है। जिसे सुनने पर रूह कांपने लगती है।
बिस्तर बाद में छोड़ता है पहले सेव की हुई रचनाओं का आनंद लेता है। आनंद के बाद नित्यकर्म के लिए जाता है। नित्यकर्म के दौरान आज किस विषय पर लिखना है के संदर्भ में सोचता है। वहाँ पर विषय मिल गया तो खिलखिलाता हुआ बाहर निकलता है। नहीं मिला तो मुरझाया हुआ नहीं। गेट को जोर से बंद करके निकलता है। इसके बाद टूथब्रश एवं स्नान के समय खोजता है। इस समय मिल गया तो फिर चाय सुड़कते-सुड़कते ही प्रस्तावना तो लिख डालता है। उसके बाद पूरी दोपहरी विस्तार में लगा रहता है। संध्याकालीन तक भी लेख पूरा नहीं होता है तो कार्य मध्यरात्रि तक प्रगति पर रहता है। जब तक कार्य प्रगति पर रहता है। घर-बाहर के किसी भी कार्य में हाथ नहीं बट आता है। चाहे घरवालों से खरी खोटी ही क्यूँ नहीं सुननी पड़े। लेकिन पहले अपने लेखन कार्य को ही प्राथमिकता देता है।
वैसे तो वह जब चाहे तभी पूर्ण कर सकता है। लेकिन क्या है कि बीच-बीच में फेसबुक तथा व्हाट्सएप की शरण में भी जाना होता है। इसलिए पूरा होने में मध्यरात्रि तक लग जाती है। क्योंकि फेसबुक और व्हाट्सएप इतने रमणीय स्थल हैं कि एक बार वहाँ पर जाने के बाद  जल्दी सी वापस आने का मन ही नहीं करता है। जिस दिन लिखने लायक विषय नहीं मिलता है। उस दिन दिनभर फेसबुक से व्हाट्सएप पर व्हाट्सएप से इंस्टाग्राम पर इंस्टाग्राम से ट्विटर पर यह देखता रहता है कि देश-दुनिया में क्या घटित हो रहा हैकौन सुर्खियां बटोर रहा हैसाथी लेखक का हाथी पर लिखा व्यंग्य देश के प्रमुख अखबार में कैसे छप गयाउस दिन इसी खोज खबर के चक्कर में घर पर आने वाला अखबार भी नहीं पढ़ता है। बेचारा अखबार दिनभर दालान में ही पड़ा-पड़ा फड़फड़ाता रहता था। कई बार तो उसके अपने पन्ने भी जुदा होकर गुमशुदा हो जाते हैं।
जिस दिन खुद की रचना प्रकाशित हो जाती है। उस दिन नित्यकर्म बाद में करता है। पहले प्रकाशित के प्रकाश को अपनी फेसबुक वॉल पर पहुँचाता है। उसके बाद में व्हाट्सएप वाया इंस्टाग्राम होते हुए ट्विटर पर ले जाता है। उस दिन लिखता-विकता नहीं है। बस दिनभर लाइक और कमेंट पर आँखें गड़ाए रखता है। कमेंट आते ही तुरंत रिप्लाई देता है। उस दिन उसके आभार का द्वार खुला ही रहता है। पोस्ट पर आने वाले कमेंटार्थियों को थैंक यू,धन्यवाद व शुक्रिया के दर्शन करवाए बगैर जाने नहीं देता है। जबकि बाकी दिन आभार के द्वार खोलता ही नहीं है। उस रोज अपनी प्रकाशित रचना के सिवाय किसी अन्य लेखक की रचना नहीं पढ़ता है और नहीं ही किसी को लाइक व कमेंट की घास डालता हैं। बस खुद की प्रकाशित रचना का ही राग अलपाता रहता है। बस यही उसकी दिलचस्प दिनचर्या है।

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