मोहन लाल मौर्य
विकास के बारे में बचपन
से सुनता आया हूं,पर कभी देखा
नहीं। अक्सर दादा-दादी,नाना-नानी विकास
की बाते करते रहते थे। विकास ऐसा है। विकास ऐसा होगा। देखना एक दिन विकास अपना ही
नहीं समूचे देश का नाम रोशन करेगा। विकासशील देश कहेंगे,देखों भारत का
विकास कितना विकसित हो गया है और हम वहीं की वहीं हैं। हमें भी भारत के विकास से
प्रेरणा लेने चाहिए। जब वे विकास से प्रेरणा लेने भारत आएंगे तो हमारी
अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। ऐसा दादा-दादी और नाना-नानी ही नहीं,बल्कि मेरे
अड़ोसी-पड़ोसी भी सोचते थे। उस वक्त में सोचता था कि आखिरकार विकास किस चिड़िया
का नाम है,जिसको होते हुए
भी मैंने देखा नहीं। जब समझ आयी तो विकास गायब हो गया।
दादा-दादी और नाना-नानी
को विकास से बहुत अपेक्षाएं थी। पर एकाएक जबसे विकास गायब हुआ है। वे बहुत दुखी
हैं। वे ही नहीं अड़ोसी-पड़ोसी सब दुखी हैं। विकास का इस तरह से गायब होना। मुझे
भी अच्छा नहीं लगा। वह खुद गायब हुआ है या फिर किसी ने उसका अपहरण किया है। यह भी
तो पता नहीं। किसी को कुछ बताकर भी नहीं गया और नहीं कोई चिट्ठी-पत्र लिखकर गया।
जिसमे लिखा हो कि मैं अमुख जगह जा रहा हूं,जल्दी ही लौटकर आ जाऊंगा,मेरी चिंता मत
करना। मैंने भी उसकी तलाश में गांव की गलियां और शहर के नगर के नगर छान मारे,पर वह मिल नहीं
रहा है। चाय की थड़ी से लेकर मॉल तक और सड़क से लेकर संसद तक खोज लिया। लगता है
किसी ने अपहरण कर लिया है। फिरौती मिली नहीं होगी। इसलिए बीहड़ों में कहीं छुपा कर
रख रखा होगा। फिरौती मिलते ही छोड़ देंगे। पर मेरा मन कहता है उसने किसी का क्या
बिगाड़ा है? जो उसका अपहरण
करेंगे। वह तो सबसे मिल-जुलकर रहता है। नहीं...नहीं...ऐसा नहीं हो सकता। हो क्यों
नहीं सकता? अधुनातन में कुछ
भी हो सकता है। फिर विकास का तो नेताओं से ताल्लुक रहा हैं। जो मांगेगे वहीं हाजिर
हो जाएंगा। यह सोचकर किसी ने अपहरण कर लिया होगा। खैर,जो भी हुआ हो।
मुझे तो विकास को ढूंढ़ना है। आप सोच रहे होंगे। मैं विकास को क्यूं ढूंढ़ रहा हू? मैं विकास को
इसलिए ढूंढ़ रहा हूं,क्योंकि विकास के
बगैर विकास अधूरा है और मैंने उससे देखा भी नहीं।
जब मैं विकास को ढूंढ़
रहा था तो एक महाशय ने राय दी कि विकास का अपहरण हुआ होगा तो गुमशुदगी की रिपोर्ट
अवश्य दर्ज हुई होगी और रिपोट दर्ज नहीं हुई होतो तुम करवा देना । गुमशुदगी
रिपोर्ट की जानकारी लेने मैं नजदीकी थाने में जा पहुंचा। वहां जाकर सीधे ही
थानेदार साहब से पूछा-‘ साहब! आपके यहां पर विकास नाम से कोई गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज हुई है क्या?’ यह सुनकर थानेदार
साहब बोले-‘आप बैठेए बताते हैं।’ उन्होंने एक सिपाही को बुलाया और उससे कुछ कहा जो
मैं नहीं सुन पाया। शायद रिकॉड़ में देखकर बताने के लिए कहा होगा। जाओं जाकर
रिकॉड़ में देखकर आओं। विकास नाम से रिपॉर्ट दर्ज हुई है क्या? ऐसा मुझे उनके
हाव-भाव से प्रतीत हुआ। थोड़ी देर बाद वह सिपाही दो-तीन फाइल लेकर आया और थानेदार
साहब को सौंप दिया। थानेदार साहब उन्हें देखकर इनकार करते हुए बोले-‘यहां तो विकास
नाम से गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है।’ मैंने एक बार फिर
से निवेदन किया-‘साहब अच्छी तरह से देखकर बताए। शायद रिपोर्ट दर्ज हुई होगी। विकास का इस तरह
से लापता होना। आमजन के लिए चिंता का विषय है। इसके बगैर आमजन परेशान है।’ यह सुनकर थानेदार
साहब आश्चर्य चकित होते हुए पूछे-‘भाई! आप किस विकास की बात कर रहे हो। आखिर यह विकास क्या
भला है? मैं समझा नहीं।’ मैंने कहा-‘साहब! विकास के
बिना विकास अधूरा है।’ यह सुनकर थानेदार साहब चौंके और बोले-‘ अच्छा-अच्छा तो आप उस विकास की बात कर रहे हो।
अरे,भाई! उस विकास के
संदर्भ में तो भला मैं क्या बता सकता हूं? बलात्कार,चोरी,डकैती,लूट-पाट,मारपीट की कोई बात होतो बताओं हम ढूंढ कर बताते देंगे।’ ‘साहब ! रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई
है,तो अब कर लीजिए।’ थानेदार साहब बोले-‘ जिसका कोई अता-पता ही नहीं। उसकी भला मैं रिपोर्ट कैसे
दर्ज करों? तुम्हीं बताओं!’ मैं क्या
बताता ? मैं चुपचाप चला आया।
थाने से सीधा चम्बल के
बीहड़ में गया। डाकूओं के भय से भयभीत था। भय था कहीं कोई डाकू आकर कनपटी में
बंदूक नहीं तान दे। कुछ कह पाऊं उससे पहले टपका नहीं दे। बीहड़ इलाको में जाना
हथेली पर जान रखकर जाना होता है। पर मुझे विकास को ढूंढ़ना था। बड़ी मुश्किल से
डरता-डरता गया। एक-एक डाकू से पूछा विकास तुम्हारे पास है क्या? पर सबने इनकार कर
दिया। एक डाकू ने अवश्य पूछा-‘ जरा विकास का हुलिया तो बताओं। उसकी कद-काठी,रंग-रूप,उम्र,क्या है? दिखता कैसा है?’ दरअसल मैंने भी
कभी विकास को देखा ही नहीं। मैं क्या बताता? उसे दिखा होता तो थानेदार साहब को ही बताकर रिपोर्ट दर्ज करवा देता। मैं बोला-‘विकास को देखा तो
मैंने भी नहीं।’ इस पर पहले तो वह शोले के गब्बर की तरह हंसा। फिर बोला-‘जब तुमने विकास
को देखा नहीं तो ढूंढ़ने क्यूं चले आए। विकास से तुम्हारा रिश्ता क्या है?’ मैंने कहा-‘खून का रिश्ता तो
नहीं है,पर दिल का रिश्ता
है। वह सबका प्रिय है,तो मेरा भी प्रिय हुआ।’ यह सुनकर डाकू
बोला-‘मैं कुछ समझा
नहीं। सीधे-सीधे कहों। कहना क्या चाहते हो? तुम किस विकास की बात कर रहे हो।’ मैंने कहा-‘मैं
किसी विकास नाम के व्यक्ति को नहीं। बल्कि उस विकास को ढूंढ़ रहा हूं,जिसके संदर्भ में
लोग अक्सर वार्ता करते रहते हैं। नेताजी चुनाव के वक्त विकास-विकास पुकारते रहते
हैं।’ यह सुनकर डाकू जोर-जोर से डरवानी सी हंसी हंसने लगा और बोला-‘वह विकास यहां
बीहड़ों में नहीं। इस वक्त जहां चुनाव हो रहे है वहां मिलेगा।’
मैं वहां पहुंचा जहां
चुनाव हो रहे थे। वहां किसी नेताजी की रैली निकल रही थी तो किसी का भाषण चल रहा
था। जिधर देखों उधर ही माहौल चुनावी रंग में रंगा हुआ था। चुनावी रंग-बिरंगे माहौल
में विकास को ढूंढ़ना घास में सुई ढूंढ़ना था। कई नेताओं से भी पूछताछ की विकास
कहां मिलेगा? पर किसी ने भी
संतुष्टजनक जवाब नहीं दिया। बड़ी मुश्किल से एक नेताजी ने मुंह खोला और बोला-‘विकास उन सड़कों
पर मिलेगा। जिनका मैंने निर्माण करवाया है और उद्घाटन किया है। वहां नहीं मिले तो
उस गांव में मिलेगा। जिसको मैंने गोद लिया है। अगर वहां भी नहीं मिले तो विकास
सामुदायक भवन में मिलेगा। मैंने गत दिनों ही उद्घाटन किया है।’ नेताजी ने
जहां-जहां बताया,वहीं जाकर देखा
पर कहीं भी नहीं मिला। एकाएक एक चुनावी घोषणा पत्र पर मेरी नजर पड़ी। मैंने देखा
कि घोषणा पत्र में लोक लुभावानी योजनाओं के साथ विकास भी था। दुबला-पतला,तिखे नैन
नक्ष,हिरण सी आंखे,घने काले बाल,पर उसके चेहरे पर चमक थी। मैंने पहली बार विकास को
देखा था। मैं भागकर उसके पास गया और उससे पूछा-‘क्या तुम्हीं विकास हूं।’ उसने
पहले तो मेरे को निहारा फिर बोला-‘हां मैं ही विकास हूं।’ मैंने कहा-‘तुम्हें
कहां-कहां नहीं ढूंढ़ा और तुम हो कि यहां दूबे पड़े हो।’ वह बोला-‘मैं यहीं ठीक
हूं। तुम जाओं किसी को बताना मत। मैं यहां पर हूं।’ मैंने उसको
समझाते हुए बोला-‘तुम्हारी जगह यहां नहीं है,वहां है,जहां तुम्हें होना चाहिए।’ यह सुनकर वह
बोला-‘वहां जाकर क्या
करूंगा? जहां हर कोई ताना
मारता है। यहां विविध योजनाओं और वादों के साथ खुश तो हूं।’मैंने विकास को
बहुत समझाने की कोशिश की पर वह नहीं माना। मैं उसको घोषणा पत्र में देखकर इसलिए
चला आया। चलों आखिरकार विकास मिल तो गया। अन्यथा पांच साल तक ढूंढ़ना पड़ता।
No comments:
Post a Comment