सर्दी
धीरे-धीरे ही सही,मगर बढ़ने लगी है। जब ठण्डक बढ़ती है तब मूंगफली,पकौड़ी एवं अंडेवालों की बन आती है। मगर जेबकतरों की कमाई घटने लगती है
क्योंकि लोग जेब में से हाथ बाहर निकालते ही नहीं। जेबों
के अंदर ही डालें रहते हैं। पर चोरों की पौ बारह हो जाती है। जनता रजाई में दुबकी रहती है,चोर आराम से चौर्यकर्म
कर निकल जाते हैं। भोर को भी शोर नहीं करते हैं कि घर में चोर घुस गए हैं। हमारे
चोरी हो गई है। शोर तब मचाते हैं। जब गुनगुनी धूप निकल आती है। तब तक चोर बहुत दूर
जा चुके होते हैं।
पुलिस इत्तला होने के बाद भी देरी से क्यों आती है। क्योंकि पुलिस
की जीप ठंड के कारण जल्दी सी स्टार्ट ही नहीं हो पाती इसलिए देर हो जाती है। वर्दी को भी सर्दी तो लगती है। वर्दी के अंदर है तो एक इंसान ही।उसके भी
जाड़ा तो चढ़ता ही है। जब जाड़ा चढ़ता है न तब गाड़ी तेज
नहीं धीमी ही चलती है। सर्दी में गश्त करना मटरगश्ती तो है नहीं। डंडा लेकर घूम फिरकर आ गए। यह भी नहीं है कि वर्दी को देखकर सर्दी भाग जाती हैं। सर्दी वर्दी तो क्या? किसी से नहीं डरती है। बल्कि इससे ही जनता भयभीत रहती हैं। इसीलिए तो सर
से पांव तक गरम परिधान पहने रहते हैं। कइयों को तो सर्दी से इतना डर लगता है कि
रात को सोते समय भी जुराब पहनकर सोते हैं। पूरी रात जुराब की महक लेते रहते हैं।
महक से इतने मदहोश हो जाते हैं कि जब दिन सर पर आ जाता है तब बिस्तर छोड़ते हैं।
सर्दी ही है,जो रोज बदन पर सरसों के तेल
की मालिश करवाती हैं। जो मालिश करने का आलस्य करता है। उसके खुजली चला देती है।
फिर वह झक मारकर करता है। सर्दी के दिनों में ही
व्यक्ति दबाकर खाता है। इसका आगमन होते ही देसी घी की मांग बढ़ जाती हैं और भाव
आसमान पर पहुंच जाता हैं।
सर्दी में कुत्ते भी नहीं भोंकते हैं। वो भी अंग्रेजी वाला आठ बने
रहते हैं। इनके समीप होकर भी कोई गुजर जाए,तो भी वे आठ से
सतर्क एक में तब्दील नहीं होते। कौन जा रहा है,यह देखकर भी
क्या करना? भौंकना तो है नहीं। फिर क्यों किसी को रोके।
इनकी भी मजबूरी है। भौंकने को तो खूब भौंक ले,पर भौंकने के
लिए मुंह तो खुले। मुंह ठण्ड के मारे खोलने से भी नहीं खुलता।
सर्दी में जितना परिवार एक जगह बैठे दिखता है उतना अन्य किसी ऋतु
में नहीं दिखाई देता है। चूल्हे के चारों ओर घेरा बनाकर घर के छोटे-बड़े सब हाथ तापते रहते हैं और तवे पर रोटी सिकती रहती हैं। रोटी बदलते समय
किसी के हाथ के चिमटा लग जाता है तो नाराज नहीं होता है। बल्कि हाथ मसलकर मुस्कुरा
देता है। यह सर्दी का ही कमाल है,जो कि गर्म चिमटा लगने के
बावजूद भी कहासुनी नहीं होती। अन्यथा गर्म चिमटा छू जाए तो लोग घर को सिर पर उठा लेते हैं।
सर्दी में पानी की बचत भी बहुत होती है। मुझ जैसा तो सप्ताह में
एकाध बार ही स्नान करता है। जब ड्राइक्लीनिंग से ही काम चल जाता है तो क्यों कोई
पानी बर्बाद करें। पानी बर्बाद करने के लिए थोड़ी है। गर्मियों
के लिए सहेजकर रखने के लिए है।