25 May 2019
23 May 2019
एग्जिट पोल की नियति
चुनाव संपन्न होने के बाद सबकी निगाहें परिणाम पर उसी तरह टिकी हुई है,जिस तरह से आसमान में उड़ते गिद्ध की निगाहें अपने शिकार पर टिकी हुई होती हैं। किसका परिणाम क्या होगा? यह जानने की उत्कंठा में टीवी के सामने रिमोट लेकर बैठे लोग दूसरा चैनल इसलिए नहीं बदल पा रहे हैं,उन्हें डर है कि दूसरा चैनल बदलते ही कहीं चुनाव परिणाम नहीं बदल जाए।
चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी भी अपने परिणाम की प्रतीक्षा में उसी तरह बेचैन हैं। जिस तरह से एक विद्यार्थी अपने परीक्षा परिणाम के आने से पूर्व बेचैन हो जाता है। जिस तरह से परिणाम के दो दिन पहले से विद्यार्थी की धड़कन अचानक सामान्य गति से तेज चलने लगती हैं। ठीक उसी तरह से प्रत्याशियों की धड़कन भी तेज होती जा रही हैं। इस चक्कर में कईयों को तो रात्रि में नींद नहीं आ रही हैं। करवटें बदल-बदलकर रात काट रहे हैं। लेकिन आज के बाद करवटें बदलने की जरूरत नहीं पड़ेगी। जो जीतेगा वह खुशी में और जो हारेगा वह गम में सो नहीं पाएगा।
एग्जिट पोल वाले नतीजे उसी तरह बता रहे हैं,जिस तरह अखबार के राशिफल में राशि बताते हैं। जिस तरह हम अपनी राशि पढ़कर,कभी खुशी से झूम उठते हैं तो कभी निराश होकर हतोत्साहित हो जाते हैं। ठीक उसी तरह की स्थिति एग्जिट पोल के नतीजों को देखकर हो रही है। सत्ता पक्ष पुलकित है और विपक्ष खामोश है। एग्जिट पोल के कारण कई प्रत्याशियों का ब्लड प्रेशर स्थिर नहीं हो पा रहा है। जिनका हाई है,उनका लो हो रहा है और जिनका लो है उनका हाई हो रहा है। दोनों ही बीपी की गोलियां गटक रहे हैं। इनके परिजन इन्हें नसीहत दे रहे हैं कि अकेले टीवी के सामने बैठकर परिणाम मत देखिएगा। कहीं परिणाम के चक्कर में प्राण नहीं निकल जाए। आपके प्राण है तो आपको और हमारे को लोगों का प्रणाम मिल रहा हैं। प्राण नहीं रहेंगे तो कोई प्रणाम भी नहीं करेगा। चुनाव का क्या है? चुनाव तो आते-जाते रहते हैं। लेकिन प्राण चले गए तो फिर कभी लौट कर नहीं आएंगे।
लेकिन आज जब ईवीएम से निकलने वाला परिणाम चौंकाने वाला आएगा। तब एग्जिट पोल वालों पर ठीकरा फोड़ने के बजाय ईवीएम पर ठीकरा फोड़ते नजर आएंगे। जबकि ईवीएम का परिणाम अंतिम सत्य है। मगर पराजित इस सत्य को मानने को तैयार ही नहीं होता है। उसे लगता है कि जरूर ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की गई है। अन्यथा मैं तो बहुत ज्यादा वोटों से जीत रहा था।
यह तो आज ही पता चल जाएगा। नतीजे एग्जिट पोल के मुताबिक होंगे या फिर विपरीत होंगे। मगर होंगे दोनों में से किसी एक ही दृष्टि में। इनके अलावा तीसरे और चौथे दृष्टिकोण से तो होने से रहे। क्योंकि एग्जिट पोल वाले जो ढोल बजा रहे हैं। उस पर पड़ने वाली थाप या तो आज एकदम से तेज हो जाएगी या फिर एकदम से बंद हो जाएगी। यही एग्जिट पोल की नियति है। जिसकी जो नियति होती है,उसका उसी तरह से अंत होता है। --
22 May 2019
13 May 2019
नित्येन्द्र मानव के लिए मानव सेवा ही सर्वोपरि सेवा
थानागाजी
गैंगरेप प्रकरण की पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए सर्व समाज की एकजुटता वाकई में
सराहनीय है। सब यही चाहते हैं कि पीड़ित को
न्याय मिले और आरोपियों को कठोर से कठोर सजा हो और कोताही बरतने
वाले उन सभी पुलिस कर्मियों व अधिकारियों पर ऐसी कार्रवाई हो कि भविष्य में फिर
कभी कोताही का ऐसा उदाहरण सामने नहीं आए।
लेकिन
इस आंदोलन में शुरुआत से लेकर अब तक एक शख्स ऐसा भी है जो कि सुर्खियां न बटोरकर
रोज सुबह अपने निवास स्थान पावटा से 50
किलोमीटर चलकर थानागाजी पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए आ ही नहीं
रहा है,बल्कि सक्रिय भूमिका निभा रहा है। यह कोई अधिकारी
नहीं और ना ही किसी राजनीतिक पार्टी का नेता है। विनम्रता के हिमालय,उदारता के सिंधु, सरलता के सागर, चुम्बकीय आकर्षण वाला व्यक्तित्व, ओजस्वी वक्ता,आमजन की पीड़ा से द्रवित हो उठने वाले एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी व सामाजिक संगठन ‘जीवन बचाओ आंदोलन’ के मुख्य संयोजक नित्येन्द्र मानव
है। ऐसा भी कतई ही नहीं है कि मानव इसी आंदोलन में ही अपनी सक्रिय भूमिका निभा रहा
है। इससे पूर्व भी सामाजिक सरोकारों में अपनी महती भूमिका निभाते आए हैं।
पिछले
18 वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में पूर्णकालिक रूप से सक्रिय हैं । पर्यावरण संरक्षण,जल संरक्षण, सड़क
सुरक्षा,अनुसूचित जाति व जनजाति के संवैधानिक अधिकार,समता मूलक समाज की स्थापना, घुमन्तु समाज के लिए
स्थाई आवास सहित जनहित से जुड़े हुए अनेकोंअनेक मुद्दों को लेकर संघर्ष करते रहते
हैं । इनके द्वारा किए गए,जन आंदोलन,धरना-प्रदर्शन,आमरण अनशन,पर एक दृष्टि डालें तो एक ऐसी तस्वीर
दिखाई देती है जो वाकई में प्रशंसा लायक है।
पिता
बाबूलाल आर्य व माता संतरा देवी के घर में 31
जनवरी 1979 को जन्मे मानव के पुरजोर संघर्ष का
ही नतीजा है कि राज्य में चल रहे हजारों अवैध क्रेशर व खानों को बंद करवाया गया ।
कोटपुतली क्षेत्र में अवैध खनन में लिप्त लोगों पर लगभग 500 करोड़
का जुर्माना लगवाया। जुर्माना राशि जमा नहीं करवाने पर अवैध खनन में लिप्त लोगों
के खाते सीज किये गए,उनकी चल-अचल संपत्ति,जमीन,वाहन,व मकान आदि के बेचान
पर रोक लगाई गई। बहुत से लोगों की खातेदारी जमीन को सरकारी जमीन घोषित किया गया।
इस दौरान खनन माफिया से जुड़ लोगों द्वारा इनको जान से मारने की धमकिया भी दी
गई,मगर यह डर नहीं,बल्कि डटकर मुकाबला किया। राज्य सरकार ने इनकी सुरक्षा के लिए
एक गनमैन पुलिस कर्मी भी लगा रखा । ताकि इनके साथ कोई अनहोनी घटित नहीं हो ।
जिन
गांवों में दबंग लोग दलितों को घोड़ी पर बैठ कर बिंदोरी ,निकासी नहीं निकलने देते थे। ऐसे दर्जनों
गांवों में मानव के प्रयासों से दलित दुल्हों को घोड़ी पर बिठाकर बिंदोरी व निकासी
निकलवाई गई और भविष्य में घोड़ी पर बैठना संभव हो पाया। सच पूछिए तो इनके प्रयासों
से आसपास के क्षेत्र में दलितों पर होने वाले अत्याचारों पर भारी गिरावट आई है ।
हाल
ही में तरुण भारत
पर्यावरण संरक्षण अवार्ड 2019 से सम्मानित हुए,नित्येन्द्र मानव ने उन सैकड़ों घुमन्तु समाज के लोगों को नि:शुल्क रूप
से भूमि आवंटित करवाई हैं। जिनके पास रहने के लिए अपना स्थायी आशियाना नहीं था और
बहुत से लोगों को आवास हेतु अनुदान राशि स्वीकृत करवाई हैं। ताकि घुमंतू समाज के
लोग भी समाज की मुख्यधारा से जुड़ पाए। इनके द्वारा अनेकों बार नि:शुल्क चिकित्सा
शिविर लगाए गए । समाज कल्याण से सम्बंधित विकलांग विधाओं व वृद्धाओं को लेकर राजकीय एजेंसियों को साथ मिलकर अनेकों बार शिविर लगाए गए ।
नित्येन्द्र
मानव का कहना है कि जो हमें यह जो मानव जीवन मिला है । वह मानव के कल्याण में ही
काम नहीं आए तो यह मानव जीवन जीना व्यर्थ है। कभी भी कहीं पर भी किसी भी मानव पर
अगर मानवता को
शर्मसार करने वाला अत्याचार हो रहा है और आप मूकदर्शक हो कर देख रहे हैं तो सबसे
बड़े गुनहगार आप हैं। अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए व्यक्ति को हमेशा तत्पर रहना
चाहिए ।
वैसे
तो मानव अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुके हैं। लेकिन अहम पुरस्कारों की बात की
जाए तो 2006 में जिला प्रशासन द्वारा सम्मानित किया गया। 2010 में नेशनल गोडफ्रे फिलिप्स सोशियल ब्रेवरी अवार्ड मिला। 2011 में दैनिक भास्कर जल स्टार अवार्ड देकर
सम्मानित किया गया। 2018 में बी टी एस गौरव अवार्ड व 2019
में तरुण भारत पर्यावरण संरक्षण अवार्ड से नवाजे जा चुके हैं। नित्येन्द्र
मानव के द्वारा पावटा कस्बे में गत 5 वर्षों से बाबा साहब बी आर अंबेडकर की जयंती के उपलक्ष्य पर भीम भोज का
आयोजन किया जा रहा है । इस दिन सभी समाज के लोग भोजन करते हैं,जो कि सामाजिक समरसता का बहुत बड़ा उदाहरण है। मोहनलाल मौर्य
9 May 2019
आखिर महिलाओं के साथ उत्पीडऩ कब तक?
थानागाजी
गैंगरेप की घटना निर्भया कांड से भी बड़ी है। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख
दिया है। हर कोई स्तब्ध है। घर से बाइक पर सवार होकर निकले दंपत्ति को
घर से थोड़ी दूर आगे ही दुहार चौगान मार्ग पर दो बाइकों
पर सवार पांच युवकों ने उनके आगे बाइक लगाकर पहले तो
उनके साथ मारपीट की बाद में सड़क से दूर रेत के ऊंचे
टीलों के बीच में ले जाकर दोनों के कपड़े उतार दिए। फिर
पति को बंधक बनाकर उसकी आंखों
के सामने ही पत्नी के साथ बारी-बारी से 6 बार बलात्कार करके अपनी दरिंदगी का मोबाइल से वीडियो तक बना लिया। उस समय
दंपत्ति खूब चीखें,पुकारे भी,मगर दरिंदे बहुत ही शातिर थे, उनको ऐसे ऊंचे रेत के
टीलों बीच में ले गए थे, जहां से उनकी चीख-पुकार टीलों से
बाहर निकली नहीं पाई। दरिंदों ने ढाई घंटे तक दरिंदगी की।
26 अप्रैल
की घटना का मामला 2 मई को दर्ज होता है। वो तब,जब पीड़ित 30 अप्रैल को
पुलिस अधीक्षक के समक्ष पेश होते हैं और आपबीती बताते हैं। पुलिस
अधीक्षक के निर्देश पर थानागाजी की पुलिस गुपचुप में मामला तो दर्ज कर लेती है,लेकिन चुनाव का हवाला देकर मामले को 5 दिन तक दबाए
रखती है। यहाँ पर कई सवाल खड़े होते हैं। आखिरकार पुलिस
मामले को 5 दिन तक क्यों दबाए रखी?
तत्परता से अपेक्षित कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इस घटना का चुनाव से क्या संबंध था? क्या किसी राजनीतिक षड्यंत्र के तहत मामले को दबाया गया था? अच्छा पुलिस तो नींद से तब जगी,जब दरिंदों ने अपनी दरिंदगी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था।
जनता के आक्रोश के बाद आनन-फानन में पुलिस की 14 टीम गठित की
जाती हैं। अभी तक तीन आरोपी गिरफ्तार हुए हैं। जबकि मुख्य आरोपी अभी तक पुलिस के हाथ नहीं लगे हैं।
इसी क्षेत्र
में इससे पूर्व भी इस तरह की घटनाएं हो चुकी हैं। इस गैंगरेप के दूसरे दिन ही एक
और गैंगरेप का मामला सामने आया है। यह भी थाना अधिकारी के पास 2
दिन पहले आ गया था। लेकिन इस मामले को भी दबा दिया गया। हालांकि
इसके मुख्य आरोपी को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। यहां पर पुलिस की कार्य
प्रणाली पर प्रश्न उठते हैं और सरकार भी सवालों के घेरे में घिरती है। हालांकि
थानागाजी गैंगरेप मामले में एसपी ने थाना अधिकारी को निलंबित कर दिया और एसपी को
सरकार ने एपीओ कर दिया है। लेकिन क्या थाना अधिकारी को निलंबित और एसपी को एपीओ
करने से पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ेगा।
इस
घटना को लेकर जनता में इतना आक्रोश है कि मुख्य आरोपी अतिशीघ्र गिरफ्तार नहीं किए
गए तो देश में जगह-जगह आंदोलन होने की पूरी आशंका है। लेकिन एक अहम सवाल
खड़ा होता है कि इस तरह गैंगरेप की घटनाएं आखिर कब तक
होती रहेगी। कब तक ऐसे वहशी दरिंदे हमारी बहन-बेटियों को नोचते रहेंगे। आखिर कठोर कानून के बावजूद भी इस तरह के अपराधियों के हौसले बुलंद क्यों हैं? क्यों आए
दिन मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म होते हैं? इन सब के पीछ आखिरकार
जिम्मेदार कौन है? आखिर महिलाओं की सुरक्षा किसके भरोसे हैं।
आज समूचे
देश में ऐसी कोई जगह नहीं बची होगी। जहां छेड़छाड़,लूटपाट,दुष्कर्म व हत्या की घटना घटित नहीं हुई हो।
विकृत प्रवृत्ति के भेडि़ए अपनी हवस पूरी करने के लिए,मासूमों
को भी नहीं छोड़ते। शायद ही ऐसा कोई दिन होगा। जिस दिन देश के किसी कोने से यौन
हिंसा की खबरें अखबारों में नहीं आई हो। अखबारों में तो वे ही
हेडलाइन होती है। जिनका मामला पुलिस में दर्ज हो जाता है या फिर सोशल मीडिया पर वायरल हो जाती हैं। महिलाओं से जुड़ी बहुत सी जघन्य घटनाएं तो सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण
उजागर ही नहीं हो पाती है। परिजन मामले को इसलिए दबा लेते हैं कि समाज में हमारी
प्रतिष्ठा पर प्रश्नवाचक नहीं लग जाए। या फिर समाज के रसूखदार कोर्ट कचहरी में जाने से पहले ही मामले को दबा देते हैं। कई बार बलात्कार जैसी वीभत्स घटनाएं अपराधियों के भय के कारण भी उजागर नहीं हो पाती है। क्योंकि अपराधी
अपराध करके इस तरह से डराते धमकाते हैं कि पीड़ित सहम जाते हैं।
सच पूछिए तो आज महिलाओं का घर से निकलना
दुश्वर हो गया है। स्वयं या घर के
कामकाज के लिए,महिलाएं घर बाहर
निकलती ही हैं पर, महिलाओं को घर से बाहर निकलते ही,यही भय रहता हैं। कहीं उनके साथ कोई विकृत अनहोनी नहीं हो जाएं। यह खौफ तब
तक बना रहता है। जब तक वे घर वापस नहीं आ जाएं। परिजन भी चिंतित रहते हैं। अपनी
बेटी,बहु सही सलामत घर पहुंच जाती हैं। तब जाकर परिजन राहत
की सांस लेते हैं। अगले दिन फिर यह प्रक्रिया रहती है। महिलाओं का अकेले बाहर
निकलना किसी खतरे से कम नहीं। वहशी इसी फिराक में रहते हैं। वे कभी भी और कहीं भी
हमला कर सकते हैं। रात सुरक्षित है नहीं। लेकिन दिन का भी कोई भरोसा नहीं।
यदि
राजस्थान में अपराधों की घटनाओं के आंकड़ो पर बात की जाए तो राष्ट्रीय अपराध
रिकॉर्ड ब्यूरो की वर्ष 2016 की रिपोर्ट के
अनुसार राजस्थान में दुष्कर्म के 3656 मामले दर्ज किए गए। इन
आंकड़ों के साथ राजस्थान का स्थान देश में चौथे नंबर पर रहा। यदि नाबालिक बच्चियों
के यौन शोषण के आंकड़ों पर प्रकाश डाला जाए तो यह आंकड़े चौंका देने वाले हैं। वर्ष 2015
से 2017 के बीच 3 वर्षों
में राजस्थान में 3897 बच्चियों के साथ रेप की वारदातें
हुईं। इन आंकड़ों के मान से प्रतिदिन तीन नाबालिक बच्चियां यौन अपराध की पीड़ा को सह
रहीं हैं। बलात्कार के उम्रवार उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक करीब चालीस प्रतिशत
बच्चियां 14 साल तक की उम्र में बलात्कार का दंश झेल रही
हैं। वहीं 1877 घटनाएं शारीरिक शोषण की भी दर्ज हुई हैं। 18
फीसदी मामलें ऐसे भी हैं जिनमें पुलिस अपराधियों को न पकड़ पाने के
कारण चालान पेश ही नहीं कर पाई,जिसके चलते वे अपराध के बाद
भी मुक्त हैं। समाज में महिलाओं के साथ अपराध होना चिंता का विषय है लेकिन अपराध
होने के पश्चात पुलिस की कार्यप्रणाली तथा सजा मिलने में देरी उससे भी बड़ी चिंता
की बात हैं। जब तक पुलिस की कार्यप्रणाली में तेजी नहीं आएगी अपराधियों में कानून
व्यवस्था का भय नहीं बन पाएगा, आवश्यकता तो कानूनी प्रक्रिया
में तेजी की भी हैं।
प्रत्येक चुनाव में महिला
सुरक्षा को लेकर बड़ी-बड़ी बातें
की जाती है। मगर वे बातें चुनावी शोरगुल में ही घुल मिलकर रह जाती हैं। सरकार
महिला सुरक्षा की मुनादी तो खूब करती है। लेकिन जब किसी महिला पर अत्याचार होता है
तो चुप्पी साध लेती है। देश में कानून हैं। मगर कानून के रखवाले गहरी नींद में सोए
रहते हैं।
दिल्ली
के निर्भया कांड के बाद उम्मीद की किरण निकली थी। लेकिन वह भी धीरे-धीरे विलुप्त
हो गई। सरकार महिलाओं के संदर्भ में कानून बनाती रहती हैं। लेकिन जिस कानून की
महती आवश्कता है। शायद वह आज तक बना ही नहीं। अगर देश में सख्त कानूनी प्रक्रिया
होती तो निर्भया कांड ही नहीं होता। अपराधियों का दुस्साहस प्रतिदिन बढ़ता जा रहा।
इस दुस्साहस की प्रवृत्ति को रोकना ही होगा। आखिरकार महिलाएं ही अत्याचार की शिकार
क्यों होती हैं? जिस पुरूष प्रधान की
जन्म जननी नारी है,वहीं पुरूष नारी के साथ उत्पीडऩ क्यों
करता है?
महिला
सशक्तिकरण की पहल तब सार्थक होगी। जब देश में महिलाओं पर किसी भी तरह का उत्पीडऩ
नहीं होगा। नारी के पिछे चलने वाला अपराध बोध। पीछा करना छोड़ देगा। तब सही मायने
में महिला सशक्तिकरण चरितार्थ होगी। दकियानूसी जंजीरों से तो महिलाएं स्वतंत्र हो
गई। मगर पुरूषों की संशय दृष्टि से स्वतंत्र नहीं हुई। समाज के कई ठेकेदार महिलाओं के पहनावे पर किचड़
उछालते हैं। पहनावे को जिम्मेदार ठहराना कतई उचित नहीं है। प्राचीन काल में तो
कपड़े ही नहीं थे। पेड़ पत्तों की छाल बांधकर अपने शरीर की हिफाजत करती थी। तब
महिलाएं सुरक्षित थी। आज सुरक्षित क्यों नहीं? यह बुनियादी
सवाल आज भी कायम है। इस तकनीकी युग में ही नारी सुरक्षित नहीं,फिर कब होंगी?अब वक्त आ गया है नारी की सुरक्षा करने
का। नारी भावनात्मक पहलुओं की कोमल अभिव्यक्ति है, जिसमें
उसका स्वतंत्र भाव समर्पित रूप से समाया हुआ है।
-
मोहनलाल
मौर्य
7 May 2019
बड़बोले बयान और पंचवर्षीय भड़ास
देखिए,जिस तरह से थर्मामीटर में पारा चढ़ता है तो पसीना छूटना स्वाभाविक है, उसी तरह से चुनावी मौसम में नेताओं की जुबान का फिसलना भी नैसर्गिक हैं। यही तो उनका सीजन
है,जिसमें उनके बड़बोले बोल बिना भाव-ताव किए ही थोक के भाव
में आसानी से बिक जाते हैं। यह तो समय होता है अपनी पंचवर्षीय भड़ास निकालने का और
विरोधी पर कीचड़ उछालने का। अगर ऐसे सुनहरे अवसर में
भी बेतुके बयान नहीं दिया तो नेता अपने नेता होने पर धिक्कार है,समझता है।
बेतुके बयान देने वाले नेताओं का मानना है कि विवादित बयान देने से ही तो पहचान बनती है। पहचान बनती है,तब लोकप्रियता तो अपने आप ही अर्जित हो जाती हैं। लोकप्रिय होने के पश्चात
वोटर नेताजी के चंगुल में फंसे बिना रह जाए,ऐसा संभवतःसंभव नहीं। यह कोई जरूरी नहीं है कि
अच्छा भाषण ही चुनावी वैतरणी पार करवा सकता है। कई बार विवादित बयान भी सत्ता की
कमान दिलवा देता है।
विवादित बयान इतिहास के पन्नों को पलटकर देखेंगे तो अतीत में ऐसे बहुत से नेताओं का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा
हुआ मिल जाएगा। जिन्होंने चुनावी दौर में बेतुके बयानों की बाढ़ ला दी थी और उसके
बावजूद भी भारी बहुमत से जीते हैं। आज के नेता अपने पूर्वजों के पदचिह्नों पर न चलकर,आधुनिक
राजनीति के पन्नों पर एक ऐसा इतिहास लिखने में लगे हुए
हैं,जो कि भारत के लोकतंत्र में अब से पहले कभी नहीं लिखा गया हो। जिसके लिए,ऐसे-ऐसे ऊटपटांग शब्द ईजाद कर रहे हैं कि
भविष्य में अपने देश के ही नहीं,बल्कि अन्य लोकतांत्रिक
देशों के जनप्रतिनिधि भी चुनावी समय में अपना राजनीतिक कैरियर संवारने के लिए इन ऊटपटांग शब्दों का उपयोग करते नजर आएंगे।
जब वे ऐसे शब्दों का प्रयोग करेंगे,तो निश्चित
तौर पर राजनीति के मायने बदल जाएंगे। आरोप-प्रत्यारोप की जगह ऊटपटांग शब्दों के जरिए एक-दूसरे पर छींटाकशी करेंगे। मुद्दों पर वार्ता नहीं करेंगे,बल्कि मुद्दे पर मुद्दईगिरी
करते फिरेंगे। असली मुद्दे को छोड़कर बेमतलब के मुद्दों
पर डिबेट करते नजर आएंगे। मुर्दे मुद्दे को भी जिंदा कर देंगे और जिंदे को मुर्दा
कर देंगे।
हो सकता है कि भविष्य में राजनीति विषय के शोधार्थियों के लिए शोध
का विषय बेतुके बयानों की बयानबाजी दिलचस्प रहे। जो शोधार्थी इस विषय पर शोध करेगा,संभवतः उसे ज्यादा
परिश्रम नहीं करना पड़ेगा। क्योंकि उसे अपने आजू-बाजू में ही विषय से संबंधित
पर्याप्त सामग्री मिल जाएगी। यथार्थ ऐसे नेता मिल
जाएंगे,जो जाने ही विवादित बयानों की वजह से जाते हैं। इस विषय पर गूगल की शरण में जाकर
उससे पूछेंगे,तो वह भी ऐसे-ऐसे बयानवीरों की जीवनी बता देगा,जिनके सियासी तरकश से
बेतुके बयानों के बान ही निकलते हैं।
5 May 2019
नेताजी के पोस्टर का पोस्टमार्टम
एक दीवार पर एक
नेताजी का बड़ा-सा पोस्टर चिपका हुआ था। जिस पर लिखा था-युवा दिलों की धड़कन, योग्य, कर्मठ, शिक्षित, जुझारू, जागरूक, ईमानदार, सं घर्षशील,मिलनसार, लोकप्रिय
व प्रमुख समाजसेवी भाई नेतराम को अपना अमूल्य वोट देकर भारी मतों से विजय बनाए। एकाएक एक बकरी आई और युवा दिलों की धड़कन लिखे
हुए भाग को फाड़कर चबाने लगी। यह देख एक कार्यकर्ता
उसके पीछे डंडा लेकर भागा।
घूम-फिरकर थोड़ी देर बाद
बकरी फिर से चली आई और पोस्टर को चबाने लगी। योग्य,कर्मठ,शिक्षित
को तो चट कर गई। थोड़ी देर बाद जुझारू,जागरूक,ईमानदार पोस्टर के नीचे बह रही नाली में जा
गिरा, जिस पर दो कीड़ों बीच में युद्ध छिड़ गया। एक ने जुझारू तो दूसरे ने जागरूक
को हथिया लिया। पर ईमानदारी दोनों के ही हाथ नहीं लगी।
उधर बकरी अपनी भूख
मिटाने के लिए संघर्ष करती हुई पोस्टर के संघर्षशील तक पहुँची ही थी कि पीछे से
दूसरी बकरी ने आकर धकेल दिया। बाद में दोनों बकरी मिलनसार को तो मिलकर खा गई,लेकिन
लोकप्रिय पर लड़ने लगी। लोकप्रिय की हालत ऐसी हो गई कि न तो पोस्टर
का रहा और नहीं मुँह का निवाला बना। प्रमुख समाजसेवी की
टाँग पकड़कर लटकता रह गया और प्रमुख समाजसेवी लोकप्रिय की वजह से फड़फड़ा रहा है,
जो कि कभी भी नीचे गिर सकता है।
पोस्टर फाड़ने के
पीछे बकरी का कोई उद्देश्य नहीं है। बस भूख मिटाने के लिए,पोस्टर पर
आक्रमण किया था। वैसे भी पोस्टर सार्वजनिक दीवार पर चिपका था,जिसे फाड़कर बकरी ने आचार संहिता का पालना किया था।
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