मैं अपने पड़ोसी से उतना
ही दुखी हूँ। जितना की आम आदमी बढ़ती महँगाई से है। गरीब गरीबी से है। बेरोजगार बेरोजगारी से है।
उसकी रोज-रोज की उधारी से मुझे ब्लड प्रेशर की बीमारी हो गई है। वह इतना मीठा
बोलता है,जैसे कि उसकी वाणी में मिश्री घुली हुई हो। उसके मीठे बोल सुनकर कहीं मुझे
शुगर नहीं हो जाए। इस डर से वह जो भी चीज लेने आता हैं,मैं तत्काल दे देता हूँ। लेकिन वह तत्काल को
आपातकाल में भी वापस नहीं करता है। कहता है कि मालामाल के क्या मांगे आपातकाल। उसके मुँह से मालामाल शब्द सुनकर मेरे मुँह से भी निकल जाता है कि तेरे
मुँह में घी शक्कर। घी शक्कर का नाम सुनते ही उसके मुँह में पानी आ जाता है और वह
उसी वक्त घी शक्कर मांग लेता है।
मौके पर चौका मारने में
कभी नहीं चूकता है। मौके की तो वाइड गेंद को भी नहीं छोड़ता है। उस पर भी ऐसे
घुमाकर मारता है कि गेंद सीधी मौके की बाउंड्री पर जाकर गिरती है। उस पर गुस्सा तो बहुत आता है। लेकिन वह मुझे
गुस्सा थूकने वाला पान खिला देता है। जिसको खाने से
मेरा सातवें आसमान पर चढ़ा गुस्सा भी उतर आता है और चेहरा चमक जाता है। चेहरे पर चमक देखकर वह नमक तक माँग लेता है। उसे माँगने में कतई शर्म नहीं
आती है। शर्म को तो उसने
खूँटी के टाँग रखा है। आएगी
कहाँ से। बेझिझक आता है और जो
चाहिए वह लिया जाता है। कोई मना कर दे तो मनुहार करके
उसे खुश कर देता है। फिर वह खुशहाली में थाली भरकर देता है। खाली हाथ तो कभी नहीं
लौटा है। बच्चों के गाल सहलाकर
दाल तो इतनी ले जा चुका है,चुकाए तो
उसके बाल तक बिक जाए। गृहस्थी की सरकार घाटे में चल रही
है,ऐसा कहकर आटा तो आए दिन लेने आ जाता है। डाटा की तो पूछिए
मत। हॉटस्पॉट ऑन करने के लिए सुबह चार बजे से ही मिस कॉल पर मिस कॉल देने लगता हैं।
आदत से इतना लाचार हैं
कि आचार तक
नहीं छोड़ता है और विचार-विमर्श इस तरह करता है,जैसे कि बहुत
बड़ा विचारक हो। जबकि विचारक
कम प्रचारक ज्यादा है। क्योंकि वह गोपनीय बात का भी प्रचार-प्रसार करे बिना नहीं रहता है। सच पूछिए तो,मेरे तो किसी भी काम
के लायक नहीं है, फिर भी मांगने पर उसे अपनी बाइक देनी
पड़ती है। नहीं दूं तो भय रहता है,पड़ोसी धर्म संकट में नहीं
पड़ जाए। क्योंकि मैं धर्म के मामले में बहुत धार्मिक हूँ। वह इसी का फायदा उठाता
है। जामन के लिए भी आधी रात में आकर दरवाजा खटखटा देता है। गहरी नींद
में सोया हो तो भी जगा देता है। वक्त की नजाकत देखकर भाषा शैली का प्रयोग करता है। डिस्टर्ब करके कहता है कि डिस्टर्ब के लिए
क्षमा चाहता हूँ। दरअसल क्या
है कि जावन को बिल्ली चाट गई। भले ही रखना भूल ही गया हो,लेकिन कहेगा हमेशा यही कि बिल्ली चाट गई।
इतना चतुर चालाक है कि
लोमड़ी तक को अपनी गिरफ्त में कर लेता है। मुझे ही देख लो! मेरी उँगली पकड़ता-पकड़ता
पहुँचा पकड़ लिया है। मुझे डर है कि गर्दन नहीं पकड़
ले। किसी दिन गर्दन पकड़ ली तो क्या होगा? जो माँगेगा
वही देना पड़ेगा। नहीं दिया तो जान से हाथ धोना पड़ेगा। लेकिन मेरी पत्नी को पूरा विश्वास है,वह विश्वासघात
तो कभी नहीं करेगा। उसे क्या मालूम नहीं,तुमने कभी उसको आलू के लिए भी मना नहीं किया है। ईमेल बाद में किया है,पहले उसे तेल दिया है। तुम्हें मारकर वह अपनी उधार की दुकान क्यों बंद करेगा? बल्कि वह तो
तुम्हारी लंबी उम्र की दुआ करता होगा। वह और दुआ। कल ही
मना कर दूं तो स्वाहा कर देगा।
मेरा यह पड़ोसी आलू
प्याज ही नहीं, बल्कि
ब्याज के नाम पर रुपया तक ले जाता है। लेकिन जब देने आता है तो मूल रकम तो अदा कर
देता है, पर ब्याज जीम जाता
है। मांगता हूँ तो बहानेबाजी कर जाता है। यह बहानेबाजी में भी अव्वल है। ऐसा बहाना बनाता है कि यकीन नहीं हो तो भी
यकीन करना पड़ता है। कभी खुद तो कभी बीबी-बच्चों को
बीमार कर देता है। खाँसी जुकाम को भी गंभीर बीमारी का रुप देकर घर बैठे को आईसीयू में भर्ती कर देता है। झूठ
की पराकाष्ठा तक को लाँघने में कतई नहीं झिझकता है। आँख
मूंदकर छलांग लगा देता है। क्योंकि यह झूठ, पाखंड जैसी कलाओं में कलाकार आदमी है। सच कहूं तो यह पड़ोसी नहीं एक बला है, जो कि
टालने से भी नहीं टलती है।
मेरे इस पड़ोसी की एक अहम बात तो बताना भूल ही
गया। इसका एक आदर्श वाक्य हैं,जिसका
उच्चारण करना कभी नहीं भूलता है। जब भी कुछ लेकर जाएगा
तो अपना आदर्श वाक्य 'पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है' अवश्य बोलकर जाएगा। लेकिन मेरा यह पड़ोसी मेरे
तो आज तक किसी काम नहीं आया है। सिर्फ नाम का पड़ोसी है। मेरा तो छोटा सा भी काम
हो तो आनाकानी कर जाता है। खुद का काम हो तो थूक के आँसू लगाकर करवा लेता है। इससे कैसे
पीछा छुड़ाऊ। समझ में ही नहीं आता है। किसी से राय-मशवरा करता हूँ तो वो भी वहीं
सलाह देते हैं,जो कि उसके आदर्श वाक्य में निहित है। बोलते
हैं कि आप भी कैसी बात करते हो? पड़ोसी के प्रीति मन
में जो भ्रम है,उसे निकाल दो। एक पड़ोसी ही पड़ोसी के काम आता है। यह सुनकर मैं
निरुत्तर हो जाता हूँ।
No comments:
Post a Comment