31 May 2017

उफ! गरमी के तीखे तेवर

भाई साहब! गरमी ने अपने तीखे तेवर दिखाना शुरू कर दिया है। अरे,भाई! मई चल रही है। जून आने को आतुर है। इन दिनों में ही गरमी अपने तेवर नहीं दिखाएंगी तो फिर कब दिखाएंगी। जाड़े के दिनों में तो दिखाने से रही। मई-जून ही तो इसके प्रिय माह हैं और इन महीनों में ही इसका मिजाज बिगड़ जाता है। मिजाज बिगड़ते ही यह कुपित हो उठती है। जब यह कुपित होती है,तो अपने  सीधे तेवर बदलकर तीखे कर लेती हैं। इसके तीखे तेवर देखकर इससे पंखा,कूलर,एसी,भी डरने लगती हैं। डरके मारे यह सब ठंडी हवा देते-देते एकदम से गर्म हवा देने लगते हैं। जब यह एकदम से गर्म हवा देने लगते हैं,तो हमें इनमें कुछ ना कुछ मिस्टेक नजर आने लगती है। जबकि मुख्य वजह मिस्टेक न होकर गरमी के तीखे तेवरों का प्रहार होता है।
भाई साहब! गरमी अपने तेवर अपने-आप नहीं बदलती है। सूर्यदेव गगन से इत्ती तपन धरा पर भेज देता है। जिससे औसत तापमान से तापमान चालीस डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर पहुंच जाता है। तापमान चालीस डिग्री पार जाते ही गरमी बेकाबू हो जाती है। बेकाबू होने पर इसके सामने सब जतन फेल है। फिर तो नींबू पानी,जूस,से भी राहत नहीं मिलती। इनदिनों तो भाई साहब! उफ! गरमी कब अपनी त्यौरियां बदल ले। कहना मुश्किल है। अपने रोजमर्रा के कार्य इसके तेवर बदलने से पूर्व ही करले वहीं फायदेमंद है। अन्यथा यह तो किसी को भी नहीं बख्शती। इसकी दृष्टि में सब समतुल्य हैं। किसी से कोई भेदभाव नहीं। नहीं परोपकार की भावना। इससे बचने के लिए तो खुद को ही जुगत करनी पड़ती है।
तीव्रगति से चलने वाली गरमी की बहिन ‘लू’। गरमी से भी खतरनाक है। जो ‘लू’ की चपेट में आ गया। उसे अपनी नानी की याद बिना याद किए ही आ जाती है। कई बार ‘लू’  ग्रस्त स्वर्गवासी होकर नानी के पास पहुंच जाता है। नवासे को इस तरह से एकाएक देखकर नानी भी अवाक रह जाती है। नवासे से नानी इहलोक से परलोक आने की वजह पूछती है। नवासा ‘लू’ का हवाला देता है। यह सुनकर नानी को भी अपनी नानी याद आ जाती है। ‘लू’  से तो खुद यमराज भी डरता हैं। वह भी अपने दूतों को ‘लू’ से बचने की हिदायत देकर इहलोक भेजता हैं। क्योंकि ‘लू’ का मारा दूत भी बिस्तर पकड़ लेता है।
भाई साहब! आपको क्या बताओं? गरमी के तीखे तेवर देखकर तो हैंडपम्प मुंह लटकाए खड़े हैं। कुआं,बावड़ी,जोखड़ सूखे पड़े हैं। बेजुबान पशु-पक्षी बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। पर मेघ नहीं बरस रहे। भाई साहब! गरमी के तीखे तेवरों से तो बचना। किंतु पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था अवश्य करना। इसके तीखे तेवर दोपहर में तो ओर भी तीखे हो जाते हैं। जिन्हें देखकर सड़के सूनी पड़ जाती हैं। बाजार में सन्नाटा पसर जाता है। अपने आप ही देह से पसीनो छूटने लगता है। पर भाई साहब! उस मजदूर का क्या होगा? जो भयंकर गरमी में भी काम करता है। यह सुनकर भाई साहब तो निरुत्तर हो गए। लेकिन आप इसे मजदूर की मजबूरी कहे या फिर पेट की भूख। यह तो हरेक मौसम में काम करता है और इसकी देह से हरके मौसम,ऋतु में पसीना निकलता रहता है। मजदूर तो अपना पेट पसीने की कमाई से ही भरता है। मजदूर की तरह ही किसान है और यहीं हाल गरीब का है। यहीं लोग हैं,जो कैसे भी करके। गरमी क्या? गरमी के बाप के भी तीखे तेवर सहन करते हैं। क्या करे? भाई साहब मजबूर भी है और मजदूर भी है। गरमी के तीखे तेवर भी अमीर आदमी ही सहन नहीं कर पाता। अमीर पैसों की गरमी तो सहन कर लेता है।

भाई साहब! गरमी आती ही क्‍यूं है? वसन्‍त ऋतु के उपरांत वर्षा ऋतु ही आ जाए तो कितना अच्‍छा रहे। गरमी में तपन से झुलसने वाले पेड-पौधे प्रफुल्लित हो जाए। सड़क से पिघलने वाला तारकोल बंद हो जाए। गरमी में कुत्‍तों की जीभ बाहर निकल आती हैं उसका निकल बंद हो जाए। छःकी छः ऋतु अपने ऋतुकाल में आती हैं। गरमी भी आती तो अपने ही ऋतु काल में है। जितना बैचेन गरमी ऋतु करती है उतना कोई सी ऋतु नहीं करती। इसके तो तेवरों से ही डर लगता है। हाथ पांव उठा ले तो शामत आ जाए। इसके तीखे तेवर तो इन्द्रदेव ही नीचे कर सकता है। उसके आगे तो यह टिकती ही नहीं। पर भाई साहब! इन्द्रदेव तो आपके और हमारे बुलावे से तो आने से रहे। उनका तो जब मन करेगा। तब ही आएंगे। तब तक तो गरमी हाल-बेहाल कर देगी। 

30 May 2017

सूर्यदेव के साथ लू का कोहराम

उफ ! क्‍या गरमी है। बेचैनी कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। सूर्यदेव गगन से इत्‍ती तपन बरसा रहा है कि औसत तापमान से तापमान चालीस डिग्री सेल्सियस से भी ऊपर पहुंच रहा है। पुराने रिकॉड़ टूटकर गिर रहे है और नये स्‍थापित हो रहे है। गरमी का जलवा है। वैसे इस मौसम में गरमी नहीं तो क्‍या सर्दी होगी? हर साल होती है। इस साल भी हो रही है,तो क्‍या नई बात हो गई। लेकिन बार-बार कहा जा रहा है,कूलर, गर्म हवा फेंक रहे हैं
तीव्रगति से चलने वाली गरमी की बहिन ‘लू’। गरमी से भी खतरनाक है। जो ‘लू’ की चपेट में आ गया। उसे अपनी नानी की याद बिना याद किए ही आ जाती है। कई बार ‘लू’  ग्रस्त नानी को याद करते-करते स्वर्गवासी नानी के पास पहुंच जाता है। नवासे को इस तरह से एकाएक देखकर नानी भी अवाक रह जाती है। नवासे से नानी इहलोक से परलोक आने की वजह पूछती है। नवासा ‘लू’ का हवाला देता है। यह सुनकर नानी को भी अपनी नानी याद आ जाती है। ‘लू’  से तो खुद यमराज भी डरता हैं। वह भी अपने दूतों को ‘लू’ से बचने की हिदायत देकर इहलोक भेजता हैं। कहता है, थोड़ी थोड़ी देर बाद पानी पीते रहना, खाली पेट बाहर मत निकलना। खाली पेट वाले को लू सबसे पहले लगती है। संभलकर काम करना चाहिए।‘लू’ का मारा दूत भी बिस्तर पकड़ लेता है।

भाई साहब! आपको क्या बताओं? गरमी तो गरमी सूर्यदेव के तीखे तेवर देखकर तो हैंडपम्प मुंह लटकाए खड़े हैं। कुआं,बावड़ी,जोखड़ सूखे पड़े हैं। बेजुबान पशु-पक्षी बूंद-बूंद के लिए तरस रहे हैं। पर मेघ नहीं बरस रहे। भाई साहब! सूर्यदेव के तीखे तेवरों से तो बचना। किंतु पशु-पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था अवश्य करना। इसके तीखे तेवर दोपहर में तो ओर भी तीखे हो जाते हैं। जिन्हें देखकर सड़के सूनी पड़ जाती हैं। बाजार में सन्नाटा पसर जाता है। अपने आप ही देह से पसीनो छूटने लगता है। पर भाई साहब! उस मजदूर का क्या होगा? जो भयंकर गरमी में भी काम करता है। यह सुनकर भाई साहब तो निरुत्तर हो गए। लेकिन आप इसे मजदूर की मजबूरी कहे या फिर पेट की भूख। यह तो हरेक मौसम में काम करता है और इसकी देह से हरके मौसम,ऋतु में पसीना निकलता रहता है। मजदूर तो अपना पेट पसीने की कमाई से ही भरता है। मजदूर की तरह ही किसान है और यहीं हाल गरीब का है।
भाई साहब! गरमी आती ही क्‍यूं है? वसन्‍त ऋतु के उपरांत वर्षा ऋतु ही आ जाए तो कितना अच्‍छा रहे। सूर्यदेव की तपन से झुलसने वाले पेड-पौधे प्रफुल्लित हो जाए। सड़क से पिघलने वाला तारकोल बंद हो जाए। गरमी में कुत्‍तों की जीभ बाहर निकल आती हैं उसका निकल बंद हो जाए। यह सूर्यदेव भी ना गरमी ऋतु में अपनी त्‍यौरियां चढ़ाता है ओर ऋतुओं से तो यह भी डरता है। गरमी याद दिलाती है,तुम जितना प्रकृति के साथ छेड़छाड़ करोगें,मैं तुम्‍हें उतना ही सताऊंगी। बंद करो ये विकास के नाम पर विनाश।

22 May 2017

दो फीसदी का मलाल

बच्चों के परिणाम आने शुरू हो गए हैं। अकों की मारा-मारी मची हुई हैं। अकों का अंक गणित हिचकोले खा रहा है। अंकों की घटत-बढ़त हो रही है। इस घटत-बढ़त के अनुरूप माता-पिता के चेहरे खिले हुए हैं। खिलता हुआ चेहरा उसे चिढ़ा रहा,जिसके बच्चे की दो प्रतिशत कम रही,अपने बच्चे से। खिलता हुआ चेहरा भी खुलकर नहीं खिल रहा। उसके बच्चे की पड़ोसी के बच्चे से दो प्रतिशत कम रही। पड़ोसी प्रफुल्लित तो है,मगर चिंतित भी है। उसका बेटा कक्षा में टॉपर आया है,पर मेरिट में न आ सका। बेटा दो प्रतिशत से मेरिट में आने से महरूम हो गया। यह मलाल उन माता-पिता को चिंतित कर रहा है। जिनके लाल अपने अड़ोसी-पड़ोसी के लाल से दो प्रतिशत तले दब गए।
बच्चों के माता-पिता घटत-बढ़त के हिसाब-किताब में लगे हुए हैं। अपने के कैसे घटे? उसके बच्चे के कैसे बढ़े? एक-एक प्रतिशत पर मंथन जारी है। बार-बार मार्कशीट को देखा जा रहा है। विषय वार बच्चे की कमजोरी ईजाद कर रहे हैं। किस विषय में बच्चे के अंक कम है। जिस विषय में अंक कम है। उस पर शोध किया जा रहा है। उस विषय का तो ट्यूशन भी करवाया था। उसके बावजूद भी अंक कम कैसे आएइस संदर्भ में बच्चे से सवाल-जवाब किया जा रहा है। उस पर हुआ व्यय खर्च उसे गिनाया जा रहा है। बच्चा निरूत्तर है। वह सोच नहीं पा रहा है कि वह जवाब भी दे, तो क्‍या दे? उसके जवाब से उसके मां-बाप कितना संतुष्‍ट होंगे। माता-पिता उसकी नजाकत को भाप नहीं पा रहे है।

प्रतिस्पर्धा की दौड़ में बच्चा कहीं फिसल गया होगा। क्योंकि इस उम्र में बच्चे फिसल भी जाते हैं। यह तो सामान्‍य की बात है। अनोखा क्‍या है इसमे। आंखे चार हुई और बच्चा फिसला। आंखे चार नहीं हुई,तो बच्चा कहीं ओर फिसल गया होगा। इंटरनेट का युग है। मोबाइल,लैपटॉप पर उंगलियां ज्यादा चल गई होंगी। परीक्षा में लेखन स्पीड़ धीमी रही हो होगी। स्मरण शक्ति जाम में फस गई होगी। जब तक जाम खुला,परीक्षा का समय पूर्ण हो गया होगा। प्रतिस्पर्धा के मैदान में मेहनत की दौड़ करते वक्त पैरे तले कुछ आ गया होगा। जिससे पैर फिसल गया होगा। फिसल कर गिरता है,तो एकाध प्रतिशत की चोट या खरोंच आयी जाती है। शायद इसलिए,दो प्रतिशत दूर जाकर गिरा हो।

ऐसी स्थिति में बच्चे को मरहम पट्टी की जरूरत होती है। उसे पुचकार की जरूरत होती है। लेकिन हम चोट व खरोंच की अनदेखी कर,गिरने की वजह पूछते है। फिर बच्चे अटपटे जवाब देते हैं। चिंटू से दो प्रतिशत कम है,तो क्या हुआबिट्टू से तो दो प्रतिशत ज्यादा है। वह तो क्या है कि चिंटू परीक्षा में नकल-वकल कर दो प्रतिशत ज्यादा ले आया। उसकी क्या बिसात,जो मेरे से दो अंक ज्‍यादा ले आए। जो भी हो या हुआ हो। माता-पिता को इसकी परवाह नहीं। उन्हें,तो दो प्रतिशत का मलाल है। वे दो प्रतिशत कम आना अपनी तौहीन समझते हैं।

19 May 2017

घड़ी वाले का बच्चा 95.60 अंक लाया

सच्ची लगन से मेहनत की जाए तो सफलता को भी मोहताज होना पड़ता है। फिर चाहे कैसी भी मुसीबत क्यों ना आ जाए। सफलता स्थापित होकर ही रहती है। उक्त उक्ति को चरितार्थ किया है। अलवर जिले के थानागाजी तहसील के डहरा गांव के कमलेश खटुम्बरिया पुत्र श्री रामवतार खटुम्बरिया ने। इसने राजस्थान बोर्ड अजमेर के आए 12 वीं विज्ञान वर्ग के परिणाम में 95.60 अंक अर्जित किए है। कमलेश ने बताया कि मैं छ:-सात घंटे नियमित अध्ययन करता था। एक बार पढ़ने बैठ जाता था तो तीन-चार घंटों से पहले नहीं उठता था। मैं और मेरी बहिन व मेरे ताऊजी का लड़का,हम तीनों एक ही कमरे में अध्ययन करते थे। पढ़ाई के दौरान कोई किसी से वार्तालाप नहीं करता था। किसी को कुछ पूछना होता था तब ही मुंह खोलते थे। हम तीनों भाई-बहिन थानागाजी में स्थिति ज्योति एकेडमी में पढ़ते थे।
कैसे होता था दिनचर्या की आविर्भाव
कमलेश ने बताया कि हम तीनों भाई-बहिन सुबह चार बजे उठते थे। उसके बाद नित्‍य कार्य करके थोड़ी बहुत देर व्‍यायाम करते थे। उसके बाद नाश्‍ता करके पढ़ने बैठ जाते थे। स्‍कूल से लौटकर शाम को स्‍कूल का होम वर्क करते थे। रात को दस बजे तक पढ़ते थे। परीक्षा के दौरान देर रात तक पढ़ाई करते थे।
ताऊजी के घर पढ़ाई करता था

कमलेश विराटनगर में स्थिति अपने ताऊजी हरिराम रैगर के घर पर रहकर पढ़ाई करता था। आपको बताते दे कि कमलेश उसी पुष्पराज भारती का चचेरा भाई है,जिसने विज्ञान वर्ग में 98.00 प्रतिशत अंक अर्जित किए है। कमलेश की बहिन प्रिती खटुम्बरियां भी इनके साथ ही पढ़ती थी। उसने भी 12 वीं विज्ञान वर्ग में 84 प्रतिशत अंक अर्जित किए है। कमलेश के ताऊजी हरिराम ने बताया कि तीनों बच्चे शुरू से पढ़ने में अव्वल रहे हैं।
किक्रेट व पेंटिग का शौक
कमलेश को पढ़ाई के अलावा किक्रेट खेलना और पेंटिग बनाना अच्छा लगता है। किंतु पहले पढ़ाई उसके उपरांत समय मिलता था तो कभी-कभार पेंटिग या किक्रेट खेल लेते थे। अन्यथा फोक्स पढ़ाई पर ही होता था। कमलेश ने बताया कि हम तीनों भाई-बहिनों का एक ही मकसद था। उच्च अंक अर्जित करना। जिसमें हम कामयाब ही हुए।
पिता की घड़ी दुकान
कमलेश के पिताजी की विराटनगर कस्बे में घड़ी की दुकान है। इसी से उनके घर की आजीविका चलती है। मां कविता देवी ग्रहणी है। कमलेश के पिताजी ने बताया कि कमलेश शुरू से पढ़ाई में अव्वल रहा है। उसने दसवीं में भी 93.33 अर्जित किए थे। और इस बार उसने हिंदी में 99 में अंग्रेजी में 96 फिजिक्‍स में,90 केमिस्‍ट्री में 97, मैथ्‍स में 96 एवं कुल 500 में से 478 अंक अर्जित कर 95.60 प्रतिशत लाए है।
                                                भविष्य में आईएएस बनना

पुष्पराज भारती की तरह ही कमलेश का भी भविष्य में आईएएस बनने का सपना है। कमलेश ने बताया कि मैं आईएएस बनकर गरीब,असहाय लोगों की मदद करना चाहता हूं। प्रतिस्पर्धा के दौर में किस तरह से पढ़ाई करनी चाहिए। मैंने कमलेश से यह प्रश्र किया तो उसने उत्तर दिया- प्रतिस्पर्धा की परवाह न करके सच्ची लगन और मेहनत से अध्ययन करते रहे। सफलता अपने आप आपके कदम चूमेगी।
सफलता का श्रेय ताऊजी व माता-पिता को
कमलेश ने अपनी सफलता का श्रेय अपने दादा बाबूलाल रैगर दादी विद्या देवी,ताऊजी-ताईजी,सहित पूरे परिवार जनों व स्कूल के अध्यापकों को दिया।

17 May 2017

जूती बनाने वाले की बेटी अंजेश ने लाए 91.20 प्रतिशत

अंजेश का सपना डॉक्टर बनना
कुछ कर गुजरने की क्षमता हो और अपने लक्ष्य के मुताबिक मेहनत कि जाए तो सफलता खुद चलकर चली आती है। झुंझुनू जिले के उदयपुरवाटी तहसील के पौंख निवासी अंजेश रसगनिया पुत्री श्री प्रकाश चन्द रसगनिया ने राजस्थान बोर्ड अजमेर के 12 वीं विज्ञान वर्ग के आए नतीजे में 91.20 प्रतिशत अंक उस हालात में अर्जित कर दिखाया है,जो बच्चे तमाम साधन-सुविधाओं के उपरांत भी नहीं ला पाते हैं। अंजेश रसगनिया ने बताया कि मैं नियमित चार-पांच घंटे पढ़ाई करती थी। पढ़ाई के दौरान बीच-बीच में पिताजी के कार्य में भी हाथ बंटाती थी। अंजेश के पिताजी जूतिया बनाने का कार्य करते हैं और इनकी मां छोटी देवी ग्रहणी है। घर की हालत दयनीय है। जिसके चलते अंजेश अपने पिताजी के कार्य में सहयोग करती है। अंजेश ने बताया कि परीक्षा से एक सप्ताह पहले पापा का एक हादसे में पैर फेक्चर हो गया था। यह देखकर मैं घबरा गई। मैंने परीक्षा देने से इनकार कर दिया था। पर घरवालों ने हिम्मत बढ़ाई तो मैंने परीक्षा दी और नतीजा आपके सामने है ही। अभी पापा के पैर में राड़ लगी हुई है। जिससे वे पहले की तरह सही ढग़ से चल नहीं पाते हैं। अंजेश के पिताजी 12 वीं तक पढ़े है और घर पर ही जूतियां बनाकर अपने परिवार की आजीविका चलाते हैं।



अंजेश के पिता ने बताया कि अंजेश अपनी चार भाई-बहिनों में सबसे छोटी है। अंजेश से बड़ी पूजा रसगनियां भी उसी के साथ पढ़ती थी। पूजा ने भी 78 प्रतिशत अंक अर्जित किए हैं। अंजेश के भाई-बहिनों में सबसे बड़े नरेन्द्र रसगनिया बहरहाल सीकर से बीटेक कर रहा। इससे छोटा विजय रसगनिया नेवी की तैयारी में जुटा हुआ है। 
अंजेश के भाई विजय रसगनिया ने बताया कि अंजेश के शुरू से पढऩे में अव्वल रही है। उसने दसवीं में 69 प्रतिशज अंक अर्जित किए थे। इस बार अंजेश के हिंदी में 91,अंग्रेजी में 74, फिजिक्‍स में 93, केमिस्‍ट्री में 98 एवं बायोलॉजी में 100 अंक आए है। कुल 500 में से 456 अंक आए है।
डॉक्‍टर बनने का सपना
अंजेश ने बताया कि मैं भविष्‍य में डॉक्टर बनकर गरीब,असहाय लोगों की मदद करना चाहती हूं। उसने अपनी सफला का श्रेय अपने माता-पिता,भाई-बहिन एवं गुरुजनों को दिया।
लोगों ने मोबाइल पर दी बधाई
अंजेश के पिता के मोबाइल पर जैसे अंजेश का परिणाम आया। लोगों के फोन आने शुरू हो गए। परिणाम वाले दिन लोगों देर रात तक बधाई दे रहे थे। सो‍शल मीडिया पर भी अंजेश को बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। लोग अंजेश की आर्थिक मदद करने के लिए भी आगे आ रहे है और फोन कर बैंक खाते की जानकारी मांग रहे है।

आर्थिक मदद इस खाते में भेज सकते है 
अंजेश रसगनिया के परिवार की माली हालात दयनीय है। आप अपनी इच्छानुसार इस गरीब परिवार की आर्थिक मदद निम्न खाते में कर सकते है।

बैंक का नाम - बड़ोदा राजस्थान क्षेत्रिय ग्रामीण बैंक

खाता धारक नाम अंजेश रसगनिया

खाता संख्या -43190100009070  IFSC CODE- BARBOBRGBXX       MICR CODE- 333647543





16 May 2017

कड़ी मेहनत का परिणाम 98 प्रतिशत

पुष्पराज भारती का सपना आईएएस बनना
पुष्पराज भारती ने राजस्थान बोर्ड के 12वीं विज्ञान वर्ग में परीक्षा में 98 प्रतिशत अंक अर्जित कर अपनी स्‍कूल एवं परिजनों का नाम रोशन किया है। पहली बार माध्‍यमिक शिक्षा बोर्ड ने राज्‍य स्‍तरीय व जिला स्‍तरीय मेरिट सूची जारी नहीं की है। हाल विराटनगर जयपुर व मूल डहरा,थानागाजी निवासी पुष्पराज की इस कामयाबी पर उनके परिवार जन काफी उत्साहित नजर आ रहें हैं। पुष्पराज के पिताजी जो राजकीय माध्यमिक विद्यालय पापड़ा,विराटनगर में सरकारी शिक्षक हैं, वे अपने बच्चों पर फ़ख़्र करते हुए बोले कि बच्चों की सफलता की वजह से ही आस-पास के माननीय का आना-जाना लगा रहता हैं, क्योंकि पिछले चार वर्षों से उनके दोंनो बच्चों में से कोई न कोई मेरिट लिस्ट में सम्मिलित होते आए हैं। सोमवार को जैसे परिणाम घोषित हुआ तो उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा रहा।

पुष्पराज ने जहां गणित में 100 वहीं हिंदी में 100, इंग्लिश में 94 फिजिक्स में 98 और कमेस्ट्री में 98 अंक प्राप्त किए हैं। कुलमिलाकर पुष्पराज ने 500 अंकों में से 490 अंक प्राप्त किए हैं। पुष्पराज के पिता श्री हरिराम वर्मा के मुताबिक उनके परिवार में पति-पत्नी के साथ दो बच्चे हैं, और दोनों ही कुशाग्र बुद्धि के धनी हैं। उनका बड़ा लड़का प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी के साथ दिल्ली विश्वविद्यालय में बीएससी द्वितीय वर्ष का छात्र हैं।
पुष्पराज भारती ने अपनी सफलता का राज कड़ी मेहनत और शिक्षा के प्रति अपने रुझान को बताया को बताया।पुष्पराज ने बताया के परिवार का माहौल ही कुछ इस तरह का है जिससे पढ़ाई के अलावा कोई भटकाव ना हो। इसके लिए धन्यवाद के पात्र माता-पिता हैं। जिन्होंने ऐसा माहौल उपलब्ध करवाया। इस परीक्षा के पहले दसवीं बोर्ड परीक्षा में भी पुष्पराज ने 94.33 प्रतिशत अंक प्राप्त किए थे। उनके पिता जी से बात करने पर पता चला कि जिस परिवेश में शहर के बच्चे मोबाइल- फोन और टेलीविजन के बीच घिरे रहते हैं उसके इतर बच्चों ने पढ़ाई के आगे इन चीजों की कभी मांग ही नहीं की।  
पुष्‍पराज भारती के पिता हरिराम रैगर ने बताया कि उनके घर पर पिछले 6 वर्षों से TV तक नहीं चालू की गई और साथ में शहर में रहने के बावजूद भी उनके बच्चे नियमित तरीके से दिनचर्या का अनुसरण करते रहे सुबह 4:00 बजे उठने के साथ ही सुबह की सैर-यात्रा और व्यायाम को नियमित करते हैं,जो भी उनके मानसिक संतुलन को बनाए रखता हैं। 
पुष्पराज ने अपनी सफलता के राज के पीछे अपने माता पिता और घर के पूरे माहौल को जिम्मेवार बताया। उसी ने बताया कि वह आगे चलकर प्रशासनिक सेवाओं की तैयारी करके देश और समाज के लिए कुछ करने की चाहत रखता है।

पुष्पराज की माता श्री मंजू देवी जो कि गृहणी हैं। जिनसे बात करने पर पता चला, कि उन्होंने अपने दोनों बच्चों को पढ़ने के लिए कभी भी विवश नहीं किया। साथ में उन्होंने बताया की बच्चों को घर की किसी भी जिम्मेदारियों से दूर रखा गया। बच्चों का जब मन हुआ तभी पढ़ाई किया और जब मन हुआ तब सोए। पढ़ाई के लिए अभिवावकों की तरफ से कोई अतिरिक्त दबाव नहीं डाला गया। पुष्पराज की पढ़ाई के अतिरिक्त अभिरुचि चित्रकारी में हैं। 
इसके पहले पुष्पराज का सिलेक्शन IIT मेंस में भी हो गया था और आगामी दिनों में एडवांस की परीक्षा भी होने वाली है लेकिन पुष्पराज ने बातचीत में बताया कि उनका रुझान इंजीन्यरिंग की तरफ नहीं हैं। उन्होंने मात्र परीक्षा इसलिए दी की परीक्षा में प्रश्न पत्र किस दृष्टिकोण पर आधारित होते हैं। इसका प्रारंभिक ज्ञान हो सके। क्योंकि आने वाले दिनों में पुष्पराज कई परीक्षाओं को देना चाहता हैं। इन सभी बातों के इतर गौर करने वाली बात यह है कि पुष्पराज ने 10वीं, 12वीं और IIT मेंस एग्जाम को बिना किसी कोचिंग सेंटर को ज्वाइन किए उत्तीर्ण किया है। जिसने आज के परिवेश में बढ़ते कोचिंग के क्रेज़ को झुठला दिया हैं। पुष्पराज ने अपने हमउम्र बच्चों को संदेश में कहा कि जीवन पथ पर संघर्ष के साथ आगे बढ़ते रहो, सफलता खुद-ब-खुद चलकर आएंगी।

लोगों ने पिता को मोबाइल पर दी बधाई  

थानागाजी में पुष्‍पराज भारती के 98 प्रतिशत आने एवं ज्योति बाल विद्या मंदिर सीनियर सेकेंडरी स्कूल थानागाजी में विज्ञान वर्ग में सबसे अव्‍वल आने पर शाला निदेशक चन्‍द्रशेखर सैनी व प्रधानाचार्य धर्मेंन्‍द्र महलावत की ओर से मंगलवार को थानागाजी कस्‍बे में जुलूस यात्रा निकाली गई। जिसमें कस्‍बेवासी एवं स्‍कूल स्‍टाफ,छात्रों ने डीजे बजाकर कस्‍बे के मुख्‍य मार्गो पर  जुलूस निकाला और आत्मिय बधाई दी। आपको बता दे कि परिणाम घोषित होते पुष्‍पराज के पिता के मोबाइल फोन पर बधाई देने वालों के देर रात तक फोन आ रहे थे।  

आखिरकार विकास मिल गया

मोहन लाल मौर्य 
विकास के बारे में बचपन से सुनता आया हूं,पर कभी देखा नहीं। अक्सर दादा-दादी,नाना-नानी विकास की बाते करते रहते थे। विकास ऐसा है। विकास ऐसा होगा। देखना एक दिन विकास अपना ही नहीं समूचे देश का नाम रोशन करेगा। विकासशील देश कहेंगे,देखों भारत का विकास कितना विकसित हो गया है और हम वहीं की वहीं हैं। हमें भी भारत के विकास से प्रेरणा लेने चाहिए। जब वे विकास से प्रेरणा लेने भारत आएंगे तो हमारी अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। ऐसा दादा-दादी और नाना-नानी ही नहीं,बल्कि मेरे अड़ोसी-पड़ोसी भी सोचते थे। उस वक्त में सोचता था कि आखिरकार विकास किस चिड़ि‍या का नाम है,जिसको होते हुए भी मैंने देखा नहीं। जब समझ आयी तो विकास गायब हो गया।
दादा-दादी और नाना-नानी को विकास से बहुत अपेक्षाएं थी। पर एकाएक जबसे विकास गायब हुआ है। वे बहुत दुखी हैं। वे ही नहीं अड़ोसी-पड़ोसी सब दुखी हैं। विकास का इस तरह से गायब होना। मुझे भी अच्छा नहीं लगा। वह खुद गायब हुआ है या फिर किसी ने उसका अपहरण किया है। यह भी तो पता नहीं। किसी को कुछ बताकर भी नहीं गया और नहीं कोई चिट्ठी-पत्र लिखकर गया। जिसमे लिखा हो कि मैं अमुख जगह जा रहा हूं,जल्‍दी ही लौटकर आ जांगा,मेरी चिंता मत करना। मैंने भी उसकी तलाश में गांव की गलियां और शहर के नगर के नगर छान मारे,पर वह मिल नहीं रहा है। चाय की थड़ी से लेकर मॉल तक और सड़क से लेकर संसद तक खोज लिया। लगता है किसी ने अपहरण कर लिया है। फिरौती मिली नहीं होगी। इसलिए बीहड़ों में कहीं छुपा कर रख रखा होगा। फिरौती मिलते ही छोड़ देंगे। पर मेरा मन कहता है उसने किसी का क्या बिगाड़ा है? जो उसका अपहरण करेंगे। वह तो सबसे मिल-जुलकर रहता है। नहीं...नहीं...ऐसा नहीं हो सकता। हो क्यों नहीं सकता? अधुनातन में कुछ भी हो सकता है। फिर विकास का तो नेताओं से ताल्लुक रहा हैं। जो मांगेगे वहीं हाजिर हो जाएंगा। यह सोचकर किसी ने अपहरण कर लिया होगा। खैर,जो भी हुआ हो। मुझे तो विकास को ढूंढ़ना है। आप सोच रहे होंगे। मैं विकास को क्यूं ढूंढ़ रहा हू? मैं विकास को इसलिए ढूंढ़ रहा हूं,क्योंकि विकास के बगैर विकास अधूरा है और मैंने उससे देखा भी नहीं।
जब मैं विकास को ढूंढ़ रहा था तो एक महाशय ने राय दी कि विकास का अपहरण हुआ होगा तो गुमशुदगी की रिपोर्ट अवश्य दर्ज हुई होगी और रिपोट दर्ज नहीं हुई होतो तुम करवा देना । गुमशुदगी रिपोर्ट की जानकारी लेने मैं नजदीकी थाने में जा पहुंचा। वहां जाकर सीधे ही थानेदार साहब से पूछा- साहब! आपके यहां पर विकास नाम से कोई गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज हुई है क्या?यह सुनकर थानेदार साहब बोले-‘आप बैठेए बताते हैं।’ उन्होंने एक सिपाही को बुलाया और उससे कुछ कहा जो मैं नहीं सुन पाया। शायद रिकॉड़ में देखकर बताने के लिए कहा होगा। जाओं जाकर रिकॉड़ में देखकर आओं। विकास नाम से रिपॉर्ट दर्ज हुई है क्या? ऐसा मुझे उनके हाव-भाव से प्रतीत हुआ। थोड़ी देर बाद वह सिपाही दो-तीन फाइल लेकर आया और थानेदार साहब को सौंप दिया। थानेदार साहब उन्हें देखकर इनकार करते हुए बोले-यहां तो विकास नाम से गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है।मैंने एक बार फिर से निवेदन किया-साहब अच्छी तरह से देखकर बताए। शायद रिपोर्ट दर्ज हुई होगी। विकास का इस तरह से लापता होना। आमजन के लिए चिंता का विषय है। इसके बगैर आमजन परेशान है।यह सुनकर थानेदार साहब आश्चर्य चकित होते हुए पूछे-भाई! आप किस विकास की बात कर रहे हो। आखिर यह विकास क्या भला है? मैं समझा नहीं।मैंने कहा-साहब! विकास के बिना विकास अधूरा है।यह सुनकर थानेदार साहब चौंके और बोले- अच्छा-अच्छा तो आप उस विकास की बात कर रहे हो। अरे,भाई! उस विकास के संदर्भ में तो भला मैं क्या बता सकता हूं? बलात्कार,चोरी,डकैती,लूट-पाट,मारपीट की कोई बात होतो बताओं हम ढूंढ कर बताते देंगे।’ ‘साहब ! रिपोर्ट दर्ज नहीं हुई है,तो अब कर लीजिएथानेदार साहब बोले-‘ जिसका कोई अता-पता ही नहीं। उसकी भला मैं रिपोर्ट कैसे दर्ज करों? तुम्‍हीं बताओं!’ मैं क्‍या बताता ? मैं चुपचाप चला आया।
थाने से सीधा चम्बल के बीहड़ में गया। डाकूओं के भय से भयभीत था। भय था कहीं कोई डाकू आकर कनपटी में बंदूक नहीं तान दे। कुछ कह पाऊं उससे पहले टपका नहीं दे। बीहड़ इलाको में जाना हथेली पर जान रखकर जाना होता है। पर मुझे विकास को ढूंढ़ना था। बड़ी मुश्किल से डरता-डरता गया। एक-एक डाकू से पूछा विकास तुम्हारे पास है क्या? पर सबने इनकार कर दिया। एक डाकू ने अवश्य पूछा- जरा विकास का हुलिया तो बताओं। उसकी कद-काठी,रंग-रूप,उम्र,क्या है? दिखता कैसा है?दरअसल मैंने भी कभी विकास को देखा ही नहीं। मैं क्या बताता? उसे दिखा होता तो थानेदार साहब को ही बताकर रिपोर्ट दर्ज करवा देता मैं बोला-विकास को देखा तो मैंने भी नहीं।इस पर पहले तो वह शोले के गब्बर की तरह हंसा। फिर बोला-जब तुमने विकास को देखा नहीं तो ढूंढ़ने क्यूं चले आए। विकास से तुम्हारा रिश्ता क्या है?मैंने कहा-खून का रिश्ता तो नहीं है,पर दिल का रिश्ता है। वह सबका प्रिय है,तो मेरा भी प्रिय हुआ।यह सुनकर डाकू बोला-मैं कुछ समझा नहीं। सीधे-सीधे कहों। कहना क्या चाहते हो? तुम किस विकास की बात कर रहे हो।मैंने कहा-‘मैं किसी विकास नाम के व्यक्ति को नहीं। बल्कि उस विकास को ढूंढ़ रहा हूं,जिसके संदर्भ में लोग अक्सर वार्ता करते रहते हैं। नेताजी चुनाव के वक्त विकास-विकास पुकारते रहते हैं।’ यह सुनकर डाकू जोर-जोर से डरवानी सी हंसी हंसने लगा और बोला-‘वह विकास यहां बीहड़ों में नहीं। इस वक्त जहां चुनाव हो रहे है वहां मिलेगा।’

मैं वहां पहुंचा जहां चुनाव हो रहे थे। वहां किसी नेताजी की रैली निकल रही थी तो किसी का भाषण चल रहा था। जिधर देखों उधर ही माहौल चुनावी रंग में रंगा हुआ था। चुनावी रंग-बिरंगे माहौल में विकास को ढूंढ़ना घास में सुई ढूंढ़ना था। कई नेताओं से भी पूछताछ की विकास कहां मिलेगा? पर किसी ने भी संतुष्टजनक जवाब नहीं दिया। बड़ी मुश्किल से एक नेताजी ने मुंह खोला और बोला-विकास उन सड़कों पर मिलेगा। जिनका मैंने निर्माण करवाया है और उद्घाटन किया है। वहां नहीं मिले तो उस गांव में मिलेगा। जिसको मैंने गोद लिया है। अगर वहां भी नहीं मिले तो विकास सामुदायक भवन में मिलेगा। मैंने गत दिनों ही उद्घाटन किया है।नेताजी ने जहां-जहां बताया,वहीं जाकर देखा पर कहीं भी नहीं मिला। एकाएक एक चुनावी घोषणा पत्र पर मेरी नजर पड़ी। मैंने देखा कि घोषणा पत्र में लोक लुभावानी योजनाओं के साथ विकास भी था। दुबला-पतला,तिखे नैन नक्ष,हिरण सी आंखे,घने काले बाल,पर उसके चेहरे पर चमक थी। मैंने पहली बार विकास को देखा था। मैं भागकर उसके पास गया और उससे पूछा-‘क्‍या तुम्‍हीं विकास हूं।’ उसने पहले तो मेरे को निहारा फिर बोला-‘हां मैं ही विकास हूं।’ मैंने कहा-‘तुम्हें कहां-कहां नहीं ढूंढ़ा और तुम हो कि यहां दूबे पड़े हो।’ वह बोला-मैं यहीं ठीक हूं। तुम जाओं किसी को बताना मत। मैं यहां पर हूं।मैंने उसको समझाते हुए बोला-तुम्हारी जगह यहां नहीं है,वहां है,जहां तुम्हें होना चाहिए।यह सुनकर वह बोला-वहां जाकर क्या करूंगा? जहां हर कोई ताना मारता है। यहां विविध योजनाओं और वादों के साथ खुश तो हूं।मैंने विकास को बहुत समझाने की कोशिश की पर वह नहीं माना। मैं उसको घोषणा पत्र में देखकर इसलिए चला आया। चलों आखिरकार विकास मिल तो गया। अन्यथा पांच साल तक ढूंढ़ना पड़ता।